बिहार पौराणिक कथाओं का एक केंद्र रहा है। आप जब बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर कस्बे में प्रवेश करते हैं तो वहाँ आपको दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम सुनने को मिलते हैं। पहला है मैथली भाषा के महान कवि विद्यापति और दूसरा है महादेव का उगना शिवलिंग मंदिर। ये दोनों एक दूसरे से सम्बंधित हैं जिनकी कथा मधुबनी की लोक कथाओं में हमें मिलती है। लोक कथाओं के अनुसार विद्यापति भगवान् शिव के अनन्य भक्त थे और वे प्रतिदिन प्रातः और सायं भगवान शिव का भजन किया करते थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। अपने पति का मन इस प्रकार वैराग्य की ओर झुका देख वे उतनी प्रसन्न नहीं थी।
विद्यापति प्रतिदिन इतने मधुर स्वर में शिव-भजन किया करते थे कि एक बार स्वयं भगवान शंकर को उनके भजन को सुनने की आकांक्षा हुई। इसी कारण उन्होंने एक निर्धन व्यक्ति का वेश बनाया और विद्यापति के घर पहुँचे। वहाँ उन्होंने कहा कि उन्हें वे अपने सेवक के रूप में अपने घर में ही रहने दें। हालाँकि विद्यापति इससे सहमत नहीं थे किन्तु सुशीला ने ये सोच कर कि वो उनके काम में सहायता करेगा, भगवान् शंकर को अपने घर पर सेवक के रूप में रख लिया। भगवान् शंकर ने अपना नाम "उगना" बताया। अब तो वे प्रतिदिन विद्यापति का भजन सुनने लगे। वे भजन सुनते समय इतना खो जाते थे कि घर के काम में उनका ध्यान ही नहीं रहता था। इसी कारण सुशीला उगना से चिढ़ने लगी।
एक बार विद्यापति उगना के साथ बाहर निकले। जेठ का महीना था और पूरी भूमि जैसे तवे की तरह तप रही थी। जंगल से गुजरते हुए भीषण गर्मी के कारण विद्यापति अचेत होकर गिर पड़े। उन्होंने उगना से कहा कि प्यास के कारण उनकी मृत्यु हो जाएगी इसीलिए कैसे भी हो उनके पीने के लिए पानी ले आये। अपने स्वामी की रक्षा के लिए उगना पानी की खोज में गए किन्तु उन्हें तो पता ही था कि यहाँ आस-पास दूर-दूर तक पानी की एक बून्द भी नहीं है। तो अपने भक्त की रक्षा के लिए उगना रुपी भगवान् शंकर ने थोड़ी दूर जाकर अपनी जटा से गंगाजल निकाल कर विद्यापति को दिया। पवित्र गंगाजल पीते ही विद्यापति की चेतना लौटी और उनके शरीर में शक्ति का संचार हुआ।
उन्होंने आश्चर्य से उगना से पूछा कि इस निर्जन वन में उसे गंगाजल कहाँ से प्राप्त हुआ। उगना रुपी भगवान ने बात को बदलने की कोशिश की किन्तु तबतक विद्यापति समझ चुके थे कि ये कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। वे वहीँ भगवान् शिव के ध्यान को बैठ गए। अपने भक्त को इस हालत में देख कर अंततः भगवान शंकर अपने रूप में आ गए। अपने आराध्य को अपने सामने देख कर विद्यापति भाव-विभोर हो गए। भगवान शंकर ने विद्यापति से वरदान माँगने को कहा। इसपर विद्यापति ने जीवन पर्यन्त उन्हें अपने घर पर रहने का वरदान माँगा। भगवान् ने मुस्कुराते हुए कहा कि वे जीवन भर किसी के पास नहीं रह सकते अतः वे कोई और वरदान माँग ले किन्तु विद्यापति अपने हठ पर अड़े रहे।
ऐसा देख कर भगवान् शंकर ने कहा कि वे उनके घर पर रहेंगे किन्तु जैसे ही विद्यापति उनका रहस्य किसी को बताएँगे, उसी क्षण वे उन्हें छोड़ कर चले जाएँगे। विद्यापति ने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया। वे दोनों वापस घर आ गए। विद्यापति को तो जैसे पूरा संसार मिल गया। वे और अधिक उगना को लेकर भगवान् के भजन में रम गए। इस कारण उनकी पत्नी सुशीला का असंतोष और बढ़ गया। एक बार शुशीला ने उगना को किसी कार्य के लिए बुलाया किन्तु भगवान शंकर विद्यापति का भजन सुनने में मग्न थे। अपनी आज्ञा की ऐसी अवहेलना होते देख सुशीला क्रोध से भर गयी। उसने वहीँ रसोई से एक जलती हुई छड़ी उठाई और उगना को पीटना शुरू कर दिया।
