जब दुर्योधन ने सहदेव से युद्ध का मुहूर्त पूछा

जब दुर्योधन ने सहदेव से युद्ध का मुहूर्त पूछा
महाभारत का युद्ध होना तय हो चुका था। अंतिम प्रयास के रूप में श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गए किन्तु मूढ़ कौरवों ने उनका भी अपमान किया और उनके केवल ५ गाँव देने के प्रस्ताव को अभी अस्वीकार कर दिया। कृष्ण को तो खैर ये पता ही था कि ये युद्ध किसी भी स्थिति में टल नहीं सकता है किन्तु भीष्म और द्रोण ने दुर्योधन के हठ की ऐसी पराकाष्ठा देखी तो वे भी समझ गए कि कुरुवंश के नाश का समय अब आ गया है।

मकरध्वज

महाबली हनुमान को बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है। हालाँकि पुराणों में उनके विवाह का वर्णन है जहाँ उन्हें भगवान सूर्यनारायण की पुत्री सुवर्चला से विवाह करना पड़ा था। किन्तु ये विवाह केवल उनकी शिक्षा पूर्ण करने के लिए था और इसके अतिरिक्त उन दोनों में कोई और सम्बन्ध नहीं रहा। इसके अतिरिक्त हनुमान के एक पुत्र मकरध्वज का भी वर्णन रामायण में मिलता है। ये कथा तब आती है जब हनुमान श्रीराम और लक्ष्मण को अहिरावण की कैद से मुक्त करवाने जाते हैं।

पौराणिक घटनाओं का कालखंड

पौराणिक घटनाओं का कालखंड
पौराणिक काल गणना के विषय में हम सब जानते हैं। इसमें १२००० दिव्य वर्षोंका एक चतुर्युग होता है जिसमे ४८०० दिव्य वर्ष का कृतयुग (सतयुग), ३६०० दिव्य वर्षका त्रेतायुग, २४०० दिव्य वर्षका द्वापरयुग और १२०० दिव्य वर्ष का कलियुग होता है। इसी गणना से ब्रह्माजी की आयु १०० वर्ष की होती है अर्थात् २ परार्ध (३११०४०००००००००० मानव वर्ष)। युगों का वर्णन और दशावतार पर लेख पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित हो चुके हैं। इस लेख में हम आपको मुख्य-मुख्य पौराणिक घटनाओं का कालखंड बताएँगे।

राक्षसराज सुकेश

राक्षसराज सुकेश राक्षस जाति के पूर्व पुरुषों में से एक है। वही एकलौता ऐसा राक्षस है जिसे स्वयं महादेव और माता पार्वती का पुत्र होने का गौरव प्राप्त है। पुराणों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा से दो विकराल राक्षसों की उत्पत्ति हुई और वहीँ से राक्षस कुल का आरम्भ हुआ। उनका नाम था हेति और प्रहेति। प्रहेति सच्चरित्र था और तपस्या में लीन हो गया। हेति का विवाह यमराज की बहन भया से हुआ जिससे उन्हें विद्युत्केश नाम का पुत्र प्राप्त हुआ।

श्रीकृष्ण और ८ अंक का रहस्य

जिस प्रकार महाभारत में १८ अंक की विशेष महत्ता है उसी प्रकार श्रीकृष्ण के जीवन में भी ८ अंक का बहुत महत्त्व है। उनके जीवन के कई घटनाक्रम है जो ८ अंक से जुडी हुई हैं। आइये उनमे से कुछ जानते हैं: 
  • आधुनिक ग्रंथों के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के वें अवतार थे, हालाँकि पौराणिक ग्रंथों में गौतम बुद्ध के स्थान पर बलराम को विष्णु अवतार माना जाता है। उस हिसाब से श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के नवें अवतार हुए। इसके बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें।

रावण संहिता

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि रावण में चाहे जैसे भी अवगुण हों पर वो अपने समय का सबसे महान पंडित था। मातृकुल से राक्षस होने के बाद भी वो ब्राह्मण कहलाया क्यूंकि उसका पितृकुल ब्राह्मण था। वो परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि पुलत्स्य का पौत्र और महर्षि विश्रवा पुत्र था। तो जो व्यक्ति इतना बड़ा पंडित हो वो अपना ज्ञान विश्व को अवश्य देना चाहता है। इसी कारण रावण ने कई ग्रंथों की रचना की जिसमे से 'शिवस्त्रोत्रताण्डव' एवं 'रावण संहिता' प्रमुख है। इस लेख में हम रावण द्वारा रचित महान ग्रन्थ रावण संहिता के विषय में जानेंगे।

