कल से सावन का आरम्भ हुआ तो मैंने सोचा महादेव के १०८ पवित्र नामों से इसकी शुरुआत की जाये। भगवान शिव के इन नामों के विषय में एक कथा है कि जब नारायण क्षीरसागर में निद्रामग्न थे तो उनकी नाभि से एक कमलपुष्प पर परमपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। परमपिता सहस्त्र वर्षों तक भगवान विष्णु की चेतना में आने की प्रतीक्षा करते रहे। एक दिन उनके समक्ष सदाशिव एक अग्निमयी ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए किन्तु परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें नमस्कार नहीं किया।
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स्वर्भानु (राहु एवं केतु)
स्वर्भानु का नाम शायद आपने पहली बार सुना हो किन्तु मुझे विश्वास है कि उसका दूसरा नाम आप सभी जानते होंगे। कल ही ही इस सदी का सबसे लम्बा चंद्रग्रहण समाप्त हुआ और स्वर्भानु भी उससे सम्बंधित है। इस नाम को शायद आप ना जानते हों किन्तु उसका दूसरा नाम हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्द पात्रों में से एक है और हम सभी उससे परिचित हैं। हम उसे राहु एवं केतु के नाम से जानते हैं। अधिकतर धर्मग्रंथों में केवल राहु का विवरण ही मिलता है जिससे बाद में केतु अलग होता है किन्तु उसका वास्तविक नाम स्वर्भानु था।
शिव को क्यों प्रिय है चिता की राख?
हम सभी ने देखा है कि भोलेनाथ को वैसी चीजें ही पसंद हैं जो अन्य किसी देवता को पसंद नहीं। ये भी कह सकते हैं कि जो समस्त विश्व के द्वारा त्याज्य हो उसे महादेव अपने पास शरण देते हैं। चाहे वो चंद्र हो, वासुकि, हलाहल, भूत-प्रेत, राक्षस, दैत्य, दानव, पिशाच, श्मशान अथवा भस्म। देवों में देव महादेव ही ऐसे हैं जो देव-दानव सभी के द्वारा पूज्य हैं।
परिक्रमा का महत्त्व एवं नियम
परिक्रमा हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नवग्रह सूर्य की और सूर्य भी महासूर्य की परिक्रमा करते हैं। जब कार्तिकेय और गणेश में प्रतिस्पर्धा हुई थी तो कार्तिकेय ने पृथ्वी की और गणेश ने शिव-पार्वती की सात-सात परिक्रमाएँ की थी। कदाचित परिक्रमाओं का चलन उसी समय से प्रारम्भ हुआ।
महर्षि जाजलि
जाजलि पौराणिक युग के एक महान ऋषि थे। एक बार उन्होंने कठिन तपस्या करने की ठानी। वे एक वन पहुँचे जो जँगली जानवरों से भरा हुआ था। उसी वन में उन्होंने एक जगह अन्न-जल त्याग कर तपस्या प्रारम्भ की। वे तपस्या में ऐसे लीन हुए कि स्तंभित से हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी प्राण-वायु को भी नियंत्रित कर रोक लिया और अविचल भाव से खड़े तपस्या करते रहे। बहुत समय बीत गया और उनकी लम्बी जटाओं ने उनके शरीर को घेर लिया। आस पास की लताएँ भी उनके चारो ओर लिपट गयीं। उनको एक वृक्ष समझ कर कई पक्षियों ने उनके ऊपर अपना घोंसला बना लिया।
जब दत्तात्रेय ने जीमकेतु का अभिमान भंग किया
प्राचीन काल में एक बड़े सदाचारी राजा थे जीमकेतु। उनके राज्य में सभी बिना किसी चिंता के निवास करते थे तथा पूरी प्रजा सुखी एवं समपन्न थी। जीमकेतु ने अपने सामर्थ्य से अतुल धन संचित किया और उनकी वीरता के कारण आस-पास के राज्य में उसका कोई शत्रु ना रहा। समस्त जगत में उसकी प्रशंसा होने लगी। इतना प्रचुर धन और सम्मान देखकर दुर्भाग्यवश उसके मन में अपनी अथाह संपत्ति का अहंकार पैदा हो गया। राज-काज तो वो पहले जैसा करते थे किन्तु धन के अहंकार के कारण उसके स्वाभाव में परिवर्तन आ गया।
रघुपति राघव राजा राम - वास्तविक भजन
महात्मा गांधी गीता का एक श्लोक हमेशा कहा करते थे - अहिंसा परमो धर्मः, जबकि पूर्ण श्लोक इस प्रकार है:
अहिंसा परमो धर्मः।
धर्म हिंसा तदैव च ।।
अर्थात: अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है।
रहस्यलोक सा भागलपुर का खिरनी घाट
इस बार की भागलपुर यात्रा में ये आखिरी मंदिर है। खिरनी घाट भागलपुर के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है जो बड़ी खंजरपुर के पास स्थित है। बचपन में मैं पता नहीं कितनी बार वहाँ गया हूँ। हालाँकि उस समय शाम के वक्त वहाँ जाने में डर भी लगता था क्यूंकि वो इलाका बीच शहर में होते हुए भी थोड़ा अगल-थलग है और वहाँ का माहौल भी थोड़ा अजीब है। बचपन में गंगा कई बार सीढ़ियों को पर कर मंदिर परिसर में चली आती थी किन्तु अब भागलपुर के अन्य घाटों की तरह यहाँ भी गंगा सूख गयी है। हालाँकि माहौल आज भी यहाँ का वैसा ही शांत है।
२१० वर्ष प्राचीन भागलपुर का दुग्धेश्वरनाथ महादेव
आप भागलपुर के किसी भी व्यक्ति से अगर ये पूछे कि इस शहर का सबसे व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका कौन सा है तो वो वेराइटी चौक का नाम लेगा। भागलपुर का मुख्य बाजार खुद ही बेहद भीड़ वाला इलाका है और इस बाजार के बीचोंबीच स्थित इस चौक पर तो पैदल चलना भी मुश्किल है। इसी चौंक पर एक शिव मंदिर है जिसपर शायद ही वहाँ से गुजरने वाला कोई व्यक्ति सर ना झुकाता हो।