करक चतुर्थी (करवा चौथ)

कल (शनिवार, २७ अक्टूबर) को करक चतुर्थी का पर्व है जिसे आम भाषा में करवा चौथ कहा जाता है। सनातन धर्म में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग को देने वाला माना जाता है। करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के पवित्र प्रेम के रूप में मनाया जाता है जो एक दूसरे के प्रति अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है।

इस दिन स्त्रियां सुहागन का रूप धारण कर, पूर्ण श्रृंगार करके, वस्त्र आभूषण धारण करके भगवान चंद्रमा से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती है। स्त्रियां ईश्वर के समक्ष दिनभर व्रत रखकर यह प्रण भी करती हैं कि वे मन, वचन और कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी।

कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन वट वृक्ष में भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिक एवं श्री गणेश जी विराजमान रहते हैं। वट वृक्ष में इनका निवास मानकर वट वृक्ष को प्रणाम करना चाहिए। वैसे तो श्रीगणेश प्रथमपूज्य माने गए हैं किन्तु करवा चौथ के दिन अपने घर पर या मंदिर में सबसे पहले माता पार्वती को प्रणाम करके उनकी की पूजा करनी चाहिए। उसके पश्चात भगवान शिव, स्वामी कार्तिक और अंत में श्री गणेश की पूजा करनी चाहिए। 

शिव पार्वती की पूजा करने का कारण यह है कि जिस प्रकार भगवती पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था, वैसा ही अखंड सौभाग्य सभी विवाहिता को मिले एवं भगवान शिव के समान ही उनके पति का स्वभाव हो। यह माँ पार्वती की कृपा के बिना संभव नहीं है।

इस विषय में एक कथा भी प्रचलित है जो वामन पुराण में कही गई है। एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से इस व्रत के विषय में प्रश्न किया था जिसके उत्तर में भगवान शिव ने यह कथा सुनाई थी। इंद्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक विद्वान ब्राम्हण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरवती था। उसका विवाह सुदर्शन नाम ब्राम्हण के साथ हुआ। वेदशर्मा के सभी पुत्र विवाहित थे। 

एक बार करवा चौथ के व्रत के समय वीरवती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया लेकिन वीरवती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह पाने के कारण निढाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरवती भूख से पीड़ित हैं किन्तु करवा चौथ का व्रत चंद्रमा देख कर ही खोलेगी। यह सुनकर उन भाइयों में से एक भाई वृक्ष के ऊपर मशाल लेकर खडा हो गया और दूसरे दो भाइयों ने उस मसाल को एक सफेद वस्त्र से इस प्रकार ढक दिया मानो वह चंद्रमा हो। शेष भाइयों ने अपनी बहन वीरवती से जाकर कह दिया कि चंद्रोदय हो गया है।

यह सुनकर वीरवती ने नकली चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोल लिया जिससे उसका व्रत खंडित हो गया और उसका पति अचानक रुग्ण हो मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब वीरवती ने निश्चय किया कि वो भी सावित्री की भांति अपने पति के प्राण वापस ला कर रहेगी। एक बार इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चौथ का व्रत करने पृथ्वी पर आई। इस बात का पता लगने पर वीरवती ने वहाँ जाकर इंद्राणी से प्रार्थना की और अपने पति के ठीक होने का उपाय पूछा। इंद्राणी ने कहा तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से किये गए करवा चौथ व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई। यदि तू करवा चौथ व्रत पूर्ण विधि विधान से रखेगी तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पुरे विधि से संपन्न किया फलस्वरुप उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया। 

इसी विषय में एक दूसरी कथा है जिसमे वीरवती का नाम बताया गया है। इस कथा के अनुसार करवा अपने पति की मृत्यु के पश्चात एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास ही बैठी रही। अगले वर्ष व्रत के समय अपनी सभी भाभी के पास जाती है और उनसे स्वयं को सुहागन करने का आशीर्वाद माँगती है किन्तु सभी किसी न किसी बहाने उसे ये आशीर्वाद नहीं देती। तब उसकी छठी भाभी उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई की गलती के कारण ही वो विधवा हुई है इसीलिए सबसे छोटी भाभी ही उसके पति को जीवनदान दे सकती है। 

तब करवा अपनी छोटी भाभी के पास जाती है किन्तु वो भी उसे आशीर्वाद नहीं देना चाहती किन्तु करवा उनके चरण नहीं छोड़ती। इसपर उसकी भाभी उसे बहुत प्रताड़ित करती है किन्तु करवा उन्हें पकडे रहती है। अंत में उसका पतिव्रत धर्म देख कर छोटी भाभी अपनी छोटी अंगुली को चीर कर उसका अमृत करवा के पति को पिलाती है जिससे वो जीवित हो उठता है। यह व्रत उसी समय से प्रचलित है।

इसके अतिरिक्त एक कथा महाभारत में भी मिलती है जब पांडवों के वनवास के समय अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत की ओर चले गए। बहुत दिन तक उनके वापिस न लौटने पर द्रौपदी को चिंता हुई। तब श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिंता दूर करते हुए करवा चौथ व्रत के विषय में बतलाया और व्रत रखने की प्रेरणा भी दी। उस व्रत को करने के बाद अर्जुन वापस लौटे और द्रौपदी की विरह वेदना कम हुई।

पंडित रोहित वशिष्ठ
ये मूल लेख हमें पंडित रोहित वशिष्ठ से प्राप्त हुआ है। ये सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं और इन्होने सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय वाराणसी से आचार्य की डिग्री प्राप्त की है और साथ ही इन्होने भारतीय विद्या भवन नई दिल्ली से श्री ज्योतिष विषय में ज्योतिष अलंकार की उपाधि पायी है। ये सराहनपुर से निकलने वाली पत्रिका "महाविद्या पञ्चाङ्ग" के मुख्य संपादक भी हैं। धर्मसंसार में योगदान के लिए हम इनके आभारी हैं।

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