आप सभी को चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। चित्रगुप्त जयन्ती कायस्थ समाज के लिए तो सर्वश्रेष्ठ त्यौहार है ही लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य समुदाय के लोग इस बड़ी श्रद्धा से मनाते है। बचपन में हमारे लिए इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण ये होता था कि इस दिन हमें पढाई-लिखाई से छुट्टी मिल जाती थी।
ऐसी मान्यता है कि कोई भी कायस्थ चित्रगुप्त पूजा के दिन २४ घंटों के लिए कलम-दवात को हाथ नहीं लगा सकता। उस काल को "परेवा काल" कहते हैं। पूरी दुनिया में कायस्थ दीवाली की पूजा के बाद कलम रख देते हैं और फिर यमद्वितीया के बाद कलम-दवात की पूजा के बाद ही उसे उठाते हैं।
इसके विषय में एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है जो रामायण से जुडी है। मान्यता है कि श्रीराम की एक भूल के कारण ही चित्रगुप्तजी ने अपनी कलम रख दी थी। ये कथा तब की है जब श्रीराम रावण का वध कर १४ वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या लौटे। तब भरत, जो उनके खड़ाऊं को राजसिंहासन पर रख कर तब तक राज्य चला रहे थे, उन्होंने श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की।
उनके राज्याभिषेक के लिए भरत ने कुलगुरु वशिष्ठ से समस्त देवी-देवताओं को श्रीराम के राज्याभिषेक में आने का निमंत्रण भेजने को कहा। उन्हें ये कार्य सौंप कर वे राज्याभिषेक की तैयारियों में जुट गए। राज्याभिषेक में सभी देवता आये किन्तु श्रीराम को चित्रगुप्त जी कही नहीं दिखे। जब उन्होंने इसके बारे में गुरु वशिष्ठ से पूछा तो उन्होंने अपने शिष्यों से पता किया कि कौन चित्रगुप्त महाराज के पास निमंत्रण लेकर गया था।
खोजबीन के बाद पता चला कि उनके शिष्यों ने चित्रगुप्त जी को निमंत्रण पहुँचाया ही नहीं था। जब चित्रगुप्त जी को ये बात पता चली तो वे रुष्ट हो गए और उन्होंने प्राणियों का लेखा जोखा रखने वाले कलम को नीचे रख दिया। ऐसा पहली बार हुआ कि निरंतर चलने वाली उनकी कलम रुक गयी। जब सभी देवी-देवता राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जो भी प्राणी मृत्यु प्राप्त कर रहे थे वे भी स्वर्ग और नर्क के बीच रुक गए। किसी का लेखा जोखा ना होने के कारण उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें स्वर्ग जाना है अथवा नर्क। सारी सृष्टि में असंतुलन पैदा हो गया।
खोजबीन के बाद पता चला कि उनके शिष्यों ने चित्रगुप्त जी को निमंत्रण पहुँचाया ही नहीं था। जब चित्रगुप्त जी को ये बात पता चली तो वे रुष्ट हो गए और उन्होंने प्राणियों का लेखा जोखा रखने वाले कलम को नीचे रख दिया। ऐसा पहली बार हुआ कि निरंतर चलने वाली उनकी कलम रुक गयी। जब सभी देवी-देवता राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जो भी प्राणी मृत्यु प्राप्त कर रहे थे वे भी स्वर्ग और नर्क के बीच रुक गए। किसी का लेखा जोखा ना होने के कारण उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें स्वर्ग जाना है अथवा नर्क। सारी सृष्टि में असंतुलन पैदा हो गया।
जब देवताओं को ये पता चला तो उन्होंने श्रीराम से ही प्रार्थना कि वे चित्रगुप्त को किसी भी तरह मनाये। तब श्रीराम सीता, अपने अनुजों और महर्षि वशिष्ठ को लेकर अयोध्या में स्थापित श्री धर्म हरि मंदिर पहुँचे और वहाँ उन्होंने चित्रगुप्त महाराज की स्तुति और क्षमा-याचना की। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं श्रीहरि विष्णु ने की थी और ऐसा भी कहा जाता है कि अयोध्या में आने वाले सभी तीर्थयात्रिओं को श्री धर्म मंदिर जाना अनिवार्य होता है अन्यथा उन्हें इस यात्रा का पुण्य नहीं मिलता है।
श्रीराम की आराधना से प्रसन्न होकर अंततः चित्रगुप्त महाराज ने ८ प्रहर (२४ घंटे) बाद पुनः कलम-दवात उठाया और प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा पुनः प्रारम्भ किया जिससे सृष्टि का संतुलन पुनः ठीक हुआ। तभी से कायस्थ चित्रगुप्त पूजा के दिन २४ घंटे के लिए कलम-दवात का स्पर्श नहीं करते। यही नहीं ब्राह्मण, जो दान के पहले अधिकारी माने जाते हैं, उनसे भी दान लेने का अधिकार केवल कायस्थों को प्राप्त है। जय चित्रगुप्त महाराज।
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