आप सबों को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। पूर्वी भारत, विशेषकर बिहार, झारखण्ड एवं उत्तर प्रदेश में तो इस पर्व का महत्त्व सर्वाधिक है ही, अब भारत के हर क्षेत्र में इस पर्व को मनाया जाता है। भारत के बाहर, विशेषकर नेपाल, इंडोनेशिया, मॉरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिनाद, अमेरिका, इंग्लैण्ड, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, नूज़ीलैण्ड, मलेशिया एवं जापान में भी इसे वृहद् रूप से मनाया जाता है। ये पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है इसी कारण इसे "छठ" के नाम से जाना जाता है।
ये त्यौहार भगवान सूर्यनारायण एवं उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। ये व्रत बड़ा कठिन है और सबके लिए उसे रखना संभव नहीं है क्यूंकि इस व्रत में व्रती को ३६ घंटों का निर्जल व्रत रखना पड़ता है। इस बीच वो पानी भी नहीं पी सकता और इसके नियम भी बहुत ही कठिन होते हैं। हिन्दू धर्म के अन्य व्रतों के इतर इस व्रत को स्त्री के साथ पुरुष भी समान रूप से रखते हैं।
इस पर्व में व्रती बिना सिले हुए कपडे धारण करते हैं और इस दौरान व्रती सुस्वादु भोजन के साथ-साथ शैय्या का भी त्याग करते हैं और भूमि पर सोते हैं। इस व्रत को बहुत ही संवेदनशील पर्व माना जाता है क्यूंकि ऐसी मान्यता है कि जो भी इस व्रत का आरम्भ करता है तो उसे तब तक हर वर्ष इस व्रत को करना पड़ता है जबतक अगली पीढ़ी की कोई विवाहिता महिला इस व्रत को करने के लिए तैयार ना हो जाये। इस पर्व को कुल चार दिनों में समपन्न किया जाता है।
- नहाय खाय: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को इस दिन छठ महापर्व का शुभारम्भ होता है। इस दिन सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर व्रती शुद्ध शाकाहारी भोजन के साथ इस व्रत का आरम्भ करते हैं। व्रती के बाद ही घर में अन्य लोग भोजन करते हैं। इस दिन खाने में कद्दू और चने की दाल का भोजन बनता है और इसी कारण इस दिन को "कद्दू-भात" के नाम से भी जाना जाता है।
- खरना: अगले दिन पंचमी को व्रती पूरे दिन निराहार रहने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इस दिन आस पास के लोग प्रसाद लेने व्रती के घर पहुँचते हैं। प्रसाद में घी से चुपड़ी रोटी एवं गुड़ या गन्ने के रस से बना खीर (रसिया) होता है। विशेष बात ये है कि इनमे नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता। इस दिन स्वच्छता का अत्यधिक ध्यान रखा जाता है।
- संध्या अर्ध्य: अगले दिन षष्ठी (मुख्य) दिन ढलते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। वैसे तो अर्ध्य गंगा जल से देने का प्रावधान है किन्तु इसकी उपलब्ध्ता ना हो तो साधारण जल से अर्ध्य दिया जा सकता है। प्रसाद में ठकुआ, चावल का लड्डू (लड़ुआ), गन्ना, बड़ा नीम्बू (डाभ) एवं डाले में रखे अन्य फल भी लोगों को दिया जाता है। शाम को पूरी तयारी कर प्रसाद को डाले एवं सूप में सजाया जाता है। जो लोग छठ पर्व नहीं मना सकते, वे व्रती को अपने प्रसाद के लिए कुछ सहयोग राशि देते हैं। शाम को सूप एवं डाले के साथ गंगा तट पर पहुँचते हैं और डूबते हुए सूर्य को पूरी श्रद्धा के साथ अर्ध्य देते हैं। हर जगह, विशेषकर बिहार एवं झारखण्ड में मेले जैसा माहौल बन जाता है। इस दिन व्रती पूरे समय के लिए निर्जल उपवास रखते हैं।
