महाभारत में एक पर्व है "विराट पर्व" जिसमे पांडवों के १२ वर्ष के वनवास के बाद बिताये गए एक वर्ष के अज्ञातवास का वर्णन है। ये समय पांडवों ने द्रौपदी सहित विराटराज के राज्य में बिताया था। इस काल में वे सभी विराटराज के राज्य में दास बनकर रहे। युधिष्ठिर कंक, भीम बल्लभ, अर्जुन क्लीव बृहन्नला, नकुल ग्रन्थिक, सहदेव तन्तिपाल और द्रौपदी सैरंध्री के नाम से छुपकर उस नगर में रहे। उधर हस्तिनपुर में दुर्योधन किसी भी परिस्थिति में उन्हें ढूंढ निकलना चाहता था ताकि शर्त के अनुसार वे फिर १२ वर्षों के वनवास पर चले जाएँ।
इसी बीच विराटराज के साले कीचक की नजर सैरंध्री रूपी द्रौपदी पर पड़ी और वो उसे पाने को आतुर हो गया। द्रौपदी की रक्षा के लिए भीम ने कीचक का वध कर दिया। कीचक बहुत बलवान था और उसका वध करना केवल भीष्म, द्रोण, बलराम, कर्ण, दुर्योधन और भीम के लिए ही संभव था। इसीलिए दुर्योधन को ये समझ आ गया कि हो ना हो कीचक का वध भीम ने ही किया है। तो उसका अज्ञातवास भंग करने के लिए पहले दुर्योधन ने सुशर्मा को विराट पर आक्रमण करने को कहा और जब अर्जुन को छोड़कर शेष पांडव युद्ध करने को गए, दुर्योधन ने भीष्म के नेतृत्व में दूसरी और से विराट पर आक्रमण कर दिया।
ऐसी परिस्थिति में विराट का छोटा बेटा उत्तर सबके सामने अपनी वीरता का ढिंढोरा पीटता हुआ अकेला उनसे युद्ध करने को चला गया। अर्जुन जनता था था कि वो उनके सामने एक क्षण भी नहीं टिक सकता इसीलिए वो भी उत्तर का सारथि बन युद्ध को चला गया। उधर रणक्षेत्र में पहुँच कर जब उत्तर ने हस्तिनापुर की सेना देखी तो मारे भय के भाग निकला। अर्जुन ने उसे पकड़ा और उसे समझाया कि इस प्रकार भागना क्षत्रियों को शोभा नहीं देता। इसपर उत्तर ने पूछा कि जिस सेना में द्रोण, कर्ण, दुर्योधन और अश्वथामा जैसे वीर हैं और जिसका सञ्चालन स्वयं गंगापुत्र भीष्म कर रहे हैं, उसे किस प्रकार परास्त किया जा सकता है। इसपर बृहन्नला रूपी अर्जुन उसे अपने अस्त्र-शस्त्रों के पास ले गया और उसे सत्य बताया कि वही अर्जुन है। जब उत्तर की शंका दूर हुई तो वो अर्जुन का सारथि बन कर अर्जुन को वापस रणक्षेत्र में ले आया।
ऐसी परिस्थिति में विराट का छोटा बेटा उत्तर सबके सामने अपनी वीरता का ढिंढोरा पीटता हुआ अकेला उनसे युद्ध करने को चला गया। अर्जुन जनता था था कि वो उनके सामने एक क्षण भी नहीं टिक सकता इसीलिए वो भी उत्तर का सारथि बन युद्ध को चला गया। उधर रणक्षेत्र में पहुँच कर जब उत्तर ने हस्तिनापुर की सेना देखी तो मारे भय के भाग निकला। अर्जुन ने उसे पकड़ा और उसे समझाया कि इस प्रकार भागना क्षत्रियों को शोभा नहीं देता। इसपर उत्तर ने पूछा कि जिस सेना में द्रोण, कर्ण, दुर्योधन और अश्वथामा जैसे वीर हैं और जिसका सञ्चालन स्वयं गंगापुत्र भीष्म कर रहे हैं, उसे किस प्रकार परास्त किया जा सकता है। इसपर बृहन्नला रूपी अर्जुन उसे अपने अस्त्र-शस्त्रों के पास ले गया और उसे सत्य बताया कि वही अर्जुन है। जब उत्तर की शंका दूर हुई तो वो अर्जुन का सारथि बन कर अर्जुन को वापस रणक्षेत्र में ले आया।
