दुर्गम नाम का एक दैत्य था। हिरण्याक्ष के वंश में वह पैदा हुआ था और उसके पिता का नाम रुरु था। वो देवताओं से शत्रुता रखता था और देवताओं को कष्ट देने के लिए उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप आरम्भ कर दिया। तपस्या का फल देने आए ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस दैत्य ने ब्रह्मा जी से कहा सारे वेद मंत्र मेरे आधीन हो जाए। ब्रह्मा जी उसे तपस्या का वरदान देते हुए अंतर्ध्यान हो गए।
उस दैत्य को पता था कि देवताओं की शक्ति वेद मंत्र है। ब्राह्मण जब वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुये अग्नि में आहुति देते हैं उसी आहुति से देवताओं की शक्ति बढ़ती है। उस दैत्य ने वेद मंत्रों को छुपा दिया। वेद मंत्रों के अदृश्य हो जाने पर ब्राह्मण वेद मंत्रों को भूल गए। संध्या, देव पूजा, पितृ तर्पण आदि के आभाव में ब्राह्मण वैदिक मार्ग से भ्रष्ट हो गए। ब्राह्मणों के धर्म विहीन हो जाने पर देवताओं की शक्ति समाप्त हो गई। तब उस दैत्य ने स्वर्ग पर आक्रमण किया और शक्तिहीन देवता स्वर्ग त्याग कर हिमालय की कन्दराओं में छुप गये।
देवताओं के शक्ति हीन हो जाने पर पृथ्वी भी वैभवहीन हो गई। अन्न जल सब विलुप्त होने लगा। १०० वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी भूख प्यास से व्याकुल होकर प्राण छोड़ने लगे। ब्राह्मणों ने विचार किया विपत्ति में भगवती ही अपने भक्तों की रक्षा करती है। ब्राह्मणों ने भी हिमालय में जाकर भगवती जगदंबा का स्मरण किया। आंखों से आंसू बहाते हुए भाव विह्वल होकर भगवती को पुकारना आरम्भ किया।
देवताओं और ब्राह्मणों की करुण पुकार सुनकर भगवती जगदंबा प्रकट हो गई देवता और ब्राह्मणों को दीन व दुर्बल देखकर भगवती को बड़ा दुख हुआ। भगवती ने अपने शरीर में हजारों नेत्र प्रकट किए। जिस प्रकार संसार की साधारण माता अपने बच्चों को भूखा प्यासा देखकर दुखी होती है और उसकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं उसी प्रकार जगदंबा के नेत्रों से आंसू टपकने लगे। ९ दिनों तक लगातार अश्रु प्रवाह होने के कारण पृथ्वी जलयुक्त हो गई।
भगवती को भाव विह्वल देख कर देवताओं ने और ब्राह्मणों ने जगदंबा को शताधिक नेत्र वाली जानकर "शताक्षी" - इस नाम से संबोधित करते हुए स्तुति कर भगवती जगदंबा को प्रसन्न किया। भगवती प्रसन्न होकर कहने लगी "वरदान मांगो।" तब ब्राह्मणों ने कहा - "माँ भूख लग रही है।" तब जगदंबा ने अपने शरीर से शाक-भाजी प्रकट कर ब्राह्मणों की भूख प्यास को मिटाया। भगवती के शरीर से शाक प्रकट होने के कारण भगवती का नाम "शाकम्भरी" पड़ा। इस प्रकार भगवती जगदंबा शताक्षी और शाकंभरी बनकर देवताओं और मनुष्य के कष्ट को दूर करती है।
भूख प्यास दूर हो जाने पर देवता और ब्राह्मण प्रसन्न हो गए। बच्चों के प्रसन्न होने पर मां भी प्रसन्न हो गई और मां जगदंबा ने देवताओं से कहा - "मैं तुम्हारे लिए और क्या करूं?" तब देवताओं ने कहा - "माँ! दुर्गम दैत्य का संहार कर हमें सुख प्रदान करो।" तब भगवती दैत्य दुर्गम का वध करने के लिए अपने शरीर से दस महाविद्याओं को प्रकट किया। युद्ध करने आयें दुर्गम दैत्य का भगवती ने वध कर दिया। उस दैत्य के मरते ही वह छुपे वेद प्रकट हो गए। उन वेदों को ब्राह्मणों को देकर,भगवती देवताओं और ब्राह्मणों को अभयदान देकर अंतर्ध्यान हो गई। जय मां शाकम्भरी
ये लेख हमें पंडित रोहित वशिष्ठ से प्राप्त हुआ है। ये सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं और इन्होने सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय वाराणसी से आचार्य की डिग्री प्राप्त की है और साथ ही इन्होने भारतीय विद्या भवन नई दिल्ली से श्री ज्योतिष विषय में ज्योतिष अलंकार की उपाधि पायी है। सहारनपुर से निकलने वाली पत्रिका "महाविद्या पञ्चाङ्ग" के ये मुख्य संपादक है। धर्मसंसार में योगदान के लिए हम इनके आभारी हैं।
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