महाकुंभ, अर्धकुंभ या फिर सिंहस्थ कुंभ में आपने नागा साधुओं को जरूर देखा होगा। इनको देखकर आप सभी के मन में अक्सर यह सवाल उठते होंगे कि आखिर कौन हैं ये नागा साधु? कहाँ से आते हैं? और कुंभ खत्म होते ही कहां चले जाते हैं? आइए आज हम लोग चर्चा करते है हिंदू धर्म के इन सबसे रहस्यमयी लोगों के बारे में।
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माता अनुसूया
परमपिता ब्रह्मा के दाहिने भाग से स्वयंभू मनु उत्पन्न हुए जिनका विवाह ब्रह्मा के वाम अंग से उत्पन्न होने वाली शतरूपा से हुआ। इन दोनो की पाँच संताने थी। दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद और तीन पुत्रियाँ - आकूति, देवहूति एवं प्रसूति। आकूति का विवाह रूचि प्रजापति एवं प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहुति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ जिनसे उन्हें एक पुत्र - कपिल मुनि और नौ कन्याएं प्राप्त हुई - कला, अनुसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती एवं शांति।
हनुमान की पत्नी - सती सुवर्चला
जब आप हैदराबाद से करीब २२५ किलोमीटर दूर आँध्रप्रदेश के खम्मम जिले में पहुँचते है तो एक ऐसा मंदिर मिलता है जो आपको हैरान कर सकता है। क्यूँकि ये विश्व का एकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ पवनपुत्र हनुमान अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं। अब आप ये प्रश्न कर सकते हैं कि हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं। फिर उनकी पत्नी कैसे हो सकती है।
चौरासी लाख योनियों का रहस्य
हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित ८४००००० योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। अब समस्या ये है कि कई लोग ये नहीं समझ पाते कि वास्तव में इन योनियों का अर्थ क्या है? ये देख कर और भी दुःख होता है कि आज की पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी इस बात पर व्यंग करती और हँसती है कि इतनी सारी योनियाँ कैसे हो सकती है। कदाचित अपने सीमित ज्ञान के कारण वे इसे ठीक से समझ नहीं पाते। गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। तो आइये आज इसे समझने का प्रयत्न करते हैं।
शाकम्भरी जयंती
दुर्गम नाम का एक दैत्य था। हिरण्याक्ष के वंश में वह पैदा हुआ था और उसके पिता का नाम रुरु था। वो देवताओं से शत्रुता रखता था और देवताओं को कष्ट देने के लिए उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप आरम्भ कर दिया। तपस्या का फल देने आए ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस दैत्य ने ब्रह्मा जी से कहा सारे वेद मंत्र मेरे आधीन हो जाए। ब्रह्मा जी उसे तपस्या का वरदान देते हुए अंतर्ध्यान हो गए।
कैसे हुआ यदुकुल का नाश
साम्ब कृष्ण और उनकी दूसरी पत्नी जांबवंती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिसका विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से हुआ था। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो गांधारी ने कृष्ण को इसका दोषी मानते हुए यदुकुल के नाश का श्राप दे दिया जिसे कृष्ण ने सहर्ष स्वीकार किया। उन्होंने ये भी कहा कि समय आने पर वे और बलराम स्वयं यदुकुल का नाश कर देंगे। हालाँकि किसी ने उस समय ये नहीं सोचा था कि कृष्ण के कुल का नाश उनके अपने पुत्र साम्ब के कारण होगा।
विजेता: धार्मिक कहानी प्रतियोगिता २ - "भक्तवत्सला शीतला माता"
एक बार देवर्षि नारद "नारायण! नारायण!" का जाप करते हुए तीनों लोकों की यात्रा पर निकले। सभी देवों के दर्शन करते हुए "शीतला माता" के धाम पहुँचे। ध्यान-मुद्रा में बैठी मातारानी को मुस्कुराते हुए देख विस्मित महर्षि ने अभिवादन के साथ ही कहा -"माँ! आज तो आपके मुख पर अद्वितीय तेज और प्रसन्नता झलक रही है। कौन है, जिसने आपके मुख पर प्रसन्नता बिखेर दी है?" माता ने उसी स्मित हास्य के साथ कहा - वत्स! एक निश्छल हृदय भक्त के अतिरिक्त और कौन हो सकता है?"
क्या वास्तव में श्रीराम ने कभी पतंग उड़ाई थी?
संक्रांति का माहौल है और इस समय पूरे देश में पतंगबाजी का मजा लिया जाता है। पतंग का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना नहीं है लेकिन लोक कथाओं में एक वर्णन ऐसा भी आता है जब श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी। यदि आप इस कथा का सन्दर्भ पूछें तो ९९% लोग बताएँगे कि इसका वर्णन श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड में दिया गया है किन्तु ऐसा नहीं है।
अयप्पा स्वामी
अयप्पा स्वामी भगवान शिव के छः पुत्रों में से एक हैं। उनके जन्म की कथा बहुत पहले महिषासुर के समय से शुरू होती है। महिषासुर की एक छोटी बहन थी महिषा। माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध करने के पश्चात उसने देवताओं से प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और वरदान माँगने को कहा। महिषी ने उनसे अमरत्व का वरदान माँगा किन्तु उन्होंने मना कर दिया। तब महिषी ने उनसे ये वरदान माँगा कि उनका वध केवल भगवान शिव और नारायण के पुत्र द्वारा ही संभव हो।
राशियों के आराध्य देव
हिन्दू धर्म और ज्योतिष में १२ राशियाँ बताई गयी है जिसके अपने अधिपति होते हैं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक राशि के आराध्य देव बताये गए हैं। अगर उस राशि का जातक अपने राशि के आराध्य देव की पूजा करता है तो उसके समस्त ग्रहदोष समाप्त हो जाते हैं। हालाँकि कोई भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा अनुसार किसी भी राशि के आराध्य की पूजा कर सकता है। इससे उसे शुभ फल ही प्राप्त होता है। तो आइये जानते हैं कौन सी राशि के कौन आराध्य देव हैं।
युयुत्सु
युयुत्सु महाभारत का एक महत्वपूर्ण पात्र है। महाभारत के युद्ध के अंत में बचे हुए १८ योद्धाओं में से एक वो भी था। दुर्योधन एवं अन्य कौरवों की भांति युयुत्सु भी धृतराष्ट्र पुत्र था किन्तु उसकी माता गांधारी नहीं थी। ऐसा वर्णित है कि महारानी गांधारी की एक वैश्य दासी थी जिसका नाम सौवाली (सुग्धा) था। वो गांधारी की सिर्फ दासी ही नहीं अपितु अभिन्न सखी भी थी जो गांधारी के विवाह के पश्चात उसके साथ गांधार से हस्तिनापुर आयी थी और मृत्युपर्यन्त उसके साथ ही रही।
ऋष्यशृंग
ऋष्यश्रृंग ऋषि का वर्णन पुराणों एवं रामायण में आता है। परमपिता ब्रह्मा के पौत्र महर्षि कश्यप के एक पुत्र थे विभण्डक। वे स्वाभाव से बहुत उग्र और महान तपस्वी थे। एक बार उनके मन में आया कि वे ऐसी घोर तपस्या करें जैसी आज तक किसी और ने ना की हो। इसी कारण वे घोर तप में बैठे। उनकी तपस्या इतनी उग्र थी कि स्वर्गलोक भी तप्त हो गया।