- उषा अर्ध्य: सप्तमी तिथि को लोग तड़के उठते हैं और पिछले दिन चढ़ाये गए प्रसाद की पुनः पूजा करते हैं। फिर वे पुनः सारे प्रसाद को समेट कर उसी स्थान पर पहुँचते हैं और उसी तरीके से उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देते हैं। वापस आकर व्रती पुनः पूजा के समापन की पूजा करते हैं और फिर कच्चा दूध एवं प्रसाद खाकर अपने निर्जल व्रत का समापन करते हैं। इसे "परना" या "पारण" कहते हैं।
इसके बारे में कई और रोचक तथ्य भी हैं:
- ये पर्व सूर्य पूजा को समर्पित है। सूर्यपूजन का विवरण हमें वैदिक काल से ही मिलता है। वेदों में वृहद् रूप से सूर्यनारायण का महिमांडन किया गया है। इन्हे एक देवता और नवग्रह के रूप में तो पूजा ही जाता है साथ ही साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्य को आरोग्य का देवता भी कहा जाता है और ये पाया गया है कि सूर्य की किरणें कई प्रकार के रोगों के निवारण के लिए उपयोगी है।
- लोग हमेशा इस बात को जानना चाहते हैं कि "छठी माई" आखिरकार कौन है? सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी प्रकृति का एक अंश देवसेना है। उनका छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी भी कहा जाता है। षष्ठी देवी को परमपिता ब्रह्मा की मानस पुत्री भी कहते हैं। पुराणों में उन्हें माता पार्वती का एक रूप कात्यायिनी भी कहा गया है जिनकी पूजा नवरात्रे की षष्ठी को ही किया जाता है। इन्ही षष्ठी देवी को स्थानीय लोग "छठी मइया" के नाम से जानते हैं जो निःसन्तानों को संतान प्रदान करती है।
- सबसे पहले इस पूजा का वर्णन ब्रह्मपुत्र मनु के पुत्र प्रियव्रत द्वारा किया गया था। वे निःसंतान थे और महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। उस यज्ञ को करने पर उनकी पत्नी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो मृत पैदा हुआ। तब उस समय उसी यज्ञाग्नि से एक दिव्य देवी प्रकट हुई और उन्होंने उनके पुत्र को जीवनदान दिया। प्रियव्रत ने उन्हें षष्ठी का नाम दिया और तब से षष्ठी देवी की पूजा आरम्भ हुई।
- महाभारत में सर्वप्रथम सूर्य के अर्ध्य का विवरण कर्ण से मिलता है। कहा जाता है सूर्यपुत्र कारण प्रतिदिन कटि तक गंगा में उतरकर प्रातः सूर्यदेव को अर्ध्य दिया करता था और उसके पश्चात कोई भी याचक उससे कुछ माँगता था तो उसे अवश्य प्राप्त होता था। बिहार कर्ण की कर्मभूमि थी इसी कारण छठ और बिहार का कुछ अलग ही नाता है।
- महाभारत में ही सर्वप्रथम द्रौपदी द्वारा छठ पूजा करने का विवरण है। जब पांडवों को वनवास प्राप्त हुआ तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को छठ पूजा करने का सुझाव दिया। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों का वनवास समाप्त हुआ और उन्हें उनका राज्य वापस मिला।
- श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ट रोग हो गया और तब श्रीकृष्ण ने भी सूर्यदेव की पूजा की थी और उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अपनी किरणों से साम्ब को स्वस्थ कर दिया।
- इस पूजा में बाँस की बनी टोकरी और सूप का बड़ा महत्त्व होता है क्यूंकि इन्हे अत्यंत शुद्ध और पवित्र माना जाता है।
- रामायण में भी सूर्यपूजा का जिक्र है। महाबली हनुमान ने स्वयं सूर्यदेव से शिक्षा पायी थी। श्रीराम ने भी आदित्यस्त्रोत्र का पाठ करके ही रावण पर अंतिम बाण चलाया था जिससे उसकी मृत्यु हुई।
सबसे पहले की गयी छठ पूजा पर एक लेख पहले ही प्रकाशित हो चुका है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
अति सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
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