जब ब्रह्मदेव ने बताया क्यों देवता दैत्यों से श्रेष्ठ हैं

एक बार देवर्षि नारद घूमते-घूमते अपने पिता के पास ब्रह्मलोक पहुँचे। वहाँ परमपिता ने उनका स्वागत किया और उनके आने का उद्देश्य पूछा। तब नारद ने कहा - "हे पिताश्री! आप इस समस्त संसार के जनक हैं। सृष्टि में जो कुछ भी है उनकी उत्पत्ति आपसे ही हुई है। देव और दैत्य दोनों आपके पौत्र महर्षि कश्यप की संतानें हैं। जिस प्रकार कश्यप की पत्नी अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई है, उसी प्रकार उनकी पत्नी दिति से दैत्यों की।

जब रावण दैत्यराज बलि के सम्मुख लज्जित हुआ

रावण की वीरता के किस्से तो सबने सुने होंगे किन्तु कई ऐसी अवसर थे जब रावण को भी पराजय का सामना करना पड़ा। इसी को ध्यान में रखकर मैंने 'रावण का मानमर्दन' नाम की श्रृंखला लिखने का निश्चय किया है जिसमे विभिन्न योद्धाओं द्वारा रावण की पराजय का वर्णन है। इस पहली कथा में हम आपको बताएँगे कि किस प्रकार रावण अपनी शक्ति के मद में दैत्यराज बलि से उलझा और उसे मुँह की खानी पड़ी। महाराज बलि के विषय में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ।

संध्यावंदन एवं उपचार

संध्यावंदन एवं उपचार
हिन्दू धर्म में पूजा एवं संध्यावंदन का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रतिदिन संध्यावंदन करने से मनुष्य को इष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है और साथ ही ये हमें शांति भी प्रदान करती है। हिन्दू धर्म में सन्ध्योपासना के ५ प्रकार बताये गए हैं जो इस प्रकार हैं:
  1. संध्या वंदन
  2. प्रार्थना 
  3. ध्यान 
  4. कीर्तन 
  5. आरती

भीष्म के १५ नाम

भीष्म के १२ नाम
  1. देवव्रत: ये उनका असली नाम था जो उन्हें उनकी माता गंगा ने दिया था। भीष्म प्रतिज्ञा लेने तक वे इसी नाम से जाने जाते रहे। 
  2. भीष्म: ये नाम उन्हें उनकी प्रतिज्ञा के कारण प्राप्त हुआ जो उन्होंने सदैव ब्रह्मचारी रहने के लिए की थी। भीष्म का अर्थ होता है भीषण और उनकी भीषण प्रतिज्ञा के कारण देवताओं और शांतनु से उन्हें ये नाम प्राप्त हुआ।

त्रिपुर संहार - महादेव क्यों कहलाये "त्रिपुरारि"?

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। आज भोलेनाथ का दिन है इसीलिए उनपर एक लेख प्रकाशित करना चाह रहा था। महाशिवरात्रि पर एक विस्तृत लेख धर्मसंसार पर पहले ही प्रकाशित हो चुका है। आज हम आपको उन तीन प्रसिद्ध पुरों के बारे में बताएँगे जिन्हे "त्रिपुर" कहा जाता था और जिसका विनाश स्वयं महादेव ने किया और "त्रिपुरारि" कहलाये।

महर्षि जैमिनी की शंका और ४ पक्षियों द्वारा उसका निवारण

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और पांडव एवं श्रीकृष्ण निर्वाण को प्राप्त हो चुके थे। उस समय एक ऋषि थे उनका नाम था जैमिनी। जब उन्होंने महाभारत का विवरण जाना तो उनके मन में श्रीकृष्ण, पांडव एवं उस महायुद्ध के विषय में संदेह उत्पन्न हो गया। वे अपनी शंका के समाधान के लिए कई महात्माओं से मिले पर कोई उनके संदेह का निवारण नहीं कर सका। फिर वे विचरण करते हुए मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुँचे।