गुजरात में वड़ोदरा के पास, भरुच जिले में अरब सागर के पास स्थित स्तंभेश्वर महादेव का मंदिर अपने आप में एक आश्चर्य है जहाँ वह दिन में एक बार दर्शन देकर समुद्र में गायब हो जाता है। इसमें ४ फुट ऊँचा शिवलिंग स्थित है जिसका जलाभिषेक खुद समुद्र करता है। यह मंदिर समुद्र की तेज लहरों में अपने आप गायब हो जाता है और कुछ देर बार खुद बाहर आ जाता है।
इस मंदिर की खोज करीब २०० वर्ष पहले हुई थी। इस मंदिर में शिवलिंग के दर्शन दिन में केवल एक बार ही होते हैं और बाँकी समय यह मंदिर समुद्र में डूबा रहता है। समुद्र तट पर दिन में दो बार ज्वार भाटा आता है, ज्वार भाटे के कारण पानी मंदिर के अंदर पहुंच जाता है। ऐसा हर रोज सुबह और शाम होता है। ज्वार के वक्त शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। उस समय वहां किसी को भी जाने की अनुमित नहीं होती है। ऐसा क्यों होता है ये किसी को ज्ञात नहीं।
शिवपुराण और स्कंदपुराण में भी इस शिवलिंग का वर्णन दिया गया है जिससे साबित होता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। विशेषकर स्कंदपुराण में इस मंदिर के निर्माण के बारे में काफी विस्तार से बताया गया है। एक कथा के अनुसार ताड़कासुर नाम के राक्षस ने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और फिर उनसे अमर होने का वरदान मांगा। इसपर महादेव ने कहा कि जो पैदा हुआ है वो अवश्य मरेगा इसीलिए वे उसे अमरता का वरदान नहीं दे सकते। इसपर उसने एक दूसरा वरदान माँगा कि उसे केवल छः दिन की आयु वाला शिवपुत्र ही मार सके। महादेव ने उसे ये वरदान दे दिया। इस वरदान के मद में ताड़कासुर ने तीनों लोक में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया।
राक्षस के आतंक से सभी देवता परेशान हो गए और वे भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुँचे। ब्रह्मदेव ने कहा कि देवी सती की मृत्यु के पश्चात महादेव पूर्ण योगी का जीवन बिता रहे हैं इसी कारण देवी पार्वती की विनती पर ध्यान नहीं दे रहे। किन्तु नारायण के सुझाव पर कामदेव ने महादेव की साधना भंग की। इससे कामदेव तो भस्म हो गए किन्तु इसके बाद शिव-शक्ति के संयोग से कार्तिकेय पैदा हुए और उन्होंने ताड़कासुर का वध कर दिया। जब कार्तिकेय को यह पता लगा कि ताड़कासुर उनके पिता महादेव का परम भक्त था तो उन्हें काफी बुरा लगा तब भगवान विष्णु ने उन्हें एक उपाय बताया कि उस जगह शिवलिंग की स्थापना कर दी जाये और इस प्रकार महादेव के इस अनोखे मंदिर की स्थापना हुई।
राक्षस के आतंक से सभी देवता परेशान हो गए और वे भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुँचे। ब्रह्मदेव ने कहा कि देवी सती की मृत्यु के पश्चात महादेव पूर्ण योगी का जीवन बिता रहे हैं इसी कारण देवी पार्वती की विनती पर ध्यान नहीं दे रहे। किन्तु नारायण के सुझाव पर कामदेव ने महादेव की साधना भंग की। इससे कामदेव तो भस्म हो गए किन्तु इसके बाद शिव-शक्ति के संयोग से कार्तिकेय पैदा हुए और उन्होंने ताड़कासुर का वध कर दिया। जब कार्तिकेय को यह पता लगा कि ताड़कासुर उनके पिता महादेव का परम भक्त था तो उन्हें काफी बुरा लगा तब भगवान विष्णु ने उन्हें एक उपाय बताया कि उस जगह शिवलिंग की स्थापना कर दी जाये और इस प्रकार महादेव के इस अनोखे मंदिर की स्थापना हुई।
इसके अतिरिक्त कार्तिकेय ने विश्वकर्मा से तीन और शिवलिंग बनाने की प्रार्थना की और उन्हें तीन अलग-अलग स्थान पर स्थापित किया। ये आज प्रतिगवेश्वर, कपालेश्वर और कुमारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करते हुए कार्तिकेय ने समुद्र के जल से उसका अभिषेक किया और वहाँ तिल के बीज बोये। तभी से महादेव को तिल अतिप्रिय हैं और शिव पूजा में विशेषकर तिल का अर्पण किया जाता है। यहाँ पर उसने तारकासुर की आत्मा के लिए प्रार्थना की और तब वे उसकी हत्या के पाप से मुक्त हुए। मान्यता है कि समुद्र के जल के रूप में तारकासुर की आत्मा ही महादेव की पूजा करने के लिए आती है।
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