तुलसी रामायण की जगह वाल्मिकी रामायण क्यों? वाल्मिकी रामायण में राम पर तंज हैं, प्रश्न है। सीता का वनगमन है। लव-कुश के तीखे प्रश्न बाण हैं। तुलसी रामायण जहां उत्तरकांड पर खत्म हो जाती है, वाल्मिकी रामायण में रावण और हनुमान की जन्म कथा, राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति और रामराज्य में कुत्ते के न्याय की उपकथाएं, सीतावनगमन, लवकुश जन्म, अश्वमेघ यज्ञ, लव-कुश का रामायण गान, सीता का भूमि प्रवेश, लक्ष्मण का परित्याग सबकुछ समाहित है।
यदि राम को जानना है तो तुलसी बाबा नहीं महाकवि वाल्मिकी को समझना होगा। महाकवि वाल्मिकी ने मर्यादापुरुषोत्तम राम की व्याख्या की है तो सीता के चरित्र के साथ भी पूरा न्याय किया है। लव-कुश के जरिए सीता पर लांछन लगाने वालों का प्रतिकार किया है। वाल्मिकी रामायण पूर्ण है, संपूर्ण है। यह युगपुरुष कृष्ण से पहले का चरित्र है। राम मर्यादा पुरुष थे, कृष्ण युगपुरुष। इसलिए तुलसी बाबा से रामायण को पढ़ना शुरू करें लेकिन समझने के लिए महाकवि वाल्मिकी को अवश्य पढ़े। रामायण से मिली सीख:
- वाल्मिकी चरित्र: वाल्मिकी जी के जीवन से सीख मिली, आप कितने भी बुरे हों, डाकू हों, आपमें साधु बनने की क्षमता है। जब भी समझ आए आप गलत हैं, सुधारें अपनी गलतियां। एक डाकू यदि माहकवि वाल्मिकी बन सकते हैं तो आपकी गलतियां बेहद छोटी हैं। उन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। जीवन के किसी भी मोड़ पर अहसास हो अपनी गलतियों का उसी मोड़ से गलतियों को सुधारना शुरू कर दें। अंत सुखद होगा।
- कैकयी चरित्र: आप कितने भी अच्छे हैं, बेहतरीन है। आपकी एक गलती आपको इतिहास में गलत व्यक्तित्व के रूप में अंकित कर देगी। रावण से पूर्व विनाश काले विपरीत बुद्धि कैकयी की हुई थी। कैकयी के बारे में कई गूढ़ बातें हैं। कैसे वे रानी अपने पति को युद्ध के बीच में वीरता से बचाकर लाईं, कैसे वे क्षत्राणी थी, पूरा राज्य उनकी जयजयकार करता था। राम सर्वप्रिय थे उन्हें। भरत प्रिय। दशरथ को वे प्राणों से ज्यादा प्रेम करती थीं। पूरे राज्य की धुरी थीं। दशरथ के जीवन की धुरी। यदि वे भरत के ननिहाल से लौटने का इंतजार करती तो शायद हालात कुछ और होते। उन्होंने सबकुछ खो दिया। दशरथ जिनकी वे प्राणप्यारी थीं, भरत जो उन्हें प्राणों से प्यारा था, राम जिसमें उनके प्राण बसते थे।
- सीता चरित्र: वाल्मिकी रामायण में सीता का पूर्ण चित्रण है। सिया जो जनकदुलारी है। किशोरावस्था में शिव का धनुष उठाती हैं। वे अपनी बातों की धनी हैं। रावण की अशोक वाटिका में राम का इंतजार करती हैं, हनुमान के साथ वापसी को मना कर देती हैं। यह परपुरुष का भय नहीं है, ये विश्वास है राम आएंगें। अपने पति पर इतना अटूट विश्वास एक पत्नी को ही हो सकता है। जीवन साथी,अर्धांगिनी। रावण ने सिया का मानमर्दन किया, वह उस घमंडी का मानमर्दन होते देखना चाहती थीं। अटूट विश्वास था उन्हें अपने राम के बल और उनके प्रति स्नेह पर लेकिन जब श्री राम धोबी की बातों में आकर उनका त्याग करते हैं तो वे कभी लौटकर अयोध्या नहीं जाती, ना ही जनकनंदनी मिथिला में कदम रखती है। वे अरण्य में कठोर जीवन में सम्मान से जीना पसंद करती हैं। वन में भी लव-कुश को क्षत्राणी की तरह परवरिश देती हैं। जब राम वापस लेने आते हैं तो उनके साथ की जगह भूमिसुता भूमि में समा जाती है।
- लव-कुश: वाल्मिकी रामायण में लव-कुश द्वारा रामकथा के पाठ का चित्रण है। लव-कुश श्री राम ही नहीं बल्कि पूरी अयोध्या की मुंदी आंखे खोलते हैं। शर्मसार करते हैं गलत सोचने वाले को। इस कथा में यदि धोबी है तो लवकुश भी। बच्चे कैसे होने चाहिए, सिर्फ लव-कुश के जैसे। जो अपनी माँ का सम्मान ही नहीं करते, सभी को उनका अपमान करने से भी रोकते हैं। जो भरत-लक्ष्मण-शत्रुध्न सहित हनुमान का मानमर्दन करते हैं लेकिन विनम्रता नहीं छोड़ते। सीता को कभी द्रोपदी की तरह कटघरे में खड़ा करने का किसी का सामर्थ्य नहीं क्यूंकि इसके पीछे श्री राम नहीं उनके पुत्र लव-कुश हैं। ये विलक्षण चरित्र सिर्फ वाल्मिकी रामायण में हैं।
ये लेख डॉ ब्रजेश वर्मा से प्राप्त हुआ है जो एक पत्रकार हैं। ये भागलपुर, बिहार के रहने वाले हैं। वर्षों तक विभिन्न समाचार पत्रों (विशेषकर हिंदुस्तान टाइम्स) में सीनियर रिपोर्टर के रूप में कार्य किया और अब सेवा निवृति के बाद लेखन का कार्य कर रहे हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। धर्मसंसार में सहयोग देने के लिए इनका आभार।
सटीक निष्कर्ष के लिए प्रणाम l
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जयंती जी।
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