हिन्दू धर्म में पंचकन्याओं का बड़ा महत्त्व है जिन्हे पंचसती भी कहा जाता है। ये पांचो सम्पूर्ण नारी जाति के सम्मान की साक्षी मानी जाती हैं। विशेष बात ये है कि इन पांचो स्त्रियों को अपने जीवन में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन सभी स्त्रियों के सम्बन्ध एक से अधिक पुरुषों से रहा जिस कारण पतिव्रत धर्म पर प्रश्न भी उठाए गए। किन्तु इन सब के पश्चात् भी वे हमेशा पवित्र और पतिव्रत धर्म की प्रतीक मानी गई। विभिन्न वरदानों के कारण इन पाँचों का कौमार्य कभी भंग नहीं होता था, अर्थात ये पाँचों सदैव कुँवारी ही रहती थी। यही कारण है कि इन्हे पंचकन्या कहा जाता है। इनके बारे में कहा गया है -
अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा।
पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥
अर्थात: अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं।
१. अहिल्या: ये महर्षि गौतम की पत्नी थी। देवराज इन्द्र इनकी सुन्दरता पर रीझ गए और उन्होंने अहल्या को प्राप्त करने की जिद ठान ली पर मन ही मन वे अहल्या के पतिव्रत से डरते भी थे। एक बार रात्रि में हीं उन्होंने गौतम ऋषि के आश्रम पर मुर्गे के स्वर में बांग देना शुरू कर दिया। गौतम ऋषि ने समझा कि सवेरा हो गया है और इसी भ्रम में वे स्नान करने निकल पड़े। अहल्या को अकेला पाकर इन्द्र ने गौतम ऋषि के रूप में आकर अहल्या से प्रणय याचना की और उनका शील भंग किया। गौतम ऋषि जब वापस आये तो अहल्या का मुख देख कर वे सब समझ गए। उन्होंने इन्द्र को नपुंसक होने का और अहल्या को शिला में परिणत होने का श्राप दे दिया। युगों बाद श्रीराम ने अपने चरणों के स्पर्श से अहल्या को श्राप मुक्त किया।
२. मन्दोदरी: मंदोदरी मय दानव और हेमा अप्सरा की पुत्री, दुदुम्भी एवं मायावी की बहन, राक्षसराज रावण की पत्नी और इन्द्रजीत मेघनाद की माता थी। पुराणों के अनुसार रावण के विश्व विजय के अभियान के समय मय दानव ने रावण को अपनी पुत्री दे दी थी। जब रावण ने सीता का हरण कर लिया तो मंदोदरी ने बार बार रावण को समझाया कि वो सीता को सम्मान सहित लौटा दें। जब रावण माता सीता के वध को उद्धत होता है तब मंदोदरी ही उसे ऐसा करने से रोकती है। तब रावण देवी सीता को १ वर्ष का समय देता है। मंदोदरी द्वारा देवी सीता को स्वच्छ वस्त्र भिजवाने का भी वर्णन है जिसे सीता अस्वीकार कर देती है। रावण की मृत्यु के पश्चात् मंदोदरी के करुण रुदन का जिक्र आता है। श्रीराम के सलाह पर रावण के छोटे भाई विभीषण ने मंदोदरी से विवाह कर लिया था।
३. तारा: तारा समुद्र मंथन के समय निकली अप्सराओं में से एक थी। कहते हैं कि उस समय वैद्यराज सुषेण एवं बाली में इन्हे पाने की होड़ लगी किन्तु अंततः ये वानरराज बालि की पत्नी बनी। इनका एक पुत्र था अंगद। रामायण में हालाँकि इनका वर्णन बहुत कम आया है लेकिन ये अपनी बुधिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थीं। पहली बार बालि से हारने के बाद जब सुग्रीव दुबारा लड़ने के लिए आया तो इन्होने बालि से कहा कि अवश्य हीं इसमें कोई भेद है लेकिन क्रोध में बालि ने इनकी बात नहीं सुनी और मारे गए। बालि के मृत्यु के पश्चात् इनके करुण रुदन का वर्णन है। श्रीराम की सलाह से बालि के छोटे भाई सुग्रीव से इनका विवाह होता है। जब लक्षमण क्रोध पूर्वक सुग्रीव का वध करने कृष्किन्धा आये तो तारा ने हीं अपनी चतुराई और मधुर व्यहवार से उनका क्रोध शांत किया।
