सर्व-प्रथम आप सभी लोगों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें। आज पूरा देश और कई अन्य जगह विदेशों में भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। तो आइये आज हम मकर संक्रांति का महत्व जानते हैं और समझते हैं कि ये क्यों मनाया जाता है। मकर संक्रांति से जुडी कुछ पौराणिक कथाएं भी हैं और कई ऐसे पौराणिक प्रसंग हैं जो आज के ही दिन घटित हुए थे।
- मकर संक्रांति के दिन ही भगवान सूर्य नारायण धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि आज के ही दिन सूर्यदेव अपनी नाराजगी त्याग कर अपने पुत्र शनिदेव से मिलने जाते हैं जो कि मकर राशि के स्वामी हैं। धनु और मकर राशि के इसी संयोग को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
- मान्यता है कि आज के दिन ही भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर भगवान रूद्र ने देवी गंगा को अपने शीश पर धारण किया था और आज ही के दिन गंगा भगीरथ का अनुसरण करते हुए कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए धरती पर आयी थी। इसी कारण आज के दिन गंगा स्नान, विशेषकर प्रयाग (इलाहबाद) का बड़ा महत्त्व है। माना जाता है कि आज के दिन गंगा स्नान करने वाला व्यक्ति अपने सारे पापों से मुक्त हो जाता है। हालाँकि आज के दिन स्त्रियों का स्नान वर्जित बताया गया है।
- कहा जाता है कि आज के ही दिन यशोदा माँ ने भगवान विष्णु को अपने पुत्र के रूप में पाने के लिए व्रत किया था और भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर उनकी इच्छा पूरी की।
- ऐसा माना जाता है कि आज ही के दिन सूर्यदेव की गति एवं ऊष्मा तिल-तिल करके बढ़ती है अतः इसी कारण आज के दिन तिल से बने मिष्ठान्न बनाने की प्रथा है।
- आज के दिन दान का बड़ा महत्त्व है। आज के दिन दान करने से अन्य दिनों के दान से १०० गुणा फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि संक्रांति के दिन सूर्यपुत्र कर्ण अपने समस्त भंडार दान के लिए खोल देता था।
- मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही देवताओं का दिन आरम्भ होता है।
- शिव पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान दिया था।
- संक्रांति के दिन ही यज्ञ द्वारा दिए गए हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।
- उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन है और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता हैं। अतःमकर सक्रांति देवताओं का प्रभात काल है। इसके विषय में कहा गया है - माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहि आव सब कोई।।
- माघ मास में मकर सक्रांति के दिन ही समस्त देवी देवता तीर्थराज प्रयाग में आकर स्नान करते हैं अतः तीर्थराज प्रयाग में स्नान का अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होता है।
- मकर संक्रांति को ही महाराजा सगर के ६०००० पुत्रों को मुक्ति प्राप्त हुई थी अतः गंगासागर भी स्नान करने का बड़ा महत्व है।
- मकर सक्रांति को ही कंस ने लोहिता नाम की राक्षसी को श्रीकृष्ण को मारने के लिए गोकुल भेजा, जिसका वध श्रीकृष्ण ने खेल ही खेल में कर दिया।
- आज के दिन को साल का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। कहा जाता है कि आज के दिन जिसे मृत्यु प्राप्त होती है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज के दिन ही पितामह भीष्म ने अपना शरीर त्यागा था। जब अर्जुन के बाणों ने उन्हें शर-शैया पर सुला दिया तो उन्होंने शरीर त्यागने से मना कर दिया क्योंकि सूर्य उस समय दक्षिणायन में था। उन्होंने सूर्यदेव के उत्तरायण में आने की प्रतीक्षा करते हुए आज ही के दिन युधिष्ठिर को अंतिम शिक्षा देने के पश्चात अपनी देह का त्याग किया था।
