दानवीर दैत्यराज बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा बाणासुर था। बाणासुर ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की। शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्त्र भुजाएं तथा अपार बल दे दिया। उसके सहस्त्र बाहु और अपार बल के भय से कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था। इसी कारण से बाणासुर अति अहंकारी हो गया। बहुत काल व्यतीत हो जाने के पश्चात् भी जब उससे किसी ने युद्ध नहीं किया।
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पांडवों का दिग्विजय
महाराज युधिष्ठिर का राजसू यज्ञ प्रारंभ होने वाला था। राजसू यज्ञ करने से पहले यह जरुरी था कि सारे राजा युधिष्ठिर का आधिपत्य स्वीकार कर ले। जरासंध पहले हीं भीम के हांथों मारा जा चुका था। राजसू यज्ञ के मार्ग में केवल वही एक बाधा था। इसके बाद चारों दिशाओं के राजाओं को जीतने के लिए युधिष्ठिर के चारो भाई चार दिशाओं में दिग्विजय के लिए निकले। उन चारों ने अपने-अपने दिग्विजय में कई राजाओं से युद्ध किया। आइये उस विषय में कुछ जानते हैं।
१०० कौरवों के नाम
हम सब जानते हैं की धृतराष्ट्र ने गांधारी से विवाह किया जिससे उन्हें १०० पुत्रों और एक पुत्री दुःशला की प्राप्ति हुई। इसके अतिरिक्त गांधारी की दासी सुगंधा से उन्हें एक पुत्र और प्राप्त हुआ - युयुत्सु पर चूँकि वो दासी पुत्र था इसी कारण उसे कौरवों में नहीं गिना गया। हालाँकि महाभारत के युद्ध के बाद केवल वही था जो जीवित बचा। आइये धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों के नाम जानते हैं।
कुरुवंश
ये धर्म संसार का प्रथम लेख है। जैसा कि हम जानते हैं कि सारी सृष्टि परमपिता ब्रह्मा से उत्पन्न हुई है। देव, दैत्य, मानव, नाग, असुर, गन्धर्व, राक्षस सभी का आरम्भ उन्ही से हुआ। आर्यावर्त में जितने भी राजवंश हुए वो ययाति की ही संतान थे। उनमे भी कुरुवंश सबसे आदरणीय था जिसमें शांतनु, भीष्म, कौरवों और पांडवों ने जन्म लिया। आइये कुरु के वंश को जानते हैं: