पांडवों को जुए में छल से हराया जा चुका था और शर्त के अनुसार उन्हें वन में जाना था। जाने से पहले श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। तब सहदेव ने उनसे पूछा - "हे कृष्ण! हमने तो आज तक कोई पाप नहीं किया फिर हमें ये कष्ट क्यों उठाने पड़ रहे हैं?" तब कृष्ण ने कहा - "प्रिय सहदेव! द्वापरयुग अपने अंतिम चरण पर है। ये सब जो हो रहा है वो आने वाले कलियुग का प्रभाव है।"
इसपर युधिष्ठिर ने आश्चर्य से पूछा - "वासुदेव! कलियुग तो अभी आया भी नहीं है और उसका इतना भयंकर परिणाम? जब कलियुग प्रारम्भ हो जाएगा तो क्या होगा? कृपया हमें कलियुग में काल की गति कैसी रहेगी ये बताने की कृपा करें।" इसपर कृष्ण ने कहा "आप सभी भाई वन में जाइये और जो कुछ भी दिखे आकर मुझे बताइये। उसी आधार पर मैं आपको कलियुग की गति बता पाउँगा।"
कृष्ण के ऐसा कहने पर पाँचों भाई वन में अलग-अलग दिशा में चल दिए। कुछ समय बाद जब सभी लौटे तो आश्चर्य से भरे हुए थे। कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा "अब आपलोग एक-एक करके बैठाइये कि आपने क्या-क्या देखा।" तब सभी भाइयों ने अपने आश्चर्यजनक अनुभव बताये:
- युधिष्ठिर: युधिष्ठिर ने कहा कि "हे माधव! मैंने एक दो सूंड वाले गज को देखा। इसका क्या अर्थ है?" तब कृष्ण ने कहा - "बड़े भैया! इसका अर्थ है कि कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा, जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। मन में कुछ और कर्म में कुछ। ऐसे ही लोगों का राज्य होगा। इसलिए इस तरह की स्थिति आने से पहले आप राज्य कर लीजिये।"
- भीम: भीम ने कहा - "कृष्ण मैंने जो देखा वो अत्यंत आश्चर्यजनक था। मैंने देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है। जन्म के बाद वह बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो गया।" इस पर कृष्ण ने कहा "मंझले भैया! इसका अर्थ ये है कि कलियुग का मनुष्य अपने पुत्र-पौत्रों का आवश्यकता से अधिक लाड करेगा। उनकी अपने संतानों के प्रति ममता इतनी बढ़ जाएगी कि उनकी संतानों को अपने विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा। मोह-माया में ही घर बर्बाद हो जाएगा। किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे, किंतु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोएंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा? इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह-माया और परिवार में ही बांधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बेचारा अनाथ होकर मरेगा।"
- अर्जुन: अर्जुन ने कहा कि "हे माधव! मैंने जो देखा वह तो इससे भी कहीं ज्यादा आश्चर्यजनक था। मैंने देखा कि एक पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएं लिखी हुई हैं और वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है। इसका क्या अर्थ है?" तब कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा "पार्थ! कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे, जो बड़े ज्ञानी और ध्यानी कहलाएंगे। वे ज्ञान की चर्चा तो करेंगे, लेकिन उनके आचरण राक्षसी होंगे। बड़े पंडित और विद्वान कहलाएंगे किंतु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाए। संस्था के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और संस्था हमारे नाम से हो जाए। हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध हो। कौन, कब, किस पद से हटे और हम उस पर चढ़े। चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किंतु उनकी दृष्टि तो धन और पद के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी। ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरुष होगा।"
- नकुल: नकुल ने कहा "भैया! मैंने देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी-सी शिला लुढ़कती हुई आती है और कितने ही विशालकाय वृक्ष एवं शिलाओं से टकराकर उनको नीचे गिराते हुए आगे बढ़ जाती है। विशालकाय वृक्ष और शिलाएं भी उसे रोक न सके। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह शिला स्थिर हो गई।" तब श्रीकृष्ण ने कहा "प्रिय नकुल! कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रुकेगा, न ही सत्ता के वृक्षों से रुकेगा। किंतु हरि नाम के एक छोटे से पौधे से मनुष्य जीवन का पतन होना रुक जाएगा। अतः कलियुग में हरि-नाम ही मोक्ष का एक मात्र मार्ग होगा।"
- सहदेव: सहदेव ने कहा "मधुसूदन! मैंने देखा कि छह-सात कुएं हैं और आसपास के कुओं में पानी है किंतु बीच का कुआं खाली है। बीच का कुआं गहरा है फिर भी पानी नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है और इसका क्या अर्थ है?" इसपर कृष्ण ने कहा "वत्स! कलियुग में धनाढ्य लोग लड़के-लड़की के विवाह में, मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रुपए खर्च कर देंगे, परंतु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा-प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं। उनका अपना ही सगा भूख से मर जाएगा और वे देखते रहेंगे। दूसरी और मौज, मदिरा, मांस-भक्षण, सुंदरता और व्यसन में पैसे उड़ा देंगे किंतु किसी के दो आंसू पोंछने में उनकी रुचि न होगी। कहने का तात्पर्य यह कि कलियुग में अन्न के भंडार होंगे लेकिन लोग भूख से मरेंगे। सामने महलों, बंगलों में एशोआराम चल रहे होंगे लेकिन पास की झोपड़ी में आदमी भूख से मर जाएगा। एक ही जगह पर असमानता अपने चरम पर होगी।'
ये वार्तालाप भले ही हजारों वर्ष पूर्व का है किन्तु आज जब हम अपने आस-पास देखते हैं तो पाते है कि श्रीकृष्ण की बातें उस समय भी बिलकुल सटीक थी। आज हम अपने चारों ओर यही सब तो देख रहे हैं। अतः उचित ये ही है कि इस कथा से सीख लें और अपने जीवन में आवश्यक बदलाव करें।
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