राक्षसराज सुकेश राक्षस जाति के पूर्व पुरुषों में से एक है। वही एकलौता ऐसा राक्षस है जिसे स्वयं महादेव और माता पार्वती का पुत्र होने का गौरव प्राप्त है। पुराणों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा से दो विकराल राक्षसों की उत्पत्ति हुई और वहीँ से राक्षस कुल का आरम्भ हुआ। उनका नाम था हेति और प्रहेति। प्रहेति सच्चरित्र था और तपस्या में लीन हो गया। हेति का विवाह यमराज की बहन भया से हुआ जिससे उन्हें विद्युत्केश नाम का पुत्र प्राप्त हुआ।
विद्युत्केश ने राक्षस कुल को आगे बढ़ाया और उनके साम्राज्य का विस्तार जारी रखा। उसने संध्या की पुत्री सालकण्टका से विवाह किया। सालकण्टका अत्यंत कामुक स्त्री थी और विद्युत्केश भी सदैव काम वासना में लिप्त रहता था। दोनों सदैव अपने ही सुख में रमें रहते थे। उन्ही का एक पुत्र हुआ जिसके कारण उनकी काम वासना में व्यवधान पड़ने लगा। कहते हैं कि माता अपने पुत्र के लिए बड़े से बड़ा त्याग भी कर सकती है किन्तु सालकण्टका ने इस कारण, कि इस बालक के कारण उसके और उसके पति के सुख में व्यवधान ना पड़े, उस बालक का त्याग कर दिया।
उस नवजात बालक को उसकी माँ ने पर्वत के एक शिखर पर ये सोच कर रख दिया कि बिना भोजन के वो स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। किन्तु जिसकी जितनी आयु होती है वो उसे अवश्य पूर्ण करता है। वो नवजात शिशु उसी पर्वत शिखर पर ३ दिनों तक भूख प्यास से रोता रहा। अंत में जब लगा कि अब उसके प्राण जाने ही वाले हैं, तभी भाग्यवश वहाँ भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण करते हुए पधारे। उनके कानों में रोते हुए शिशु की आवाज पड़ी तो उन्होंने देखा कि एक शिशु जीर्ण अवस्था में वहाँ क्रंदन कर रहा है। उसकी अवस्था ऐसी थी कि बस अभी प्राण त्याग देगा।
इस बच्चे को इस अवस्था में देख कर देवी पार्वती का ह्रदय पसीज गया। उन्होंने महादेव से पूछा कि क्या करना चाहिए। महादेव तो ठहरे वैरागी। उस बच्चे का भूत, वर्तमान और भविष्य उन्हें पता था सो उन्होंने देवी से कहा कि वे जैसी चाहे उसपर कृपा करे। माता की ममता छलकी और उन्होंने उस बच्चे को तत्काल उठाकर दुग्धपान करवाया। बच्चे के प्राण तो बच गए किन्तु उसकी ऐसी अवस्था देख कर देवी पार्वती को बड़ा क्रोध आया। जब उन्होंने महादेव से उसके विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि किस प्रकार उसके माता पिता ने अपने सुख के लिए उस बालक का त्याग कर दिया है।
ये सुनकर माता के क्रोध की सीमा ना रही। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि कोई माता अपने ही पुत्र के साथ कैसे इतनी निर्दयता का व्यहवार कर सकती है। इसी क्रोधवश उन्होंने राक्षस जाति को श्राप दे दिया कि आज से राक्षस स्त्रियाँ अधिक समय तक गर्भ धारण नहीं कर सकेंगी और इसके साथ ही राक्षस कुल के शिशु जन्म के साथ ही वयस्क हो जाएंगे। इसी श्राप के कारण ही राक्षस जन्म लेते ही पूर्ण वयस्क हो जाते थे।
इसके बाद माता पार्वती ने उसके रेशमी और घुंघराले बालों के कारण उसका नाम 'सुकेश' रखा। सुकेश महादेव और देवी पार्वती की क्षत्रछाया में पलने लगा और इसी कारण वो शिव पुत्र कहलाया। महादेव की कृपा से उसे अतुल बल प्राप्त हुआ और समय आने पर अपने पिता विद्युत्केश की मृत्यु के पश्चात वो राक्षस कुल का नायक बना। जब उसने सत्ता संभाली तो राक्षस बड़ी ही दीन अवस्था में थे। देवताओं ने राक्षसों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था और वे अपना जीवन बड़ी कठिनाई से पाताललोक में बिता रहे थे। अपने कुल की ये दुर्दशा देख कर सुकेश ने ये निश्चय किया कि वो राक्षसों का खोया गौरव फिर से उन्हें दिलवाएगा।
उसने देवताओं के विरुद्ध कई अभियान किये और राक्षसों को पुनः धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। सबको पता था कि सुकेश पर महादेव की विशेष कृपा है इसी कारण कोई उससे टक्कर लेने का साहस नहीं करता था। वीर होने के साथ-साथ वो धर्म के पथ पर भी चलने वाला था। उसका यही गुण देख कर 'ग्रमिणी' नामक गन्धर्व ने अपनी पुत्री 'देववती' का विवाह सुकेश के साथ कर दिया। दोनों ने लम्बे समय तक सुखी दाम्पत्य जीवन को भोगा और उसके माल्यवान, सुमाली और माली नामक तीन पराक्रमी पुत्र हुए।
इन्ही तीनों पुत्रों में माली की पुत्री कैकसी हुई जिसका विवाह महर्षि पुलत्स्य के पुत्र महर्षि विश्रवा से हुआ। विश्रवा और कैकसी का पुत्र ही महापराक्रमी रावण हुआ जिसने अपने भाइयों कुम्भकर्ण और विभीषण की सहायता से राक्षसों के सामर्थ्य और ऐश्वर्य को शिखर तक पहुँचाया।
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