इस प्रकार अर्जुन को रणक्षेत्र में आया देख दोनों ओर से युद्ध की घोषणा कर दी गयी और अर्जुन का एक-एक कर सबसे द्वन्द प्रारम्भ हो गया। दुःशासन, दुर्योधन तो खैर धनुर्युद्ध में अर्जुन के सामने क्या टिक पाते। उन्हें बड़ी जल्दी हरा कर अर्जुन अश्वथामा से युद्ध करने लगा। वो एक उत्कृष्ट योद्धा था किन्तु अर्जुन से पार नहीं पा सका। कर्ण से उसका युद्ध टक्कर का था। बड़ी देर तक युद्ध चलते रहने के पश्चात भी कोई निर्णय नहीं हो पाया, किन्तु अंततः अर्जुन ने कर्ण का रथ पीछे हटा दिया।
इन सभी योद्धाओं से लड़ते हुए अर्जुन भी थक चुका था इसी कारण युद्ध को जल्दी समाप्त करने के लिए उसने दिव्यास्त्र के प्रायोग का निश्चय किया। अर्जुन ने वहाँ उपस्थित सभी योद्धाओं पर समोहनास्त्र का प्रयोग किया जिससे कुछ समय के लिए सभी की चेतना जाती रही। उत्तर ने अपनी बहन उत्तरा के खिलौनों के लिए कुरु योद्धाओं के वस्त्र लाने का वचन दिया था इसीलिए अर्जुन ने उसे सभी योद्धाओं के अंगवस्त्र उतार लाने का आदेश दिया।
महाभारत के विराट पर्व में इस बात का वर्णन है कि जब अर्जुन पितामह भीष्म को भी अचेत देखता है तो उसे विश्वास नहीं होता है। भीष्म अजेय थे। उन्होंने आज तक एक भी युद्ध नहीं हारा था। यहाँ तक कि उनके गुरु विष्णु अवतार परशुराम भी उन्हें परास्त नहीं कर सके थे। विश्व में जितने भी दिव्यास्त्र थे उनका पूरा ज्ञान भीष्म को था। इसीलिए उत्तर को कौरव सेना की ओर भेजते हुए अर्जुन कहते हैं कि -
"हे उत्तर! तुम जाकर दुर्योधन के लाल, कर्ण के गुलाबी, दुःशासन के काले और अश्वथामा के नीले अंगवस्त्र ले आओ। आते हुए मेरे गुरु द्रोण को प्रणाम कर आना और उनके वस्त्रों को हाथ मत लगाना। किन्तु तुम पितामह भीष्म के निकट मत जाना। मेरे बाण उन्हें मूर्छित नहीं कर सकते। मुझे विश्वास नहीं है कि संसार का कोई भी दिव्यास्त्र उन्हें अचेत कर सकता है। जिस योद्धा को भगवान् परशुराम भी परास्त ना कर सके और जिन्हे ब्रह्मास्त्र सहित संसार के समस्त दिव्यास्त्रों और उसके अतिरिक्त प्रस्वापास्त्र का भी ज्ञान है, उन्हें एक साधारण सा सम्मोहनास्त्र अचेत नहीं कर सकता है। मुझे लगता है कि मेरे प्रति उनके प्रेम के कारण वे अचेत होने का स्वांग कर रहे हैं। भगवान रूद्र के अतिरिक्त उन्हें और कोई परास्त नहीं कर सकता। अगर वे क्रोध में युद्ध कर रहे हों तो स्वयं देवराज इंद्र से पराजित नहीं हो सकते तो फिर मेरी शक्ति उनके आगे क्या है?"
