नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है जो देवी पार्वती के नौ रूपों को समर्पित है। इनके अतिरिक्त माँ पार्वती का जो मुख्य रूप है वो देवी काली का है जिन्हे महाकाली भी कहते हैं। यद्यपि देवी काली माँ पार्वती का ही एक रूप मानी जाती है किन्तु बहुत कम लोगों को पता है कि देवी काली की उत्पत्ति वास्तव में भगवान शिव की प्रथम पत्नी माँ सती द्वारा हुई थी। इसके विषय में एक बहुत ही रोचक कथा हमें पुराणों में मिलती है। प्रजापति दक्ष परमपिता ब्रह्मा के प्रथम १६ मानस पुत्रों में से एक थे जिनकी पुत्रिओं से ही इस संसार का विस्तार हुआ।
उनकी पुत्री सती ने अपने पिता के विरोध में जाकर भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष शिव के घोर विरोधी थे क्यूंकि उन्होंने दक्ष के पिता भगवान ब्रह्मा का पाँचवा सर जो उनकी निंदा करता था, अपने त्रिशूल से काट दिया था। तब से दक्ष सदैव महादेव की निंदा किया करते थे। उनके आराध्य भगवान विष्णु एवं स्वयं उनके पिता ब्रह्मदेव ने उन्हें कई बार समझाया किन्तु महादेव के प्रति उनका द्वेष कम नहीं हुआ।
इसके बाद जब देवी सती ने अपने पिता के विरुद्ध जाकर भगवान शंकर से विवाह किया तो दक्ष का शिव के प्रति द्वेष और बढ़ गया। तब भगवान शिव के अपमान हेतु दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया जिसमे ब्रह्मदेव एवं नारायण सहित समस्त देवों, सप्तर्षिओं, महर्षिओं और प्रजाजनों को आमंत्रित किया गया। सबने दक्ष को समझाया कि बिना शिव को यज्ञ का भाग दिए ये यज्ञ संपन्न नहीं हो सकता किन्तु दक्ष ने किसी की नहीं सुनी।
जब सती ने ये सुना कि उनके पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया है किन्तु उसमे उनके पति को आमंत्रण नहीं दिया गया है तब वे बड़ी क्रोधित हुई। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वे अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती हैं और उनसे इसका कारण जानना चाहती हैं कि उन्हें यज्ञ का निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? शिव तो सब जानते ही थे इसीलिए उन्होंने बिना किसी क्रोध के उन्हें वहाँ जाने से मना करते हुए कहा - "प्रिये! तुम्हे जो जानना है वो मुझसे पूछ लो। इसके लिए यज्ञ में जाने की क्या आवश्यकता है। वो भी तब जब हमें आमंत्रण नहीं दिया गया है।
जब सती ने ये सुना कि उनके पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया है किन्तु उसमे उनके पति को आमंत्रण नहीं दिया गया है तब वे बड़ी क्रोधित हुई। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वे अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती हैं और उनसे इसका कारण जानना चाहती हैं कि उन्हें यज्ञ का निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? शिव तो सब जानते ही थे इसीलिए उन्होंने बिना किसी क्रोध के उन्हें वहाँ जाने से मना करते हुए कहा - "प्रिये! तुम्हे जो जानना है वो मुझसे पूछ लो। इसके लिए यज्ञ में जाने की क्या आवश्यकता है। वो भी तब जब हमें आमंत्रण नहीं दिया गया है।
तब देवी सती ने कहा - "स्वामी! मुझे पता है कि आप सर्वज्ञ हैं किन्तु फिर भी मैं अपने पिता से ही इस बात का कारण जानना चाहती हूँ कि उन्होंने ऐसा दुस्साहस क्यों किया। उन्हें अपनी पुत्री के अपमान का अधिकार था किन्तु किस अधिकार से उन्होंने अपने जामाता, जो समस्त संसार के स्वामी भी हैं, उनका अपमान किया। क्या उन्हें ज्ञात नहीं कि बिना शिव के कोई भी यज्ञ सफल नहीं हो सकता?"
