श्राद्ध शब्द का अर्थ: श्रद्धा पूर्वक पितरों के लिए विधिपूर्वक जो कर्म किया जाता है उस कर्म को श्राद्ध कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार देश काल में पात्र द्वारा विधि पूर्वक श्रद्धा से पितरों के उद्देश्य से जो कार्य किया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। देश का अर्थ स्थान है काल का अर्थ समय है पात्र का अर्थ वह ब्राह्मण है जिसे हम श्राद्ध की सामग्री दे रहे हैं इन तीनों को भली-भांति समझ लेना चाहिए।
धर्म शास्त्रों के अनुसार विधि पूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्ति एवं मुक्ति देता है श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को भी आयु पुत्र धन-धान्य पुष्टि और यश प्रदान करता है श्राद्ध में कमी रहने पर श्राद्ध कर्ता का कल्याण नहीं होता अपितु कष्ट भोगना पड़ता है। श्राद्ध करने का सबसे उत्तम समय दोपहर ११:०० बजे से लेकर १२:३० बजे तक का होता है। उस समय को शास्त्रों में कुतप योग कहा गया है। हालाँकि समय के अभाव में प्रातः काल श्राद्ध कर सकते हैं लेकिन दोपहर के बाद श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले ग्रास बलि अवश्य निकालनी चाहिए जो कई तरह का होता है:
- भोजन पत्ते पर रखकर गाय को खिलाना चाहिए।
- पत्ते पर भोजन रखकर कुत्ते को खिलाना चाहिए।
- भूमि पर डालकर कौवे को खिलाना चाहिए। इसे घर की छत पर भी डाल सकते हैं।
- पत्ते पर रखकर देवताओं के लिए अन्न निकाले यह भी गाय को खिलाना चाहिए।
- चींटी आदि के लिए भी भोजन निकाला जाता है।
- अग्नि के लिए भोजन निकालकर थोड़ा अन्न अग्नि में डालकर शेष अन्न गाय को खिला देना चाहिए।
इस प्रकार भोजन निकाल कर उसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म ही पूर्ण फल प्रदान करता है और अश्रद्धा से किया गया कर्म निष्फल हो जाता है इसलिए श्राद्ध करते समय अपने पितरों के प्रति एवं भोजन करने वाले ब्राह्मण के प्रति श्रद्धा भाव रखें।
- पितरों को क्या अत्यंत प्रिय हैं?: पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए दौहित्र (दोहते) को भोजन अवश्य करना चाहिए। तिल व कुशा हाथ में लेकर किया गया संकल्प, चांदी का दान, भगवान के नाम का जप इत्यादि पितरों को प्रसन्न करने वाले हैं। श्राद्ध में दूध, गंगाजल, शहद, फल, दही, धान, तिल, गेहूं, मूंग और सरसों का तेल यह शुभ माने गए हैं। तुलसी पत्र का प्रयोग भी श्राद्ध में अवश्य करना चाहिए क्यूँकि तुलसी की गंध से पितृ गण प्रसन्न होकर वैकुंठ जाते हैं। फलों में आम, बेल, अनार, आंवला, नारियल, खजूर, अंगूर, केला इत्यादि फल शुभ माने गए। श्राद्ध में चंदन की सुगंध को भी शुभ माना गया है।
- श्राद्ध में ब्राह्मण की महिमा: श्राद्ध में हर किसी को भोजन कराने का विधान नहीं है। पवित्र, बुद्धिमान, सदाचारी, संध्या वंदन करने वाला ब्राह्मण भोजन कराने योग्य कहा गया है। जो ब्राम्हण गायत्री मंत्र का जप करता है वह श्राद्ध में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। चोर, धर्म से भ्रष्ट हुए ब्राह्मण, नास्तिक ब्राह्मण, मूर्ख ब्राह्मण, कपटी ब्राम्हण, व्यापारी ब्राह्मण, सेवा कार्य करने वाले नौकर ब्राम्हण, गंदे नाखून वाले ब्राह्मण, काले दांत वाले ब्राह्मण, गुरु से बैर भाव रखने वाले ब्राह्मण, अपने कुल से अलग कुल में विवाह करने वाले ब्राह्मण एवं अधम ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन नहीं कराना चाहिए।
