आदौ देवकीदेवी गर्भजननं गोपीगृहे वर्द्धनम् ।
मायापूतन जीविताप हरणम् गोवर्धनोद्धरणम् ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हननं कुंतीतनुजावनम् ।
भावार्थ यह है कि मथुरा में राजा कंस के बंदीगृह में भगवान विष्णु का भगवान श्रीकृष्ण के रुप में माता देवकी के गर्भ से अवतार हुआ। देवलीला से पिता वसुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचाया। कंस ने मृत्यु भय से श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा। भगवान श्रीकृष्ण ने उसका अंत कर दिया। यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के दंभ को चूर कर गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊं गली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। बाद में मथुरा आकर भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर दिया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरव वंश का नाश हुआ। पाण्डवों की रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से कर्म का संदेश जगत को दिया। अंत में प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण हुआ।
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