- पूजागृह में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र या दो शालिग्राम का पूजन नहीं करना चाहिए।
- घर में ९ इंच (२२ सेंटीमीटर) या उससे छोटी प्रतिमा होनी चाहिए। इससे बड़ी प्रतिमा घर के लिए शुभ नहीं होती है। उसे मंदिर में ही स्थापित करना चाहिए।
- देवी की १ बार, सूर्य की ७ बार, गणेश की ३ बार, विष्णु की ४ बार तथा शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए।
- आरती करते समय भगवान विष्णु के समक्ष १२ बार, सूर्य के समक्ष ७ बार, दुर्गा के समक्ष ९ बार, शंकर के समक्ष ११ बार और गणेश के समक्ष ४ बार आरती घुमानी चाहिए।
- पूजा करते समय बिना आसन के भूमि पर नहीं बैठना चाहिए।
- भवन निर्माण के समय शिलान्यास सर्वप्रथम आग्नेय दिशा में होना चाहिए। शेष निर्माण प्रदक्षिण-क्रम से करना चाहिए। मध्याह्न, मध्यरात्रि या संध्याकाल में नींव नहीं रखनी चाहिए।
- पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सबके लिए अत्यंत शुभ होती है। अन्य दिशाओं की नीची भूमि सबके लिए हानिकारक होती है।
- अगर घर के उत्तर में प्लक्ष, पूर्व में वटवृक्ष, दक्षिण में गूलर एवं पश्चिम में पीपल का वृक्ष हो तो ये अत्यंत शुभ होता है। हालाँकि ये ध्यान रखना चाहिए कि वृक्ष की छाया घर पर ना पड़े।
- आजकल लोग पुराने मकान से निकली हुई सामग्री का उपयोग नए मकान में कर लेते हैं जो कि अत्यंत हानिकारक है। नए मकान में ईंट, लोहा, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी नए ही लगवाने चाहिए।
- सोने समय हमेशा पूर्व अथवा दक्षिण दिशा में सर रखना चाहिए।
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