इसपर महादेव ने मुस्कुराते हुआ कहा - "हो सकता है तुम्हारे पिता ने अज्ञानवश ऐसा किया हो किन्तु तुम तो ज्ञानी हो। मेरे प्रति अपने पिता के बैर को जानते हुए भी तुम क्यों व्यर्थ इसका कारण जानने का हठ कर रही हो। क्या तुम ये नहीं जानती कि जो भी बिना आमंत्रण के किसी समारोह में जाता है उसे वहाँ अपमानित होना पड़ता है? अतः हठ छोडो और इस बात को मन से निकाल दो।"
तब सती ने कहा - "हे स्वामी! मैं किस प्रकार आपके अपमान को मन से निकाल दूँ? नहीं, ये मेरे लिए तो संभव नहीं है। अतः कृपया मुझे वहाँ जाने की आज्ञा दें।" देवी सती के इस हठ को देख कर महादेव ने कहा - "मुझे बिना निमंत्रण तुम्हारा वहाँ जाना उचित नहीं लगता इसीलिए मैं तुम्हे इसकी आज्ञा नहीं दे सकता किन्तु अगर उसके बाद भी तुम्हे जाना हो तो तुम स्वतंत्र हो।"
ऐसा कहकर महादेव वहाँ से जाने लगे। तब देवी सती इतनी क्रोधित हो गयी कि उनकी क्रोधाग्नि से एक कृष्ण वर्णीय देवी काली का जन्म हुआ जिन्होंने महादेव का मार्ग रोक लिया। उनका स्वरुप इतना भयानक था कि उनपर दृष्टि नहीं टिकती थी। उनकी ऑंखें अग्नि के सामान थे, आधार लाल बिम्बाफल के सामान थे और क्रोध से उनका सम्पूर्ण शरीर काँप रहा था। जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी को इस रूप में देखा तो उन्होंने अपना मुँह फेर लिया और दूसरी दिशा में जाने लगे। तब उन्ही देवी के समान भयावह एक प्रतिरूप ने पुनः उनका मार्ग रोक लिया। महादेव जिस भी दिशा में जाते, देवी का एक प्रतिरूप उनका मार्ग रोक कर खड़ा हो जाता। ऐसे करते-करते देवी के १० स्वरूपों ने दसों दिशाओं में महादेव का मार्ग रोक लिया।
भगवान शिव ये भली भांति जानते थे कि देवी सती के उस यज्ञ में जाने का क्या परिणाम होने वाला है इसी कारण वे उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा नहीं देना चाहते थे किन्तु देवी के सभी स्वरूपों ने उन्हें विवश कर दिया। तब होनी को जानकर भी भगवान शिव ने देवी सती को अपने पिता के यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। इसके पश्चात सभी दस देवियाँ पुनः देवी सती के शरीर में समा गयी और वे अपने पिता के यज्ञ में चली गयी जहाँ महादेव के अपमान के बाद उन्होंने आत्मदाह कर लिया। आदिशक्ति के इन्ही दस स्वरूपों को "दस महाविद्या" के नाम से जाना गया जो समस्त तांत्रिक शक्तियों की जननी मानी गयी हैं। ये हैं:
भगवान शिव ये भली भांति जानते थे कि देवी सती के उस यज्ञ में जाने का क्या परिणाम होने वाला है इसी कारण वे उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा नहीं देना चाहते थे किन्तु देवी के सभी स्वरूपों ने उन्हें विवश कर दिया। तब होनी को जानकर भी भगवान शिव ने देवी सती को अपने पिता के यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। इसके पश्चात सभी दस देवियाँ पुनः देवी सती के शरीर में समा गयी और वे अपने पिता के यज्ञ में चली गयी जहाँ महादेव के अपमान के बाद उन्होंने आत्मदाह कर लिया। आदिशक्ति के इन्ही दस स्वरूपों को "दस महाविद्या" के नाम से जाना गया जो समस्त तांत्रिक शक्तियों की जननी मानी गयी हैं। ये हैं:
- काली (श्यामा) - आदिशक्ति/सती/पार्वती का ही दूसरा उग्र रूप
- तारा - समस्त जगत के ऊर्जा का स्रोत
- छिन्नमस्ता - स्वयं अपना शिरोच्छेदन करने वाली
- षोडशी (त्रिपुर सुंदरी) - तीनो लोगों के सर्वाधिक सुंदरी
- भुवनेश्वरी - पूरे जगत की स्वामिनी
- भैरवी - उग्रता एवं क्रोध की देवी
- धूमावती - मृत्यु एवं विधवाओं की देवी
- बगलामुखी - शत्रुओं की शक्ति को हरने वाली
- मातंगी - देवी सरस्वती का एक रूप
- कमला - देवी लक्ष्मी का एक रूप
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