पांडवों के गुणों की जितनी भी प्रसंशा की जाये वो कम है। सभी पांडव महान योद्धा और उच्च चरित्र वाले व्यक्ति थे। साथ ही सभी में कोई ना कोई विशेष गुण अवश्य था। युधिष्ठिर धर्मराज थे और उसके विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते थे। भीम उस युग के सर्वाधिक बलशाली व्यक्ति थे। अर्जुन जैसा धनुर्धर उस समय कोई और नहीं था। नकुल उस काल के सर्वाधिक सुन्दर व्यक्ति थे और सहदेव की भांति सहनशीलता विश्व में किसी और के पास नहीं थी।
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कर्ण और भानुमति - दुर्योधन का कर्ण के प्रति अटूट विश्वास
अगर महाभारत की बात की जाये तो जब भी मैत्री का नाम आता है तो हमें कृष्ण और सुदामा या अर्जुन और कृष्ण की मैत्री की याद आती है। लेकिन एक मित्र जोड़ी ऐसी भी है जिनकी मैत्री कही से भी कम नहीं दिखती है। वो है दुर्योधन एवं कर्ण की मित्रता। ये अवश्य है कि दोनों अधर्म के पक्ष में खड़े दीखते हैं लेकिन उससे दोनों की मैत्री का महत्त्व तनिक भी कम नहीं होता।
शक्तिपीठ और भैरव
हिंदू धर्म में हिंदू धर्म में शक्तिपीठों का बहुत महत्व है। दक्ष के यज्ञ में जब सती ने आत्मदाह किया तब महारुद्र ने वीरभद्र को भेजकर यज्ञ का ध्वंस करवा दिया। फिर वे सती का मृतशरीर उठा कर इधर-उधर घूमने लगे। महादेव को इस प्रकार व्यथित देख कर ब्रह्माजी के सुझाव पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के ५१ खंड कर दिए।
जब श्रीहरि की माया से नारद भी ना बच पाए
एक बार देवर्षि नारद घूमते-घूमते बैकुंठ पहुंचे। वहाँ उन्होंने श्रीहरि विष्णु से पूछा कि "हे भगवन! संसार आपको मायापति कहता है किन्तु ये माया है क्या? मनुष्य क्यों सदैव माया के बंधन में जकड़ा होता है और व्यर्थ दुखी रहता है? जबकि बंधु-बांधव, धन संपत्ति आदि तो केवल मिथ्या है। अगर मनुष्यों को भी वैसा ज्ञान हो जाये जैसा हम देवताओं को होता है तो उन्हें इन व्यर्थ चीजों का दुःख नहीं होगा।" देवर्षि की ऐसी गर्व भरी बातें सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराये और कहा - "कोई बात नहीं। समय आने पर माया क्या है ये तुम्हे समझ आ जाएगा।"
मैत्रेय ऋषि
ऋषि मैत्रेय महाभारत कालीन एक महान ऋषि थे। ये महर्षि पराशर के प्रिय शिष्य और और उनके पुत्र वेदव्यास के कृपा पात्र थे। इन्होने ही दुर्योधन को श्राप दिया था जिससे उसकी मृत्यु भीमसेन के हाथों हुई। इनका नाम इनकी माता "मित्रा" के नाम पर पड़ा और इन्हे अपने पिता "कुषरव" के कारण कौषारन भी कहा जाता है। वैसे तो इन्हे महर्षि पराशर ने समस्त वेदों और पुराणों की शिक्षा दी थी किन्तु ये विशेषकर विष्णु पुराण के महान वक्ता के रूप में विश्व प्रसिद्ध थे। युधिष्ठिर ने अपने राजसू यज्ञ में इन्हे भी आमंत्रित किया था।
जब ऋषि मार्कण्डेय ने उर्वशी का मान भंग किया
उर्वशी के विषय में हम सभी जानते है। वो देवराज इंद्र की सबसे सुन्दर अप्सरा और अन्य अप्सराओं की प्रमुख थी। पृथ्वी महान ऋषिओं-मुनिओं से भरी हुई थी और जब भी कोई मनुष्य घोर तपस्या करता था, देवराज इंद्र अपनी कोई अप्सरा उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेज देते थे। कदाचित अपने सिंहासन के लिए वे कुछ अधिक ही चिंतित रहते थे।
हनुमान और रावण का बल
