श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री घृष्णेश्वर महादेव की पावन कथा के साथ आज द्वादश ज्योतिर्लिंग श्रृंखला समाप्त हो रही है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से लगभग ३५ किलोमीटर दूर, एलोरा की गुफाओं से सिर्फ १ किलोमीटर की दूरी पर भगवान शिव का १२वां ज्योतिर्लिंग श्री घृष्णेश्वर महादेव स्थित है। यहाँ से आठ किलोमीटर दूर दौलताबाद के किले में भी श्री धारेश्वर शिवलिंग स्थित है। औरंगाबाद, जो मुग़ल सल्तनत के क्रूर बादशाह औरंगजेब की राजधानी थी, इस ज्योतिर्लिंग के संघर्ष की साक्षी है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित भगवान शिव के ११वें ज्योतर्लिंग श्री रामेश्वरम की महत्ता अपरम्पार है। उत्तर में जो स्थान श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का है वही दक्षिण में रामेश्वरम महादेव का। ये भारत के चार धामों में से एक माना जाता है। उनमे से तीन धाम बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी एवं पुरी जगन्नाथ जहाँ भगवान विष्णु को समर्पित हैं, रामेश्वरम में हरि एवं हर का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा और भी बड़ी इस लिए हो जाती है क्यूंकि इसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी।

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
"चिताभूमि पर स्थापित बैद्यनाथ ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग है।"
ये कथन शिवपुराण में लिखा है और इसका वर्णन मैं इसी कारण कर रहा हूँ कि महाराष्ट्र में स्थित परली बैद्यनाथ और हिमाचल में स्थित बैद्यनाथ को वहाँ के स्थानीय लोग असली ज्योतिर्लिंग मानते हैं किन्तु चिताभूमि (देवघर) में स्थिति बाबा बैद्यनाथ को ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस स्थान को चिताभूमि इसी कारण कहा जाता है क्यूंकि ये एक शक्तिपीठ भी माना जाता है जहाँ माता सती का ह्रदय गिरा था। इसी कारण इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
गुजरात के द्वारकापुरी से करीब २५ किलोमीटर दूर भगवान शिव का नवां ज्योतिर्लिंग श्री नागेश्वर महादेव स्थित है जिसके दर्शन को दूर-दूर से लोग आते हैं। इसकी एक विशेषता ये भी है कि अन्य ज्योतिर्लिंगों की तरह इस ज्योतिर्लिंग का अभिषेक साधारण जल से नहीं किया जा सकता। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक केवल गंगाजल से किया जाता है जो कि मंदिर प्रशासन की ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। इस मंदिर में महादेव की एक विशाल प्रतिमा है जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है। ये इतनी विशाल है कि मंदिर की ओर जाते हुए ये कई किलोमीटर पहले से ही दिख जाती है।

श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र के नाशिक शहर से करीब ३० किलोमीटर दूर भगवान शिव का अति पावन त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को विशेष इस कारण माना जाता है क्यूंकि यही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु एवं परमपिता ब्रह्मा भी विराजमान है। विशेषकर भगवान ब्रह्मदेव की गिने चुने अवतरणों में से एक ये भी है। इस ज्योतिर्लिंग के तीन मुख हैं जो त्रिदेवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही साथ इनके प्रतीकात्मक तीन पिंड भी हैं जिनमे से एक ब्रह्मा, एक विष्णु एवं एक त्रयंबकेश्वर रुपी भगवान महारुद्र हैं।

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
जो सृष्टि के आरम्भ से पूर्व भी था और सृष्टि के विनाश के बाद भी रहेगा वही काशी है। कहते हैं कि काशी का लोप कभी नहीं होता क्यूंकि ये नगरी स्वयं महादेव के त्रिशूल पर स्थित है। स्कन्द पुराण में शिव यमराज से कहते हैं - "हे धर्मराज! तुम प्राणियों के कर्मों के अनुसार उसकी मृत्यु का प्रावधान करो किन्तु ५ कोस में फैली इस काशी नगरी से दूर ही रहना क्यूंकि ये मुझे अत्यंत प्रिय है।" इस नगरी को स्वयं देवी गंगा का वरदान है कि जो कोई भी इस नगरी में आकर गंगास्नान कर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है वो निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति केवल काशी में अपने प्राण भी त्यागता है तो वो सीधे स्वर्गलोक को जाता है।

