रामायण समुद्र की तरह अथाह है। रामायण और रामचरितमानस के अतिरिक्त भी रामायण के कई क्षेत्रीय प्रारूप हैं जो जनमानस में बहुत प्रसिद्ध हैं। आज जो कथा हम आपको बताने जा रहे हैं वो भी कुछ ऐसी ही है। इसका विवरण हमें रामायण अथवा रामचरितमानस में तो नहीं मिलता किन्तु ये कुछ भारतीय लोककथाओं में चाव से सुनी और सुनाई जाती है।
कथा लंका युद्ध के बाद की है। रावण का वध हो चुका था और श्रीराम माता सीता और वीरवर लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आ चुके थे। उनके आने की ख़ुशी में दीपावली का पर्व मनाया जा रहा था। सारा नगर प्रसन्न था। उसी रात्रि देवी सीता को ये याद आया कि जब वे लंका में थी तो उन्होंने ये मनौती माँगी थी कि अगर वे सकुशल अयोध्या पहुँच जाएंगी तब सरयू नदी के तट पर विधिवत पूजा अर्चना करेंगी। ये याद आते ही सीताजी लक्ष्मण के साथ सरयू नदी के तट पर पहुँच गयी। उसी समय महाबली हनुमान ने उन्हें रात्रि में सरोवर की ओर जाते देखा तो सुरक्षा के लिए वे भी बिना बताये उनके पीछे हो लिए।
सरयू के निकट पहुँच कर सीता ने लक्ष्मण से पूजा हेतु जल लाने को कहा। उनका आदेश मान कर लक्ष्मण घड़ा लेकर सरयू नदी में उतर गए। वे जल भर ही रहे थे कि सरयू नदी में छिपा "अघासुर" नमक राक्षस ने लक्ष्मण पर आक्रमण कर दिया (ये अघासुर वो नहीं है जिसका श्रीकृष्ण ने वध किया था)। हनुमान एक वृक्ष के पीछे से सारा वृतांत देख रहे थे। एक असुर को लक्ष्मण पर आक्रमण करते देख हनुमान सचेत हो गए किन्तु उन्हें पता था कि लक्ष्मण को पराजित करना असंभव है इसी कारण उन्होंने दोनों के युद्ध के बीच में हस्तक्षेप नहीं किया। देवी सीता भी भयभीत सी वहीं खड़ी रही। लक्ष्मण और अघासुर के बीच द्वन्द कुछ लम्बा खिंच गया।
हनुमान और सीता दोनों ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि लक्ष्मण उस राक्षस का वध करने में इतना विलम्ब क्यों कर रहे हैं? तभी अघासुर ने माया से अपना अकार बहुत बढ़ा लिया और लक्ष्मण को निगलने को बढ़ा। एक राक्षस को अपने देवर की ओर इस प्रकार बढ़ता देख माता सीता घबरा गयी और लक्ष्मण की रक्षा के लिए उन्होंने योगबल से राक्षस से पहले ही लक्ष्मण को निगल लिया। जैसे ही उन्होंने लक्ष्मण को निगला, उन दोनों का शरीर मिलकर जलतत्व में बदल गया। दोनों को मरा जानकर अघासुर वापस सरयू में चला गया। हनुमान को कुछ समझ नहीं आया और वे कर्तव्यविमूढ़ से देखते रह गए। अंत में उन्होंने सीता और लक्ष्मण के मिश्रण रुपी उस जल को एक पात्र में एकत्र किया और श्रीराम के पास पहुँचे।
हनुमान और सीता दोनों ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि लक्ष्मण उस राक्षस का वध करने में इतना विलम्ब क्यों कर रहे हैं? तभी अघासुर ने माया से अपना अकार बहुत बढ़ा लिया और लक्ष्मण को निगलने को बढ़ा। एक राक्षस को अपने देवर की ओर इस प्रकार बढ़ता देख माता सीता घबरा गयी और लक्ष्मण की रक्षा के लिए उन्होंने योगबल से राक्षस से पहले ही लक्ष्मण को निगल लिया। जैसे ही उन्होंने लक्ष्मण को निगला, उन दोनों का शरीर मिलकर जलतत्व में बदल गया। दोनों को मरा जानकर अघासुर वापस सरयू में चला गया। हनुमान को कुछ समझ नहीं आया और वे कर्तव्यविमूढ़ से देखते रह गए। अंत में उन्होंने सीता और लक्ष्मण के मिश्रण रुपी उस जल को एक पात्र में एकत्र किया और श्रीराम के पास पहुँचे।
जब श्रीराम ने ये घटना सुनी तो उन्होंने हनुमान से कहा कि सीता और लक्ष्मण को जीवनदान देना हनुमान के हाथ में ही है। हनुमान ने आश्चर्य से इसका कारण पूछा। तब श्रीराम ने कहा कि अघासुर को भगवान शिव से ये वरदान प्राप्त है कि उसका वध किसी रुद्रावतार के हाथों ही हो सकता है और वो भी तब जब उसे सीता और लक्ष्मण की सम्मलित शक्ति से मारा जाये। सीता और लक्ष्मण की शक्ति का मिश्रण तुम्हारे पास है और रुद्रावतार होने के कारण केवल तुम्ही उसका अंत कर सकते हो।
ऐसा सुनकर श्रीराम और हनुमान सरयू नदी के तट पर पहुँचे। वहाँ श्रीराम के आदेश पर हनुमान ने सीता और लक्ष्मण रुपी जल को गायत्री मन्त्र से अभिमंत्रित कर बड़े वेग से एक अस्त्र की भाँति सरयू नदी में फेंका। उन तीनो की सम्मलित शक्ति से सरयू में आग लग गयी और अघासुर जल कर भस्म हो गया। उसका वध होते ही सरयू ने सीता और लक्ष्मण के शरीर वापस लौटा कर उन्हें नया जीवनदान दिया।
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