जैसा कि हम जानते हैं कि रावण निःसंदेह एक महान योद्धा था। उसने अपने शासन में सातों द्वीपों को जीत लिया था। उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था। उसने देवताओं को परास्त किया और नवग्रह उसके राजसभा की शोभा बढ़ाते थे। यहाँ तक कि वो शनि के सर पर अपना पैर रख कर बैठा करता था। यहाँ तक कि उसने भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। उसका वीर रूप ऐसा था कि उसके साथ अपने अंतिम युद्ध करते समय स्वयं श्रीराम ने कहा था कि आज रावण जिस रौद्ररूप में है कि उसे पराजित करना समस्त देवताओं के साथ स्वयं देवराज इंद्र के लिए भी संभव नहीं है।
महादेव की बहन - असावरी देवी
भगवान शिव के परिवार के बारे में हम सभी जानते हैं। उनकी पत्नी देवी पार्वती, पुत्र कार्तिकेय एवं गणेश तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही साथ उनकी पुत्री अशोकसुन्दरी के बारे में भी जानने को मिलता है। इसके अतिरिक्त उनके अन्य चार पुत्रों (सुकेश, जालंधर, अयप्पा और भूमा) के विषय में भी पुराणों में जानकारी मिलती है। लेकिन क्या आपको महादेव की बहन के बारे में पता है? पुराणों और लोक कथाओं में भगवान शिव की बहन "असावरी देवी" के बारे में भी वर्णन मिलता है जिन्हे स्वयं महादेव ने देवी पार्वती के अनुरोध पर उत्पन्न किया था। तो आइये आज महादेव की बहन के विषय में जानते हैं।
सरस्वती, लक्ष्मी एवं गंगा का विवाद
आप सबको वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। पिछले वर्ष इस अवसर पर हमने देवी सरस्वती पर एक वीडियो प्रकाशित किया था जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। इस वर्ष हमने सोचा देवी सरस्वती पर कोई विशेष जानकारी लेकर आपके सामने आएं। तो आज हम आपको देवी सरस्वती और देवी गंगा के बीच हुए एक विवाद के विषय में बताएँगे। इस कथा का विवरण कुछ पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।
मौनी अमावस्या
मौनी अमावस्या का वर्णन कुम्भ के सन्दर्भ में मिलता है। जब अमृत को बचाने के लिए जब धन्वन्तरि कलश लेकर भागे, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर ४ स्थानों पर गिरी जहाँ आज कुम्भ का आयोजन किया जाता है। वे हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मौनी अमावस्या को अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मौन रहकर स्नान करने की प्रथा बहुत पुरानी है।
देवर्षि नारद द्वारा प्रह्लाद को गर्भ में दिया गया उपदेश
महाभारत में देवर्षि नारद और युधिष्ठिर का एक संवाद है जहाँ देवर्षि नारद उन्हें भक्तराज प्रह्लाद के विषय में एक अनोखी बात बताते हैं। बात तब की है जब हिरण्यकशिपु तपस्या करने वन में चला गया। उसकी पत्नी कयाधु उस समय गर्भवती थी। हिरण्यकशिपु के जाने के बाद उस अवसर का लाभ उठा कर देवों ने दैत्यों पर आक्रमण कर दिया।
जब भीम ने युधिष्ठिर को धर्म ज्ञान दिया
महाभारत में भीम को मुख्यतः बल का प्रतीक माना जाता है। उनकी बुद्धि के विषय में ज्यादा चर्चा नहीं की जाती। जबकि सत्य ये है कि वो जितने बलशाली थे उतने ही बुद्धिमान भी थे। उससे भी अधिक कहा जाये तो वे अत्यंत स्पष्टवादी थे। कदाचित ही महाभारत में कोई ऐसा पात्र है जो उतना स्पष्टवादी हो। वैसे तो उनकी स्पष्टवादिता के कई उदाहरण है लेकिन एक कथा ऐसी भी है जिसके द्वारा उन्होंने युधिष्ठिर को उनके कर्तव्य की याद दिलाई। इससे ये भी सिद्ध होता है कि वे सही चीज के लिए अपने भाइयों को भी नहीं छोड़ते थे।