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वाल्मीकि रामायण - एक दृष्टिकोण
तुलसी रामायण की जगह वाल्मिकी रामायण क्यों? वाल्मिकी रामायण में राम पर तंज हैं, प्रश्न है। सीता का वनगमन है। लव-कुश के तीखे प्रश्न बाण हैं। तुलसी रामायण जहां उत्तरकांड पर खत्म हो जाती है, वाल्मिकी रामायण में रावण और हनुमान की जन्म कथा, राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति और रामराज्य में कुत्ते के न्याय की उपकथाएं, सीतावनगमन, लवकुश जन्म, अश्वमेघ यज्ञ, लव-कुश का रामायण गान, सीता का भूमि प्रवेश, लक्ष्मण का परित्याग सबकुछ समाहित है।
श्रीकृष्ण का पूर्वजन्म
जब कंस ने ये सुना कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी तब उसने उसे मारने का निश्चय किया। बाद में इस शर्त पर कि देवकी और वसुदेव अपनी सभी संतानों को जन्म लेते ही उसके हवाले कर देगी, उसने दोनों के प्राण नहीं लिए किन्तु दोनों को कारागार में डाल दिया। एक-एक कर कंस ने दोनों के सात संतानों का वध कर दिया।
करक चतुर्थी (करवा चौथ)
कल (शनिवार, २७ अक्टूबर) को करक चतुर्थी का पर्व है जिसे आम भाषा में करवा चौथ कहा जाता है। सनातन धर्म में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग को देने वाला माना जाता है। करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के पवित्र प्रेम के रूप में मनाया जाता है जो एक दूसरे के प्रति अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है।
कर्म तथा ज्ञान का अंतर एवं परमात्मा दर्शन
हमारे शास्त्रों में दो भागों का वर्णन बतलाया गया है - एक का नाम प्रवृत्ति धर्म और दूसरे को निवृत्ति धर्म कहा गया है। प्रवृत्ति मार्ग को कर्म और निवृत्ति मार्ग को ज्ञान भी कहते है। कर्म (अविधा से मनुष्य बंधन में पड़ता है और ज्ञान से वह बंधनमुक्त हो जाता है। कर्म से मरने के बाद जन्म लेना पड़ता है और सोलह तत्वों से बने हुए शरीर की प्राप्ति होती है किन्तु ज्ञान से नित्य, अव्यक्त एवं अविनाशी परमात्मा प्राप्त होते है।
माँ दुर्गा
आज नवरात्रि का पर्व समाप्त हो रहा है। आज विजयादशमी के दिन ही देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। आज के दिन ही श्रीराम ने भी रावण का वध किया था। वैसे तो देवी दुर्गा को आदिशक्ति माँ पार्वती का ही एक रूप माना जाता है किन्तु उनका ये रूप इसीलिए विशेष है क्यूँकि देवी दुर्गा की उत्पत्ति मूलतः त्रिदेवों से हुई। इन्हे विजय की देवी माना जाता है जिनकी कृपा से देवताओं ने अत्याचारी असुर से मुक्ति पायी और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया।
दस महाविद्या
नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है जो देवी पार्वती के नौ रूपों को समर्पित है। इनके अतिरिक्त माँ पार्वती का जो मुख्य रूप है वो देवी काली का है जिन्हे महाकाली भी कहते हैं। यद्यपि देवी काली माँ पार्वती का ही एक रूप मानी जाती है किन्तु बहुत कम लोगों को पता है कि देवी काली की उत्पत्ति वास्तव में भगवान शिव की प्रथम पत्नी माँ सती द्वारा हुई थी। इसके विषय में एक बहुत ही रोचक कथा हमें पुराणों में मिलती है। प्रजापति दक्ष परमपिता ब्रह्मा के प्रथम १६ मानस पुत्रों में से एक थे जिनकी पुत्रिओं से ही इस संसार का विस्तार हुआ।
नवरात्रि पूजा विधि
पूरे वर्ष में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है। बुधवार से आरंभ होने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है । "नवरात्र" जगदंबा की नवरात्रि ९ रात्रियों से संबंधित है। ९ दिन तक माँ भगवती की के अलग रूप की पूजा होती है।
यमराज
महर्षि कश्यप एवं अदिति पुत्र सूर्यनारायण का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। उनसे उन्हें वैवस्वत मनु, यम, अश्वनीकुमार, रेवंत नमक पुत्र एवं यमी (यमुना) नामक पुत्री की प्राप्ति हुई। यमुना ने ही सर्वप्रथम यम को धागा बांध कर रक्षा बंधन का आरम्भ किया था जिसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।
नवरात्रि
आज से भारत में नवरात्रि का आरम्भ हो गया है जो आने वाले दस दिनों तक चलेगा और विजयादशमी (दहशरा) पर समाप्त होगा। ये भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसमें देवी पार्वती (दुर्गा) के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन्हे नवदुर्गा भी कहा जाता है। इन सभी का पूजन बारी-बारी से किया जाता है और सभी का वाहन सिंह कहा जाता है।
जब हनुमान कुम्भकर्ण से शर्त हार गए
लंका में युद्ध अपनी चरम सीमा पर था। श्रीराम की सेना आगे बढ़ती ही जा रही थी और रावण के अनेकानेक महारथी रण में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। अब तक रावण भी समझ गया था कि श्रीराम की सेना से जीतना उतना सरल कार्य नहीं है जितना वो समझ रहा था। तब उसने अपने छोटे भाई कुम्भकर्ण को जगाने का निर्णय लिया जो ब्रह्मदेव के वरदान के कारण ६ महीने तक सोता रहता था। जब कुम्भकर्ण नींद से जागा तो रावण ने उसे स्थिति से अवगत कराया। इसपर कुम्भकर्ण ने रावण को उसके कार्य के लिए खरी-खोटी तो अवश्य सुनाई किन्तु अपने भाई की सहायता से पीछे नहीं हटा।
नंदी
प्राचीन काल में एक ऋषि थे "शिलाद"। उन्होंने ये निश्चय किया कि वे ब्रह्मचारी ही रहेंगे। जब उनके पित्तरों को ये पता कि शिलाद ने ब्रह्मचारी रहने का निश्चय किया है तो वे दुखी हो गए क्यूँकि जबतक शिलाद को पुत्र प्राप्ति ना हो, उनकी मुक्ति नहीं हो सकती थी। उन्होंने शिलाद मुनि के स्वप्न में ये बात उन्हें बताई। शिलाद विवाह करना नहीं चाहते थे किन्तु अपने पित्तरों के उद्धार के लिए पुत्र प्राप्ति की कामना से उन्होंने देवराज इंद्र की तपस्या की।
देवकी के आठों पुत्रों के नाम
श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी हम सभी जानते हैं। जब कंस को ये पता चला कि उसकी चचेरी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा तो उसने देवकी को मारने का निश्चय किया। वसुदेव के आग्रह पर वो उन दोनों के प्राण इस शर्त पर छोड़ने को तैयार हुआ कि वे दोनों अपने नवजात शिशु को पैदा होते ही उसके सुपुर्द कर देंगे। दोनों ने उनकी ये शर्त ये सोच कर मान ली कि जब कंस उनके नजात शिशु का मुख देखेगा तो प्रेम के कारण उन्हें मार नहीं पाएगा।