श्रीकृष्ण के जीवन में स्त्रियों का बड़ा महत्त्व रहा है, चाहे वो राधा और अथवा रुक्मिणी। श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम विदर्भ देश की कन्या रुक्मिणी से विवाह किया जो उनकी पटरानी बनी। इसके अतिरिक्त उनकी दो और प्रमुख पत्नियाँ थी - जांबवंती एवं सत्यभामा। श्रीकृष्ण की मुख्य रानियों की संख्या ८ बताई गयी है। जब उन्होंने नरकासुर का वध किया तो उसके कैद में १६१०० स्त्रियाँ थी। उन अपहृत स्त्रियों का ना कोई परिवार था और ना ही कोई ठिकाना। तब उनके उद्धार के लिए उन्होंने उन सभी १६१०० स्त्रियों को भी अपनी पत्नियों का पद प्रदान किया।
शरभ अवतार
भगवान विष्णु के वराह अवतार द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष के वध के पश्चात ब्रह्मा से वरदान पा उसके बड़े भाई हिरण्यकशिपु के अत्याचार हद से अधिक बढ़ गए। सारी सृष्टि त्राहि-त्राहि करने लगी। जहाँ एक ओर हिरण्यकशिपु संसार से धर्म का नाश करने पर तुला हुआ था, वही उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन था।
प्रमुख नाग कुल
पुराणों के अनुसार महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उनसे ही सभी जातियों की उत्पत्ति हुई। इसके बारे में विस्तार से यहाँ देखें। कश्यप एवं उनकी की पत्नी क्रुदु से नाग जाति (नाग और सर्प जाति अलग-अलग है) की उत्पत्ति हुई जिसमे नागों के आठ प्रमुख कुल चले। इनका वर्णन नीचे दिया गया है:
महाभारत में वर्णित विभिन्न व्यूह
२१ जुलाई २०१२, ठीक अपने जन्मदिन के दिन मैं अपने एक मित्र प्रशांत साहू के साथ हरियाणा के कुरुक्षेत्र में भ्रमण के लिए गया था। वहाँ विज्ञान भवन में एक पूरा हिस्सा महाभारत को समर्पित था। वही मैंने महाभारत में प्रयोग किये गए इन व्यूहों का चित्र देखा। वैसे तो इसका चित्र लेना प्रतिबंधित था किन्तु फिर मैंने जब सुरक्षा अधिकारीयों को धर्मसंसार के बारे में बताया तब उन्होंने इन चित्रों को लेने की अनुमति दे दी।
अति प्राचीन विश्व के नक्शों पर भारत
२१ जुलाई २०१२, ठीक अपने जन्मदिन के दिन मैं अपने एक मित्र प्रशांत साहू के साथ हरियाणा के कुरुक्षेत्र में भ्रमण के लिए गया था। वहाँ विज्ञान भवन में एक पूरा हिस्सा महाभारत को समर्पित था। वही मैंने इन दुर्लभ नक्शों को देखा। वैसे तो इसका चित्र लेना प्रतिबंधित था किन्तु फिर मैंने जब सुरक्षा अधिकारीयों को धर्मसंसार के बारे में बताया तब उन्होंने इन चित्रों को लेने की अनुमति दे दी।
जब दो ब्रह्मास्त्रों का सामना हुआ - अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे - अश्वत्थमा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा ने पांडवों को छल से मारने की प्रतिज्ञा की। उसने दुर्योधन को मरते हुए वचन दिया था कि जैसे भी हो वो पांचों पांडवों को अवश्य मार डालेगा। कृपाचार्य ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर अंततः उन्होंने भी उसका साथ देने की स्वीकृति भर दी।
जब भगवान शिव ने माता सती का त्याग किया
सभी लोग जानते हैं कि सती ने अपने पिता द्वारा शिव को यज्ञ में आमंत्रित न करने और उनका अपमान करने पर उसी यज्ञशाला में आत्मदाह कर लिया था लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इसकी भूमिका बहुत पहले हीं लिखी जा चुकी थी। ये कथा रामचरितमानस के बालकाण्ड में दी गयी है।
महर्षि कश्यप का वंश
महर्षि कश्यप परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे, इस प्रकार वे ब्रह्मा के पोते हुए। महर्षि कश्यप ने ब्रह्मापुत्र प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया। संसार की सारी जातियां महर्षि कश्यप की इन्ही १७ पत्नियों की संतानें मानी जाति हैं। इसी कारण महर्षि कश्यप की पत्नियों को लोकमाता भी कहा जाता है। प्रजापति दक्ष की सभी पुत्रियों और उनके पति के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ जाएँ। उनकी पत्नियों और उनसे उत्पन्न संतानों का वर्णन नीचे है:
महाभारत में १८ संख्या का महत्त्व
महाभारत कथा में १८ (अठारह) संख्या का बड़ा महत्त्व है। महाभारत की कई घटनाएँ १८ संख्या से सम्बंधित है। कुछ उदाहरण देखें:
- महाभारत का युद्ध कुल १८ दिनों तक हुआ था।
- कौरवों (११ अक्षौहिणी) और पांडवों (७ अक्षौहिणी) की सेना भी कुल १८ अक्षौहिणी थी।
महापुराण
महाभारत के बाद महर्षि व्यास की सबसे प्रमुख कृति पुराण ही मानी जाती है। महर्षि व्यास ने कुल १८ पुराण लिखे जिन्हे महापुराण भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य ऋषियों द्वारा लिखी गयी कृतियों को उप पुराण भी कहा जाता है। इन पुराणों में समाहित ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। जो भी ज्ञान पृथ्वी पर है वो सभी इन पुराणों में वर्णित है। मूलतः पुराणों को दो भागों में विभक्त किया जाता है:
- महापुराण: महर्षि व्यास द्वारा लिखित
- उप पुराण: अन्य ऋषियों द्वारा लिखित
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