महाभारत में एक प्रसंग आता है जब द्यूत में युधिष्ठिर हार रहे होते हैं तब दुर्योधन उनसे व्यंग करते हुए पूछता है कि क्या अब आपके पास धन ख़त्म हो गया? तब युधिष्ठिर क्रोधित होते हुए अपने पास संचित धन की व्याख्या करते हैं। जहाँ दुर्योधन ने अपने पास संचित धन की संख्या "पद्म" बताई, वहीं युधिष्ठिर कहते हैं कि उनके पास "परार्ध" से भी अधिक धन है।
आज के युग में हम धन को मिलियन, बिलियन, ट्रिलियन आदि में मापते हैं किन्तु प्राचीन काल में धन के मापन की विधि अलग थी। इनमे से कुछ जैसे इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि तो हमने अपने विद्यालय के दिनों में पढ़ा है किन्तु अन्य कई परिमाण है जिसके बारे में हम नहीं जानते। तो आइये, इस लेख में हम उन परिमाणों के बारे में जानते हैं।
- एक: १
- द्वि: १० (१०^१)
- शत: १०० (१०^२)
- सहस्त्र: १००० (१०^३)
- दस सहस्त्र: १०००० (१०^४)
- लक्ष: १००००० (१०^५)
- दस लक्ष: १०००००० (१०^६)
- कोटि: १००००००० (१०^७)
- दस कोटि: १०००००००० (१०^८)
- अर्ब: १००००००००० (१०^९)
- दस अर्ब: १०००००००००० (१०^१०)
- खर्व: १००००००००००० (१०^११)
- दस खर्व: १०००००००००००० (१०^१२)
- नील: १००००००००००००० (१०^१३)
- दस नील: १०००००००००००००० (१०^१४)
- पद्म: १००००००००००००००० (१०^१५)
- महापद्म: १०००००००००००००००० (१०^१६)
- शंख: १००००००००००००००००० (१०^१७)
- महाशंख: १०००००००००००००००००० (१०^१८)
- अन्त्या: १००००००००००००००००००० (१०^१९)
- महाअन्त्या: १०००००००००००००००००००० (१०^२०)
- मध्या: १००००००००००००००००००००० (१०^२१)
- महामध्या: १०००००००००००००००००००००० (१०^२२)
- परार्ध: १००००००००००००००००००००००० (१०^२३)
- महापरार्ध: १०००००००००००००००००००००००० (१०^२४)
- धून: १००००००००००००००००००००००००० (१०^२५)
- महाधून: १०००००००००००००००००००००००००० (१०^२६)
- अशोहिणी: १००००००००००००००००००००००००००० (१०^२७)
- महाअशोहिणी: १०००००००००००००००००००००००००००० (१०^२८)
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