महाभारत सागर की तरह विशाल है। इसके अंदर कथाओं के ऐसे-ऐसे मोती छिपे हैं जिसे ढूँढना कठिन है। कुछ प्रसंग व्यास रचित महाभारत में है तो कुछ शताब्दियों से लोक कथाओं के रूप में सुनी और सुनाई जाती रही है। ऐसा ही एक प्रसंग हम आज आपके लिए ले कर आए हैं। ये घटना तब की है जब भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ी और वो अपनी अंतिम साँसें ले रहा था।
इतनी भीषण शत्रुता होने के बाद भी दुर्योधन की ऐसी मृत्यु देख कर सभी द्रवित हो गए और उसके आस-पास जमा हो गए। दुर्योधन ने अपनी चारो ओर शत्रुओं को देखा किन्तु अब बहुत देर हो चुकी थी। तभी उसने श्रीकृष्ण को अपनी तीन अँगुलियों से इशारा किया। कोई भी उसके इस संकेत को समझ नहीं पाया। तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि शायद दुर्योधन अपने अंतिम समय में उनसे कुछ कहना चाहता है।
वे दुर्योधन के पास गए और उससे उस संकेत का अर्थ पूछा। तब दुर्योधन ने कराहते हुए कहा - "हे मदुसूदन! भीम और अन्य पांडव इस बात पर प्रसन्न हो रहे हैं कि उन्होंने मुझे पराजित कर दिया किन्तु उन्हें ये ज्ञात नहीं है कि ये पराजय मेरी स्वयं की भूल का परिणाम है। मैंने इस युद्ध में कई गलतियाँ की है किन्तु तीन ऐसी गलतियाँ है जिसके कारण मैं ये युद्ध हरा। अगर मैंने वो तीन गलतियाँ ना की होती तो तुम्हारा मुझे परास्त करना असंभव हो जाता। श्रीकृष्ण के पूछने पर दुर्योधन ने उन तीन गलतियों के बारे में बताया:
- श्रीकृष्ण के स्थान पर नारायणी सेना का चयन: दुर्योधन ने बताया कि उसने श्रीकृष्ण के बदले उनकी नारायणी सेना को चुन कर सबसे बड़ी भूल की। उसके अनुसार वो भी श्रीकृष्ण को चुनना चाहता था और यदि उसे पहले अवसर मिलता तो उन्हें ही चुनता। किन्तु जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुन लिया तो इतनी बड़ी नारायणी सेना अपनी पक्ष में आता देख कर उसने प्रतिवाद नहीं किया। आज अगर श्रीकृष्ण उसकी ओर होते तो निश्चय ही विजय उसकी होती। यही नहीं महाबली बलराम ने भी ये कह कर युद्ध करने से मना कर दिया था कि वे स्वयं अपने ही भाई के विरुद्ध युद्ध नहीं कर सकते। यदि कृष्ण उसके पक्ष में होते तो बलराम भी अवश्य उसका साथ देते और फिर उन्हें भला कौन हरा सकता था?
- अपनी माता के समक्ष निर्वस्त्र ना जाना: दूसरी गलती दुर्योधन ने ये बताई कि उसकी माता गांधारी ने स्पष्ट शब्दों में उसे कहा था कि वो पूर्ण निर्वस्त्र होकर उनके सामने आये किन्तु श्रीकृष्ण की बातों में आकर उसने मारे लज्जा के अपना कटिभाग केले के पत्ते से छुपा लिया। अगर उसने ये गलती ना की होती तो आज उसका सम्पूर्ण शरीर वज्र का होता और फिर भीम उसे कभी भी पराजित नहीं कर सकता था।
- युद्ध में सबसे अंत में उतरना: दुर्योधन के विचार में उसकी तीसरी गलती ये थी कि वो इस युद्ध में अंत में उतरा। वो अपने सेनापतियों पर इतना निर्भर रहा कि कभी उसने स्वयं युद्ध का सञ्चालन नहीं किया। सर्वप्रथम गंगापुत्र भीष्म जैसा सेनापति पाकर वो निश्चिंत हो गया। उन्हें भला युद्ध में कौन हरा सकता था? किन्तु दैवयोग से उनका भी पराभव हुआ। यही गलती उसने गुरु द्रोण और अंगराज कर्ण जैसे सेनापति को पाकर की। अगर वो युद्ध में पहले ही उतरा होता तो कदाचित वो रणभूमि का हाल और अच्छे से जान पता और उसकी पकड़ युद्ध पर और भी कड़ी होती।
दुर्योधन को इस प्रकार बोलते देख श्रीकृष्ण ने कहा - "हे दुर्योधन! तुम्हारी ये तीन गलतियाँ कदाचित युद्ध के परिणाम के लिए निर्णायक हुई किन्तु तुम्हारी पराजय तभी से आरम्भ हो गयी थी जब तुमने भरी सभा में कुलवधू द्रौपदी का अपमान किया था। अतः वीर, ये प्रलाप छोड़ो और शांत मन से स्वर्ग की ओर प्रस्थान करो।"
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