एक बार अर्जुन और कृष्ण बैठे वार्तालाप कर रहे थे तथा कृष्ण अर्जुन को दानवराज बलि की दानवीरता की कथा सुना रहे थे कि कैसे बलि ने भगवान वामन को तीन पग भूमि दान की थी। तभी अर्जुन ने पूछा कि क्या उनकी तरह दानवीर कोई और हुआ? इस पर कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आज पूरे विश्व में कर्ण सबसे महान दानी हैं जिन्होंने आज तक किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाया।
डार्विन का सिद्धांत और दशावतार
हम सभी भगवान् विष्णु के दस अवतारों के बारे में जानते हैं (आप उसके बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं)। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु के ये दस अवतार वैज्ञानिक दृष्टि से भी आश्चर्यजनक रूप से भी प्रकृति के विकास-क्रम से बिलकुल मेल खाती है। डार्विन ने सन १८६० में पृथ्वी पर विकास-क्रम का सिद्धांत दिया था जिसमे उन्होंने ये बताया था कि पृथ्वी पर विभ्भिन्न प्राणी किस क्रम में आये थे। आज इतने वर्षों बाद भी डार्विन का सिद्धांत प्राणी विकास-क्रम में मील का पत्थर माना जाता है।
वसन्त पञ्चमी
सर्वप्रथम आप सभी को वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएं। वसन्त पञ्चमी भारत का एक प्रमुख त्यौहार है जो हर वर्ष माघ महीने की पाँचवी तिथि को मनाया जाता है। इसी कारण इस त्यौहार को वसन्त पञ्चमी के नाम से जाना जाता है। ये तिथि आम तौर पर जनवरी या फरवरी में पड़ती है। इसी तिथि से शिशिर ऋतु का प्रस्थान और वसन्त ऋतु का आगमन माना जाता है जो भारत में सर्वाधिक प्रिय ऋतु मानी जाती है। ये त्यौहार मुख्य रूप से महादेवी सरस्वती को समर्पित है तथा कहीं-कहीं इसे प्रेम स्वरुप कामदेव और रति को भी समर्पित किया जाता है।
युधिष्ठिर के पास कितना धन था?
महाभारत में एक प्रसंग आता है जब द्यूत में युधिष्ठिर हार रहे होते हैं तब दुर्योधन उनसे व्यंग करते हुए पूछता है कि क्या अब आपके पास धन ख़त्म हो गया? तब युधिष्ठिर क्रोधित होते हुए अपने पास संचित धन की व्याख्या करते हैं। जहाँ दुर्योधन ने अपने पास संचित धन की संख्या "पद्म" बताई, वहीं युधिष्ठिर कहते हैं कि उनके पास "परार्ध" से भी अधिक धन है।
मकर संक्रांति
सर्व-प्रथम आप सभी लोगों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें। आज पूरा देश और कई अन्य जगह विदेशों में भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। तो आइये आज हम मकर संक्रांति का महत्व जानते हैं और समझते हैं कि ये क्यों मनाया जाता है। मकर संक्रांति से जुडी कुछ पौराणिक कथाएं भी हैं और कई ऐसे पौराणिक प्रसंग हैं जो आज के ही दिन घटित हुए थे।
आखिर क्यों करना पड़ा था समुद्र मंथन?
महर्षि दुर्वासा महामुनि अत्रि एवं सती अनुसूया के कनिष्ठ पुत्र थे जो भगवान रूद्र के अंश से जन्मे थे। वे चन्द्र एवं दत्तात्रेय के भाई थे और पूरे विश्व में अपने क्रोध के कारण प्रसिद्ध थे। श्राप तो जैसे इनके जिह्वा के नोक पर रखा रहता था। पृथ्वी पर ना जाने कितने मनुष्य उनके क्रोध और श्राप का भाजन बनें किन्तु इन्होने स्वयं देवराज इंद्र को भी नहीं छोड़ा।
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