बहुत काल पहले विद्वानों की एक सभा में शास्त्रार्थ चल रहा था। उसी समय एक प्रश्न उठा कि सृष्टि में वो कौन है जिसकी सहनशीलता अपार है? तब कई विद्वानों ने अलग-अलग तर्क रखे। एक ने कहा कि जल सबसे सहनशील है क्यूंकि उसपर चाहे कितने प्रहार करो वो अंततः शांत हो जाता है। तब दूसरे ने वायु को सहनशील बताया जो जीव मात्र को जीने की शक्ति प्रदान करता है। तीसरे की दृष्टि में अग्नि सर्वाधिक सहनशील थी क्यूंकि वो संसार की समस्त अशुद्धिओं को नष्ट कर देती है। किसी ने आकाश को सहनशील बताया कि कितने आपदाओं से वो हमारी रक्षा करती है और जीवन के लिए जल भी प्रदान करती है।
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५१ वर्ष पुराना भागलपुर का "जय हनुमान मंदिर"
जब आप भागलपुर (बिहार) के खंजरपुर नामक स्थान पहुँचते हैं तो आपको एस.बी.आई. क्षेत्रीय कार्यालय के बाद और एस.एम. कॉलेज से पहले, बिलकुल चौराहे पर एक त्रिकोणीय भूमि पर स्थित एक छोटा किन्तु पुराना और महत्वपूर्ण हनुमान मंदिर दिखता है। इस मंदिर का नाम ही "जय हनुमान मंदिर" है। इस मंदिर की स्थापना आज से ५१ वर्ष पूर्व १९६७ में की गयी थी। इससे पहले उस खाली स्थान पर शहर के रिक्शेवालों का जमावड़ा रहता था जो मंदिर बनने के बाद उसी जगह थोड़ा बाईं ओर चला गया है। पहले वहाँ केवल हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गयी लेकिन बाद में वाहनों की अधिक आवाजाही को देखते हुए एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया।
कालनेमि - जिसने सदैव श्रीहरि से प्रतिशोध लिया
सतयुग में दो महाशक्तिशाली दैत्य हुए - हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष। ये इतने शक्तिशाली थे कि इनका वध करने को स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा। हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी को सागर में डुबो दिया। तब नारायण ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया। उसके दो पुत्र थे - अंधक एवं कालनेमि जो उसके ही समान शक्तिशली थे।
अष्ट मातृका
मातृका हिन्दू धर्म में माताओं का प्रसिद्ध समूह है जिनकी उत्पत्ति आदिशक्ति माँ पार्वती से हुई है। सप्तमातृकाओं में सात देविओं की गिनती की जाती है जिनकी पूजा वृहद् रूप से भारत, विशेषकर दक्षिण में की जाती है। नेपाल में विशेषकर अष्टमातृकाओं की पूजा की जाती है जो आठ देवियों का समूह है। इनमे से हर देवी किसी न किसी देवता/देवी की शक्ति को प्रदर्शित करती है। इनमे से पहली छः मातृका तो पूरे विश्व में एक मत से मान्य हैं किन्तु अंतिम दो के बारे में अलग-अलग जगह कुछ शंशय एवं विरोध है। यहाँ उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है।
जब कर्ण ने स्वर्ण पर्वत का दान दिया
वैसे तो विश्व में अनेकानेक दानवीर हुए हैं किन्तु कर्ण जैसा शायद ही कोई हो। इस लेख में हम दानवीर कर्ण से जुडी एक और कथा के बारे जानेंगे। एक बार कृष्ण पांडवों के साथ भ्रमण पर निकले। चलते-चलते वे चम्पानगरी की सीमा पर पहुँच गए जो कर्ण के अंगदेश की राजधानी थी। तब श्रीकृष्ण ने कहा "आज का दिन वास्तव में शुभ है कि हम महादानी कर्ण के राज्य के समीप आ पहुंचे हैं।" उनके ऐसा कहने पर भीम ने कहा - "हे माधव! कर्ण दानी है इसमें कोई संदेह नहीं किन्तु आप हर बार उसे महादानी क्यों कहते फिरते हैं? वो ऐसा क्या दान कर सकता है जो सम्राट युधिष्ठिर नहीं कर सकते?"
महाभारत के योद्धाओं के लिए भोजन कौन बनाता था?
महाभारत एक सागर के समान है और इसके अंदर कथा रुपी कितने मोती छिपे हैं ये शायद कोई नहीं जनता। आज मैं आपको जो कथा सुनाने जा रहा हूँ वो कदाचित आपने कभी सुनी नहीं होगी पर ये कथा दक्षिण, विशेषकर तमिलनाडु में बड़ी प्रचलित है। महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध कह सकते हैं क्यूंकि शायद ही कोई ऐसा राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।
कालिया नाग
श्रीकृष्ण और कालिया नाग के विषय में तो हम सभी जानते हैं पर कालिया नाग के वंश के विषय में हमें अधिक जानकारी नहीं है। कालिया नाग की कथा हमें भागवत पुराण, हरिवंश पुराण और महाभारत में मिलती है। आज इस लेख में हम कालिया नाग के विषय में ही जानेंगे।
जब हनुमान ने पूरे पर्वत शिखर को उखाड़ दिया
लंका का युद्ध चल रहा था। लंकापति रावण के अधिकांश महारथी मारे जा चुके थे। अब लंका केवल रावण और उसके पुत्र मेघनाद के भरोसे थी। मेघनाद एक बार श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से बाँध चुका था किन्तु गरुड़ ने दोनों को नागपाश से मुक्त कर दिया। जब रावण को ये सूचना मिली तो उसने एक बार फिर मेघनाद को युद्ध के लिए भेजा। मेघनाद ने घोर युद्ध किया। श्रीराम की ओर से लक्ष्मण उसका प्रतिकार करने आये। तो महारथियों का युद्ध देखने के लिए अन्य योद्धाओं ने अपने हाथ रोक लिए। दोनों के बीच बहुत देर तक युद्ध चलता रहा किन्तु कोई फैसला नहीं हो पाया।
श्रीकृष्ण के अनुसार कलियुग के लक्षण
पांडवों को जुए में छल से हराया जा चुका था और शर्त के अनुसार उन्हें वन में जाना था। जाने से पहले श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। तब सहदेव ने उनसे पूछा - "हे कृष्ण! हमने तो आज तक कोई पाप नहीं किया फिर हमें ये कष्ट क्यों उठाने पड़ रहे हैं?" तब कृष्ण ने कहा - "प्रिय सहदेव! द्वापरयुग अपने अंतिम चरण पर है। ये सब जो हो रहा है वो आने वाले कलियुग का प्रभाव है।"
हनुमदीश्वर शिवलिंग - जहाँ महादेव ने हनुमान का अभिमान भंग किया
रामायण और महाभारत में ऐसी कई कहानियाँ हैं जिसमे महाबली हनुमान ने दूसरों का अभिमान भंग किया। विशेषकर महाभारत में श्रीकृष्ण ने हनुमान जी के द्वारा ही अर्जुन, बलराम, भीम, सुदर्शन चक्र, गरुड़ एवं सत्यभामा के अभिमान को भंग करवाया था।