- कैसा भोजन श्राद्ध में निषेध है?: जिस भोजन में बाल गिर गया हो, जिस अन्न में कीड़े पड़ गए हो, जिस भोजन पर कुत्ते की दृष्टि पड़ गई हो ऐसा भोजन श्राद्ध में ब्राह्मण को नहीं खिलाना चाहिए। बांसी एवं दुर्गंध युक्त भोजन भी श्राद्ध में नहीं कराना चाहिए। मदिरा बीड़ी तंबाकू इत्यादि भी श्राद्ध में दान नहीं करना चाहिए। जिस भोजन पर पहने हुए वस्त्र की हवा लग जाए वह भी श्राद्ध में वर्जित है। राजमा, साबुत उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलगम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, सुपारी भी श्राद्ध में निषेध है। श्राद्ध में कभी भी मांस का भोजन नहीं खिलाना चाहिए ऐसा करने वाले के पितृ नरक में चले जाते हैं। सात्विक भोजन एवं फलों से ही पितरों की तृप्ति होती है।
- भोज की व्यवस्था: ब्राह्मण को बिठाने के लिए रेशमी कंबल एवं कुशा का आसन श्रेष्ठ है। श्राद्ध में भोजन कराते समय मौन रहे। ब्राह्मण भी मौन रहकर भोजन करें मांगने के लिए हाथ से संकेत कर सकते हैं। श्राद्ध में ब्राह्मण के चरण बिठाकर धुलाने चाहिए क्यूंकि ब्राह्मण को खड़े कर चरण धुलाने पितृ निराश होकर लौट जाते हैं। पत्नी को अपनी दाई और खड़ा करें। श्राद्ध में भोजन कराते समय भोजन की निंदा अथवा प्रशंसा न करें ब्राह्मण से यह भी न पूछे भोजन कैसा बना है।
- भोजन में कौन से पात्र प्रयोग किए जा सकते हैं?: श्राद्ध में सोना, चांदी, कांसा, तांबा धातु के पात्र ही अच्छे माने गए हैं। लोहे के पात्र में भोजन नहीं परोसना चाहिए। सबसे अच्छे मिट्टी के पात्र माने गए हैं।
- श्राद्ध में क्या न करें?: श्राद्ध करते समय पान तंबाकू न खाएं, शरीर पर तेल भी न लगाएं, उपवास, स्त्री संभोग, दातुन, दवाई आदि खाना भी श्राद्धकर्ता के लिए निषेध है। श्राद्ध में दो बार भोजन नहीं करना चाहिए, अधिक यात्रा भी नहीं करनी चाहिए और श्राद्ध वाले दिन दान लेने से भी बचना चाहिए।
श्राद्ध में विश्वास अत्यंत आवश्यक है। श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य इंद्र, रूद्र, नारायण, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वदेव, पितृगण, मनुष्य, पशु, भूत, सर्प आदि को भी संतुष्ट करता हुआ समस्त जगत को संतुष्ट करता है। जो वैभव और धन के अनुसार श्राद्ध करता है वह साक्षात पितरों से लेकर समस्त प्राणियों को संतुष्ट करता है उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। वह जो चाहता है या कहता है सत्य हो जाता है।
पितृ देवताओं से भी अधिक दयावान होते हैं और अधिक सहयोग भी करते हैं। श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। विष्णु पुराण में सनत कुमार जी कहते हैं - "विशुद्ध धन, प्रशस्त काल, योग्य पात्र और परम भक्ति मनुष्य को इच्छित फल देती है। विधि पूर्वक श्राद्ध करने वाला आब्रह्मस्तम्बपर्यन्त संपूर्ण विश्व को तृप्त कर देता है।"
ये लेख हमें पंडित रोहित वशिष्ठ से प्राप्त हुआ है। ये सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं और इन्होने सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय वाराणसी से आचार्य की डिग्री प्राप्त की है और साथ ही इन्होने भारतीय विद्या भवन नई दिल्ली से श्री ज्योतिष विषय में ज्योतिष अलंकार की उपाधि पायी है। ये सराहनपुर से ही निकलने वाली पत्रिका "महाविद्या पञ्चाङ्ग" के मुख्य संपादक भी हैं। धर्मसंसार में योगदान के लिए हम इनके आभारी हैं।
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