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र के पुणे जिले से करीब ११० किलोमीटर दूर रायचूर जिले के सह्याद्रि की मनोरम पहाड़ियों में भीमा नदी के तट पर भगवान शिव का छठा ज्योतिर्लिंग श्री भीमाशंकर महादेव स्थापित है। ये मंदिर समुद्र तल से लगभग ३२५० फ़ीट ऊंचाई पर स्थित है। इसमें स्थापित शिवलिंग आम शिवलिंग से बहुत वृहद् या मोटा है और इसी कारण इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का शिखर १८वीं सदी में नाना फरडावीस ने बनवाया था, जिसमे विशेष रूप से एक विशाल घंटा शामिल है। यही नहीं मराठा शासक छत्रपति शिवाजी ने इस मंदिर को कई तरह की सुविधाएँ दी।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ वैसे ही सुशोभित होते हैं जैसे ग्रहों के बीच में सूर्यनारायण। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय के "केदार" नामक चोटी पर बसे ये स्थान इतना मनोरम है कि यही बस जाने को जी चाहता है। किन्तु ये स्थान मनोरम होने के साथ-साथ दुर्गम भी है। इस ज्योतिर्लिंग का महत्त्व इसी लिए भी अधिक है क्यूंकि ये ज्योतिर्लिंग होने के साथ-साथ चार धामों में से भी एक है। साथ ही साथ ये पञ्च-केदार में से भी एक है। बद्रीनाथ धाम के निकट इस धाम पर आपको हरि (बद्री) और हर (केदार) का अनोखा सानिध्य देखने को मिलता है। कहा गया है:

श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में परम पावन नर्मदा नदी के बीच स्थित शिवपुरी द्वीप पर भगवान महादेव का चौथा ज्योतिर्लिगं श्री ॐकारेश्वर स्थित है। शिवद्वीप, जिसे मान्धाता द्वीप भी कहते हैं, उसकी आकृति भी आश्चर्यजनक रूप से ॐ के समान है। इस ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ नर्मदा नदी का भी बड़ा महत्त्व है। शास्त्र कहते हैं कि जो फल यमुना में १५ स्नान और गंगा में ७ स्नान करने पर मिलता है वो ॐकारेश्वर महादेव की कृपा से नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

अर्थात: आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

हैदराबाद से करीब २०० किलोमीटर दूर आंध्र के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम पहाड़ियों की प्राकृतिक सौंदर्य के बीच महादेव का द्वितीय ज्योतिर्लिंग श्रीमल्लिकार्जुन स्थित है। वैसे तो भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों का अत्यधिक महत्त्व है पर उसपर भी ये ज्योतिर्लिंग अद्वितीय एवं विशेष है। इसका कारण ये है कि यहाँ महादेव के साथ-साथ माता पार्वती भी विराजती है तथा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ शक्तिपीठों में से भी एक है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

गुजरात के सौराष्ट्र में प्रभास तीर्थ पर बना सोमनाथ का मंदिर अपनी अदभुत कलाकृति के साथ-साथ भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग होने के कारण भी प्रसिद्ध है। ये शिवलिंग अत्यंत प्राचीन है क्यूंकि इसकी स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। इसके बारे में एक कथा है कि ब्रह्मपुत्र प्रजापति दक्ष ने चंद्र को अपनी २७ कन्याओं का दान किया। आरम्भ में सभी उनके साथ सुख पूर्वक रह रही थी किन्तु चंद्रदेव का अपनी पत्नी रोहिणी पर अधिक प्रेम था। वो उससे इतना प्रेम करते थे कि उनका ध्यान अन्य पत्निओं की तरफ नहीं जाता था।

द्वादश ज्योतिर्लिंग

कई वर्षों से सोच रहा था कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर एक लेख लिखूं। इस बार श्रावण के इस पवित्र अवसर पर हरेक ज्योतिर्लिंग पर एक लेख प्रकाशित करूँगा। सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग का वर्णन तब आता है जब सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु एवं परमपिता ब्रह्मा के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है। तब उनके बीच अग्नि प्रज्वलित एक ज्योतिर्लिंग उपस्थित होता है।