पांडवों के गुणों की जितनी भी प्रसंशा की जाये वो कम है। सभी पांडव महान योद्धा और उच्च चरित्र वाले व्यक्ति थे। साथ ही सभी में कोई ना कोई विशेष गुण अवश्य था। युधिष्ठिर धर्मराज थे और उसके विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते थे। भीम उस युग के सर्वाधिक बलशाली व्यक्ति थे। अर्जुन जैसा धनुर्धर उस समय कोई और नहीं था। नकुल उस काल के सर्वाधिक सुन्दर व्यक्ति थे और सहदेव की भांति सहनशीलता विश्व में किसी और के पास नहीं थी।
लेकिन इसके अतिरिक्त सहदेव के पास एक ऐसी शक्ति थी जो किसी अन्य पांडवों के पास नहीं थी। वे त्रिकालदर्शी थे और भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्ण ज्ञान रखते थे। लेकिन उनकी ये शक्ति जन्मजात नहीं थी बल्कि ये उन्हें अपने पिता के आशीर्वाद स्वरूप मिली थी।
कई प्राचीन ग्रंथों में ये वर्णन है कि जब पांडवों के पिता महाराज पाण्डु श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त होने वाले थे तो उन्होंनेकुंती, माद्री और अपने पांचों पुत्रों को बुला कर कहा - "पुत्रों! मेरा अंत समय अब आ पहुँचा है किन्तु मुझे इस बात का दुःख है कि मैं अपना संचित ज्ञान तुममे से किसी को भी ना दे सका। मेरी मृत्यु के पश्चात ये सारा ज्ञान व्यर्थ हो जाएगा। मेरे पास अब अधिक समय नहीं बचा है इसीलिए तुम में से कोई मेरे मस्तिष्क को भक्षण कर लो ताकि मेरा सारा ज्ञान तुम्हे मिल जाये।"
पांडव वैसे ही अपने पिता की स्थित देख कर शोक में थे। उसपर इस प्रकार का कार्य करना है, ये सोच कर ही पाँचों काँप गए। किसी को ये साहस ना हुआ कि वो अपने मरते हुए पिता का मष्तिष्क खा सकें। किसी भी पुत्र को अपनी आज्ञा पूर्ण ना करते देख पाण्डु बड़े दुखी हुए और गहरी निःस्वास लेते हुए अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे।
अपने पिता को उनके अंत समय में इस प्रकार दुखी देख कर अंततः सहदेव इस भीषण कृत्य को करने के लिए आगे आये। उन्होंने पाण्डु के सर के तीन हिस्से किये। पहला हिस्सा खाते ही सहदेव को भूतकाल में हुई सारी घटनाओं का ज्ञान हो गया। दूसरा हिस्सा खाते ही उन्हें वर्तमान और तीसरा हिस्सा खाकर उन्हें भविष्य की सारी घटनाओं का ज्ञान हो गया। इस प्रकार अपने पिता के आशीर्वाद से सहदेव त्रिकालदर्शी बन गए।
त्रिकालदर्शी होने के कारण सहदेव को महाभारत के होने वाले युद्ध और उसके विनाश के बारे में पहले ही पता था। फिर सहदेव ने इस युद्ध को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? इसका कारण ये था कि श्रीकृष्ण ने सहदेव को ऐसा करने से मना किया था। सहदेव के अतिरिक्त केवल श्रीकृष्ण ही ऐसे थे जिन्हे होने वाली सारी घटनाओं का ज्ञान था। किन्तु वे ये जानते थे कि पृथ्वी की भलाई के लिए ये युद्ध आवश्यक है। यही कारण था कि उन्होंने सहदेव को भी किसी को भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताने से मना किया था ताकि महाभारत का युद्ध होकर ही रहे।
कही-कही इस बात का भी वर्णन है कि श्रीकृष्ण ने सहदेव को ये श्राप दिया था कि अगर उसने भविष्य में होने वाली किसी भी घटना के विषय में किसी को भी कुछ बताया तो उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसी कारण सहदेव ने होने वाले युद्ध के विषय में किसी को नहीं बताया क्यूंकि वे भी ये जान चुके थे कि ये युद्ध कितना आवश्यक है।
कही-कही इस बात का भी वर्णन है कि श्रीकृष्ण ने सहदेव को ये श्राप दिया था कि अगर उसने भविष्य में होने वाली किसी भी घटना के विषय में किसी को भी कुछ बताया तो उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसी कारण सहदेव ने होने वाले युद्ध के विषय में किसी को नहीं बताया क्यूंकि वे भी ये जान चुके थे कि ये युद्ध कितना आवश्यक है।
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