आप सभी को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें। राम भारत की आत्मा में बसते हैं। उनपर इतना कुछ लिखा जा चुका है कि हम उससे अधिक क्या लिख सकते हैं? संक्षेप में कुछ कहने की कोशिश करते हैं। वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस एवं पुराणों के अनुसार आज के दिन ही अयोध्या में प्रभु श्रीराम ने भगवान विष्णु के सातवें अवतार रूप में इक्षवाकु कुल में राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में रानी कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया। अगस्त्य संहिता के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन, पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न में जब सूर्य एवं पंचग्रह अपनी शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तब उस अतिशुभ लग्न में श्रीराम का जन्म हुआ।
आज के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरिमानस के रचना का शुभारम्भ किया था। राम नवमी के साथ ही चैत्र नवरात्र भी समाप्त हो जाता है। आज के दिन स्त्री तथा पुरुष व्रत रखते हैं और आठों प्रहर फलाहार करने का प्रावधान है। इस व्रत से जुडी एक कथा है। वनवास के समय श्रीराम अपने जन्मदिवस के दिन सीता और लक्ष्मण के साथ एक गरीब और वृद्ध बुढ़िया के घर पहुँचे जो उनकी बड़ी भक्त थी। उन्हें भोजन करवाने के कारण उसे स्वयं भोजन ना मिल सका जिससे उसे उस दिन उपवास रखना पड़ा।
भोजन के पश्चात श्रीराम ने उसकी परीक्षा लेने के लिए कहा कि "माई! मुझे अपने हंस के लिए मोती चाहिए। कृपया एक झोली मोती का प्रबंध कर दो।" अब जिसे दो जून खाने का ना जुट रहा हो वो मोती कहाँ से लाएगी? लेकिन अतिथि को इस प्रकार खाली हाथ लौटना भी से ठीक ना लगा। इसलिए वो वहाँ के राजा के पास गयी और एक झोली मोती उधर मांगे। राजा हँस पड़ा और पूछा कि वो मोती लौटाएगी कैसे? वृद्धा बेचारी कोई जवाब ना दे पायी। राजा ने उसे एक झोला मोती दे दिया और कहा कि लौटने की आवश्यकता नहीं।
वो वापस आयी और उसने वो सारे मोती श्रीराम को दे दिए। राम उसे लेकर सीता और लक्षमण के साथ वापस लौट गए। अगले दिन उस वृद्धा ने देखा कि उसकी कुटिया में मोतिओं का एक पेड़ लगा है। उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना रहा। उसने प्रभु का धन्यवाद् अदा किया और दो झोली मोती लेकर राजा के पास पहुँची। राजा ने आश्चर्य से पूछा कि तुम्हे इतना धन कहाँ से प्राप्त हुआ? इसपर उस वृद्धा ने सारी कथा सुना दी।
ये रहस्य सुनकर राजा के मन में लालच आ गया। उसने कहा कि वो वृक्ष मुझे दे दो। बुढ़िया उस वृक्ष का क्या करती? उसने राजा से कहा कि उसे मेरे आश्रम से मँगवा लीजिये। राजा ने वो वृक्ष लेकर अपने महल में लगवा दिया। किन्तु उसी क्षण से उस वृक्ष में कांटे लगने प्रारम्भ हो गए। कुछ काँटे उसकी पत्नी के हाँथों में भी घुस गए जिससे उसे बड़ा कष्ट हुआ। राजा ने जब ये देखा तो वृद्धा से क्षमा माँगते हुए वो वृक्ष वापस उसकी कुटिया में लगवा दिया। वहाँ पहुँचते ही वापस उस वृक्ष में मोती लगने लगे और वो वृद्धा प्रतिदिन भिक्षुकों को मोती दान करने लगी। इस प्रकार जो भी श्रद्धापूर्वक राम नवमी का व्रत रखता है, प्रभु श्रीराम उसे धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं।
श्रीराम का जन्मदिन पूरे देश भर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेषकर अयोध्या (उप), सीता समिति स्थल (उप), सीतामढ़ी (बिहार), भद्राचलम (तेलंगाना), वोंटिमित्ता (आंध्र), रामेश्वरम (तमिलनाडु) और जानकीपुरधाम (नेपाल) में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है। कई जगह रथ यात्राएँ भी निकाली जाती हैं जिनमे श्रीराम के साथ देवी सीता, लक्षमण और हनुमान की झाँकियाँ होती है।
श्रीराम ने अपना पूरा जीवन सादगी और उच्च विचारों के साथ जिया। उनमे किसी प्रकार के दुर्गुण का वर्णन नहीं है। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। वे एक अद्भुद शासक भी थे। आज भी हमारे देश में राम-राज्य का वर्णन होता है। कलियुग में श्रीराम के नाम का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि कलियुग में स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति का सबसे सरल साधन राम-नाम ही है। जय श्रीराम।
श्रीराम के पूरे वंश का वर्णन यहाँ पढ़ें।
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