जब विद्यापति ने ऐसा देखा तो अनायास ही उनके मुख से निकल गया कि "तुमने ये क्या किया? ये साक्षात् भगवान शंकर हैं।" विद्यापति का ऐसा कहना था कि अपने वरदान के अनुसार भगवान शंकर वहाँ से अंतर्धान हो गए। अपने स्वामी को इस प्रकार जाता देख विद्यापति पागलों की तरह उन्हें सब जगह खोजने लगे। अपने भक्त की ऐसी हालत देख कर एक बार फिर भगवान् शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता किन्तु तुम्हारे लिए मैं सदा इस स्थान पर शिवलिंग के रूप में रहूँगा। उनके जाते ही वहाँ एक शिवलिंग प्रकट हुआ जिसे विद्यापति ने "उगना महादेव" की संज्ञा दी। आज भी मधुबनी में देश भर से लोग इस धार्मिक स्थल के दर्शनों को आते हैं।
उन्होंने आश्चर्य से उगना से पूछा कि इस निर्जन वन में उसे गंगाजल कहाँ से प्राप्त हुआ। उगना रुपी भगवान ने बात को बदलने की कोशिश की किन्तु तबतक विद्यापति समझ चुके थे कि ये कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। वे वहीँ भगवान् शिव के ध्यान को बैठ गए। अपने भक्त को इस हालत में देख कर अंततः भगवान शंकर अपने रूप में आ गए। अपने आराध्य को अपने सामने देख कर विद्यापति भाव-विभोर हो गए। भगवान शंकर ने विद्यापति से वरदान माँगने को कहा। इसपर विद्यापति ने जीवन पर्यन्त उन्हें अपने घर पर रहने का वरदान माँगा। भगवान् ने मुस्कुराते हुए कहा कि वे जीवन भर किसी के पास नहीं रह सकते अतः वे कोई और वरदान माँग ले किन्तु विद्यापति अपने हठ पर अड़े रहे।
ऐसा देख कर भगवान् शंकर ने कहा कि वे उनके घर पर रहेंगे किन्तु जैसे ही विद्यापति उनका रहस्य किसी को बताएँगे, उसी क्षण वे उन्हें छोड़ कर चले जाएँगे। विद्यापति ने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया। वे दोनों वापस घर आ गए। विद्यापति को तो जैसे पूरा संसार मिल गया। वे और अधिक उगना को लेकर भगवान् के भजन में रम गए। इस कारण उनकी पत्नी सुशीला का असंतोष और बढ़ गया। एक बार शुशीला ने उगना को किसी कार्य के लिए बुलाया किन्तु भगवान शंकर विद्यापति का भजन सुनने में मग्न थे। अपनी आज्ञा की ऐसी अवहेलना होते देख सुशीला क्रोध से भर गयी। उसने वहीँ रसोई से एक जलती हुई छड़ी उठाई और उगना को पीटना शुरू कर दिया।
जब विद्यापति ने ऐसा देखा तो अनायास ही उनके मुख से निकल गया कि "तुमने ये क्या किया? ये साक्षात् भगवान शंकर हैं।" विद्यापति का ऐसा कहना था कि अपने वरदान के अनुसार भगवान शंकर वहाँ से अंतर्धान हो गए। अपने स्वामी को इस प्रकार जाता देख विद्यापति पागलों की तरह उन्हें सब जगह खोजने लगे। अपने भक्त की ऐसी हालत देख कर एक बार फिर भगवान् शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता किन्तु तुम्हारे लिए मैं सदा इस स्थान पर शिवलिंग के रूप में रहूँगा। उनके जाते ही वहाँ एक शिवलिंग प्रकट हुआ जिसे विद्यापति ने "उगना महादेव" की संज्ञा दी। आज भी मधुबनी में देश भर से लोग इस धार्मिक स्थल के दर्शनों को आते हैं।
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