इस दिन का ज्योतिष एवं वैज्ञानिक महत्त्व भी है। इसी दिन सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाते है। अर्थात इसी दिन सूर्य पृथ्वी के दक्षिण गोलार्ध से यात्रा करते हुए उत्तरी गोलार्ध में पहुँचते है। जब सूर्य दक्षिण गोलार्ध में रहते हैं तो दिन छोटे और अपेक्षाकृत ठन्डे होते हैं। सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में पहुँचने के बाद धीरे धीरे दिन बड़े होते हैं और तपन थोड़ी बढ़ने लगती है।
कई वर्षों से मकर संक्रांति का दिन १४ जनवरी को आ रहा है इसीलिए लोगों में ये भ्रम है कि मकर संक्रांति का दिन निश्चित होता है। जबकि ऐसा नहीं होता है। ज्योतिष आंकलन के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष २० सेकंड बढ़ रही है। हर वर्ष सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश २० मिनट देरी से होता है इसी कारण हर तीन वर्ष बाद सूर्य एक घंटे और हर ७२ वर्ष बाद १ दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसका मतलब सन २०८० के बाद मकर संक्रांति १४ की जगह १५ जनवरी को मनाई जाएगी।
ऐसा कहा जाता है कि अकबर के शासन काल में मकर संक्रांति १० जनवरी को मनाई जाती थी। आज से १००० वर्ष पहले धनु और मकर का ये संयोग ३१ दिसंबर को पड़ता था इसीलिए मकर संक्रांति भी ३१ दिसंबर को मनाई जाती थी। जैसे जैसे सूर्य की दिशा बदली, मकर संक्रांति का दिन आगे बढ़ता गया। आज से लगभग ५००० वर्ष बाद कलियुग के अंत समय ये संयोग बढ़कर फरवरी के अंत तक पहुँच जायेगा। अर्थात मकर संक्रांति तब फरवरी के अंत में मनाई जाएगी। साल २०१२ में धनु और मकर राशि का ये संयोग बिलकुल मध्यरात्रि में हुआ था इसी कारण उस वर्ष मकर संक्रांति १५ जनवरी को मनाई गयी थी।
ऐसा कहा जाता है कि अकबर के शासन काल में मकर संक्रांति १० जनवरी को मनाई जाती थी। आज से १००० वर्ष पहले धनु और मकर का ये संयोग ३१ दिसंबर को पड़ता था इसीलिए मकर संक्रांति भी ३१ दिसंबर को मनाई जाती थी। जैसे जैसे सूर्य की दिशा बदली, मकर संक्रांति का दिन आगे बढ़ता गया। आज से लगभग ५००० वर्ष बाद कलियुग के अंत समय ये संयोग बढ़कर फरवरी के अंत तक पहुँच जायेगा। अर्थात मकर संक्रांति तब फरवरी के अंत में मनाई जाएगी। साल २०१२ में धनु और मकर राशि का ये संयोग बिलकुल मध्यरात्रि में हुआ था इसी कारण उस वर्ष मकर संक्रांति १५ जनवरी को मनाई गयी थी।
मकर संक्रांति को पुरे भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से जाना और मनाया जाता है। तिल और गुड़ से बने मिष्टान्न विशेषकर तिलकुट, दही-चूड़ा, स्वादिष्ट सब्जी और पतंग उड़ाने की भी विशेष प्रथा है। अधिकतर राज्यों में इसे मकर संक्रांति के नाम से ही बनाया जाता है किन्तु कुछ राज्यों में अलग नाम भी हैं। विशेषकर पंजाब और हरियाणा में इसे एक दिन पहले, १३ फरवरी को "लोहड़ी" के नाम से मनाया जाता है।
- मकर संक्रान्ति: छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, और जम्मू
- ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल: तमिलनाडु
- उत्तरायण: गुजरात, उत्तराखण्ड
- माघी: हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
- भोगाली बिहु: असम
- शिशुर सेंक्रात: कश्मीर घाटी
- खिचड़ी: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
- पौष संक्रान्ति: पश्चिम बंगाल
- मकर संक्रमण: कर्नाटक