"हे उत्तर! तुम जाकर दुर्योधन के लाल, कर्ण के गुलाबी, दुःशासन के काले और अश्वथामा के नीले अंगवस्त्र ले आओ। आते हुए मेरे गुरु द्रोण को प्रणाम कर आना और उनके वस्त्रों को हाथ मत लगाना। किन्तु तुम पितामह भीष्म के निकट मत जाना। मेरे बाण उन्हें मूर्छित नहीं कर सकते। मुझे विश्वास नहीं है कि संसार का कोई भी दिव्यास्त्र उन्हें अचेत कर सकता है। जिस योद्धा को भगवान् परशुराम भी परास्त ना कर सके और जिन्हे ब्रह्मास्त्र सहित संसार के समस्त दिव्यास्त्रों और उसके अतिरिक्त प्रस्वापास्त्र का भी ज्ञान है, उन्हें एक साधारण सा सम्मोहनास्त्र अचेत नहीं कर सकता है। मुझे लगता है कि मेरे प्रति उनके प्रेम के कारण वे अचेत होने का स्वांग कर रहे हैं। भगवान रूद्र के अतिरिक्त उन्हें और कोई परास्त नहीं कर सकता। अगर वे क्रोध में युद्ध कर रहे हों तो स्वयं देवराज इंद्र से पराजित नहीं हो सकते तो फिर मेरी शक्ति उनके आगे क्या है?"
उसके बाद उत्तर अर्जुन की आज्ञा अनुसार भीष्म और द्रोण के अतिरिक्त अन्य प्रमुख योद्धाओं के अंगवस्त्र ले आता है और प्रार्थना करता है कि अर्जुन उन सब का वध कर दें किन्तु अर्जुन निःशस्त्र योद्धाओं की हत्या करने से मना कर देते हैं। थोड़ी देर बाद जब सबकी मूर्छा दूर होती है तो दुर्योधन भीष्म से कहता है कि पांडवों का अज्ञातवास भंग हो गया है। इसपर भीष्म कहते हैं कि उनका अज्ञातवास आज से एक माह पूर्व ही समाप्त हो गया था। किन्तु दुर्योधन के ना मानने पर आगे की कथा सबको पता ही है।
महाभारत के भीष्म पर्व में भी इसका विवरण है। यहाँ तक कि जब महाभारत में अर्जुन शिखंडी की आड़ लेकर भीष्म को धराशायी करते हैं तो उस समय भी अर्जुन अपने आपको धिक्कारते हैं पर भीष्म कहते हैं कि "जिस प्रकार तुमने विराट युद्ध में मुझे परास्त कर दिया था उसी प्रकार इस युद्ध में भी तुमने मुझे परास्त कर दिया। जिस प्रकार मड़की के बच्चे अपनी माता के शरीर को चीर कर बाहर आते हैं उसी प्रकार तुमने भी मेरे शरीर को छलनी कर दिया है। तुम्हारा ये युद्ध धर्म के लिए है और अगर तुमने मुझे छल से मारा भी है तो भी वो छल धर्म ही है। इसीलिए तुम मेरे पतन पर शोक मत करो।" ऐसे महान विभूति को हमारा नमन।
महाभारत के भीष्म पर्व में भी इसका विवरण है। यहाँ तक कि जब महाभारत में अर्जुन शिखंडी की आड़ लेकर भीष्म को धराशायी करते हैं तो उस समय भी अर्जुन अपने आपको धिक्कारते हैं पर भीष्म कहते हैं कि "जिस प्रकार तुमने विराट युद्ध में मुझे परास्त कर दिया था उसी प्रकार इस युद्ध में भी तुमने मुझे परास्त कर दिया। जिस प्रकार मड़की के बच्चे अपनी माता के शरीर को चीर कर बाहर आते हैं उसी प्रकार तुमने भी मेरे शरीर को छलनी कर दिया है। तुम्हारा ये युद्ध धर्म के लिए है और अगर तुमने मुझे छल से मारा भी है तो भी वो छल धर्म ही है। इसीलिए तुम मेरे पतन पर शोक मत करो।" ऐसे महान विभूति को हमारा नमन।
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