४. कुन्ती: ये श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थी। इनका असली नाम पृथा था लेकिन महाराज कुन्तिभोज ने इन्हें गोद लिया था जिसके कारण इनका नाम कुन्ती पड़ा। इनका विवाह भीष्म के भतीजे और धृतराष्ट्र के छोटे भाई पाण्डु से हुआ। विवाह से पूर्व भूलवश इन्होने महर्षि दुर्वासा के वरदान का प्रयोग सूर्यदेव पर कर दिया जिनसे कर्ण का जन्म हुआ लेकिन लोकलाज के डर से इन्होने कर्ण को नदी में बहा दिया। पाण्डु के संतानोत्पत्ति में असमर्थ होने पर उन्होंने उसी मंत्र का प्रयोग कर धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीम और इन्द्र से अर्जुन को जन्म दिया। इन्होने पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री को भी इस मंत्र की दीक्षा दी जिससे उन्होंने अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव को जन्म दिया।
५. द्रौपदी: ये पांचाल के राजा महाराज द्रुपद की पुत्री, धृष्टधुम्न की बहन और पांचो पाण्डवों की पत्नी थी। श्रीकृष्ण ने इन्हें अपनी मुहबोली बहन माना। पिछले जन्म में महादेव से पांच बार वर मांगने के कारण अगले जन्म में इन्हे पांचों पांडव पति के रूप में मिले। महर्षि वेदव्यास ने इन्हे चिर-कन्या होने का वरदान दिया। ये पांडवों के दुःख और संघर्ष में बराबर की हिस्सेदार थी। पांच व्यक्तियों की पत्नी होकर भी इन्होने पतिव्रत धर्म का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। ये प्रतिवर्ष १ पांडव की पत्नी बन कर रहती थी। कौरवों ने इनका चीरहरण करने का प्रयास किया और ये इनके पतिव्रत धर्म का हीं प्रभाव था कि स्वयं श्रीकृष्ण को इनकी रक्षा के लिए आना पड़ा। महाभारत के युद्ध की धुरी में द्रौपदी ही है और इन्होने पांचों पांडवों के मध्य सदा सामंजस्य बनाये रखा। श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को इन्होने हीं पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी। यही नहीं, जब पांडवों ने अपने शरीर को त्यागने का निर्णय लिया तो उनकी अंतिम यात्रा में ये भी उनके साथ थीं।
इन सभी सतियों पर विस्तृत लेख अलग से लिखा गया है जिसे आप ऊपर दिए गए लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं।
आज इस जानकारी के बारे में पढ़कर लाभ हुआ।
जवाब देंहटाएंword verification का क्या फ़ायदा है, बता देना।
dhanyawad Sandeep ji.
हटाएंachhe jankari hai
जवाब देंहटाएंDhanyawad Omprakash ji.
हटाएंअतिउत्तम जानकारी नीलाभ जी
हटाएंबहुत आभार कामता जी
हटाएंkya aap dropadi ka bare me aur vishtar se jankari de sakate hi ki panch patioo ke hote hua patibrata kaise thhe
जवाब देंहटाएंबहुत सहज है उनके लिये 5 नही वे 5 हो के भी एक थे।
हटाएंAadhunik drishti se samajhna to sambhav nahi kintu pauranik drishti se samjha jaa sakta hai. Main ispar ek lekh likhne ka prayas karunga.
हटाएंनीलाभ जी,
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए धन्यवाद | में आपसे निवेदन करना चाहता हूँ की पांच सतीओ में कुंती का नहीं पर सीताजी का समावेश होता है, बाकी के चार सही है | कृपया निम्नलिखित ष्लोक पढ़े |
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥
अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, और मंदोदरी, इन पाँचों के नित्य स्मरण से (गुण और जीवन स्मरण से) महापातक का नाश होता है ।
कृपया जानकारीमें सुधार करे |
http://susanskrit.org/sanskrit-subhashit-character-worship/1581-2010-07-20-14-10-55.html
कई जगहों पर सीताजी का नाम भी आता है लेकिन अगर आप वास्तविक पंचसतियों की बात करें तो यही सही सूचि है।
हटाएंअनसुया का नाम?
जवाब देंहटाएंDevi anusuya kabhi kabhi panchsatiyon me nahi gini jati Vithal ji.
हटाएंअंगद के असली पिता का नाम क्या था ?
जवाब देंहटाएंAngad ke pita Bali hi the.
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