यही नहीं, मकर संक्रांति को भारत से बाहर भी अन्य नामों से मनाया जाता है। नेपाल में विशेषकर इसे धूम-धाम से मनाया जाता है।
- बांग्लादेश: पौष संक्रान्ति
- नेपाल: माघे सङ्क्रान्ति या 'माघी सङ्क्रान्ति' 'खिचड़ी सङ्क्रान्ति'
- थाईलैण्ड: सोङ्गकरन
- लाओस: पि मा लाओ
- म्यांमार: थिङ्यान
- कम्बोडिया: मोहा संगक्रान
- श्री लंका: पोंगल, उझवर तिरुनल
इस दिन क्या करना चाहिए:
- मकर सक्रांति को ब्रह्म मुहूर्त में जागकर सूर्योदय से पूर्व ही स्नान कर लेना चाहिए।
- इस दिन किए गए स्नान दान जप हवन अनुष्ठान आदि का १०० गुणा अधिक फल प्राप्त होता है।
- मकर सक्रांति के लिए विशेष रूप से गंगा जी का तट, प्रयागराज एवं गंगासागर यह तीन स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। इन तीनों स्थानों में से किसी एक स्थान पर जाकर स्नान दान आदि का विशेष फल होता है। यदि तीर्थ में जाना संभव न हो तो अपने घर पर भी इन तीनों स्थानों का स्मरण करते हुए स्नान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
- यदि घर पर ही स्नान कर रहे हैं तो एक लोटे में पहले थोड़ा गंगाजल व तिल डालें। फिर उस लोटे को शुद्ध जल से भर कर लोटे को दाहिने हाथ से ढककर गंगा यमुना गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी आदि नदियों का आवाहन करें। नदियों के आवाहन करके उस जल से स्नान करें। स्नान करने के पश्चात धुले हुए वस्त्र पहनकर पूजा घर में आकर के श्रीगणेश, श्री सूर्य देव , श्री विष्णु जी, श्री शिव जी एवं भगवती दुर्गा को प्रणाम कर नवग्रह को प्रणाम करें। उसके पश्चात सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें।
- सूर्य नारायण को चढ़ाए जाने वाले जल में लाल सिंदूर, लाल फूल, साबुत चावल एवं थोड़ा गुड डालकर सूर्य नारायण को "ओम घृणि सूर्याय नमः" इस मंत्र से तीन बार अर्घ्य प्रदान करें।
इस दिन क्या दान करें:
- मकर सक्रांति के दिन सूर्य तिल तिल आगे बढ़ता है इसलिए मकर सक्रांति को तिल दान का महत्व है।
- मकर संक्रांति के दिन तांबे की सूर्य नारायण की प्रतिमा बनाकर उस प्रतिमा को सवा किलो देसी घी से स्नान कराएं और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। उसके पश्चात सूर्य मूर्ति एवं देशी घी किसी ब्राह्मण को दान कर दें। ऐसा करने से पाप एवं निर्धनता दूर होती हैं, धन एवं यश की प्राप्ति होती है।
- सायं काल शिव मंदिर में जाकर सवा किलो देसी घी एवं एक ऐसा कंबल, जिसका रंग काला न हो, भगवान शिव के सम्मुख रखकर भगवान शिव को प्रणाम करें और वह कंबल और देसी घी मंदिर के पुजारी को दान करें। ऐसा करने से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और धन की प्राप्ति होती है।
- यशोदा जी एवं श्री कृष्ण एक ऐसी फोटो जिसमें माँ यशोदा दही मंथन कर रही हो और श्रीकृष्ण माँ के पास हो, किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर उनके द्वारा माँ यशोदा व श्री कृष्ण की पूजा करके, मथानी दही और पात्र की पूजा करके दक्षिणा सहित यह सब सामान उस ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित संतान की प्राप्ति होती है।
- मकर सक्रांति के दिन दोपहर के समय अपने पितरों के निमित्त भी अन्न दान या श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों की तृप्ति होती है और पित्र दोष से राहत मिलती है।
- इस दिन खिचड़ी एवं तिल का दान करना चाहिए और भोजन में के रूप में तिल मिश्रित खिचड़ी ही खानी चाहिए।
अन्य राज्यों एवं देशों में अलग-अलग नाम का सन्दर्भ विकिपीडिआ से लिया गया है।
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