परिक्रमा हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नवग्रह सूर्य की और सूर्य भी महासूर्य की परिक्रमा करते हैं। जब कार्तिकेय और गणेश में प्रतिस्पर्धा हुई थी तो कार्तिकेय ने पृथ्वी की और गणेश ने शिव-पार्वती की सात-सात परिक्रमाएँ की थी। कदाचित परिक्रमाओं का चलन उसी समय से प्रारम्भ हुआ।
ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों (प्रा + दक्षिणा) में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा। यानी कि ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। सरल शब्दों में कहा जाये तो घडी की सुइयों की दिशा में आगे बढ़ना।
प्रुमख परिक्रमाएँ:
- देवमंदिर और मूर्ति परिक्रमा
- नदी परिक्रमा
- पर्वत परिक्रमा
- वृक्ष परिक्रमा
- तीर्थ परिक्रमा
- चार धाम परिक्रमा
- भरत खण्ड परिक्रमा
- विवाह परिक्रमा
परिक्रमा के नियम:
- परिक्रमा केवल दक्षिण दिशा की ओर यानि घडी की सुइयों के जैसे करें।
- परिक्रमा केवल नंगे पैर करें।
- एक बार परिक्रमा शुरू करें तो समाप्ति पर ही रुकें, बीच में नहीं।
- अगर स्नान कर अथवा गीले शरीर में परिक्रमा करें तो अति उत्तम है।
- परिक्रमा करते समय कदापि बात-चीत ना करें।
- जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हों, अगर उनके मन्त्रों का जाप साथ-साथ करें तो अति उत्तम है।
- परिक्रमा करते समय अगर हाथ में रुद्राक्ष की माला हो तो बहुत शुभ होता है।
- परिक्रमा हमेशा देवता के मुख से शुरू करनी चाहिए।
- जहाँ से आरम्भ किया हो, परिक्रमा का अंत भी उसी जगह करना चाहिए। अधूरी परिक्रमा का फल नहीं प्राप्त होता है।
- शिवजी की परिक्रमा में विशेष ध्यान रखें। केवल उन्ही की आधी परिक्रमा की जाती है।
किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए: कर्म लोचन नामक ग्रंथ में लिखा गया है:
एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके।
हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।।
अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। अन्य देवताओं के बारे में भी परिक्रमा के विषय में अलग-अलग मत हैं।
- भगवान शिव: आधी परिक्रमा, क्यूंकि महादेव के अभिषेक की धारा को लांघना अशुभ माना गया है। शिवलिंग पर चढ़ाये जल की धारा जहाँ से निकल रही हो, वही से वापस लौट जाना चाहिए। उसे कदापि ना लांघें।
- भगवान विष्णु: चार परिक्रमा। इसके अतिरिक्त भगवान विष्णु के किसी भी अवतार की चार परिक्रमा करने का विधान है।
- शक्ति: दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती या शक्ति के कोई भी अन्य रूप की एक परिक्रमा करने का विधान है।
- हनुमानजी: तीन परिक्रमा
- श्रीगणेश: तीन परिक्रमा
- सूर्यदेव: सात परिक्रमा
- शनिदेव: सात परिक्रमा
- भैरव: तीन परिक्रमा
इसके अतिरिक्त पीपल एवं वटवृक्ष की सात अथवा १०८ परिक्रमाएं करना चाहिए। जिन देवताओं की प्रदक्षिणा का विधान नही प्राप्त होता है, उनकी तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है।
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