हिन्दू धर्म में श्रवण कुमार का स्थान मातृ-पितृ भक्त के रूप में सर्वश्रेष्ठ है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसे श्रवणकुमार के विषय में ना पता हो। जब भी हम श्रवण का नाम लेते हैं, हमारी दृष्टि में एक ऐसे किशोर का चित्र उभरता है जो अपने कन्धों पर रखे पालकी में आपने माता-पिता को ले जा रहा होता है। अपने माता पिता के प्रति ऐसी भक्ति विरले ही देखने को मिलती है।
हालाँकि इस लेख में हम श्रवण कुमार के जीवन के बारे में बात नहीं करने वाले हैं क्यूंकि इसके बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा और सुना जा चुका है। इस लेख में हम श्रवण कुमार के जीवन की उस घटना के बारे में बताएँगे जब उन्होंने अपने वृद्ध और नेत्रहीन माता पिता को पैदल चलने के लिए विवश किया। तो आखिर क्या कारण था कि श्रवणकुमार जैसे मातृ-पितृ भक्त ने अपने वृद्ध माता पिता को पैदल चलने को विवश किया।
कथा तब आरम्भ होती है जब श्रवण कुमार के वृद्ध और नेत्रहीन माता-पिता ने उससे तीर्थ करने की अपनी इच्छा बताई। श्रवणकुमार अत्यधिक निर्धन थे। उनके पास भोजन आदि के लिए भी धन मुश्किल से आ पता था। उस स्थिति में वो किस प्रकार अपने माता पिता को सारे तीर्थों की यात्रा करवा सकता था? किन्तु अपने माता पिता की इच्छा उसे पूर्ण करनी ही थी। यही सोच कर उसने ये निर्णय लिया कि वो उन्हें अपने कन्धों पर उठा कर तीर्थ यात्रा करेगा।
जब श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कंधे पर उठा कर तीर्थ यात्रा आरम्भ की तो उसके इस कार्य से पूरे विश्व में उसकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ी। श्रवणकुमार जिस भी नगर से गुजरते थे, लोग उनके दर्शनों के लिए इकट्ठे हो जाते थे। ऐसे ही भ्रमण करते हुए एक बार कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर पहुँचे। वहाँ अचानक एक ऐसी घटना घटी जिसने स्वयं श्रवणकुमार को भी आश्चर्यचकित कर दिया।
कुरुक्षेत्र की भूमि पर पहुँचते ही श्रवण कुमार ने अचानक अपने माता पिता को पालकी से उतार दिया और उनसे कहा कि अब वो उन्हें अपने कन्धों पर उठा कर चलने को सक्षम नहीं है इसी कारण उन्हें आगे पैदल ही चलना होगा। ये सुनकर उसके पिता ने उससे पूछा कि - "क्या हम कुरुक्षेत्र पहुँच गए?"
तब श्रवणकुमार ने कहा - 'हाँ पिताश्री! हम कुरुक्षेत्र पहुँच गए हैं।' ये सुनकर उसके माता पिता बिना कुछ बोले पालकी से उतर गए और पैदल ही श्रवणकुमार के पीछे चलने लगे।
जैसे ही वे कुरुक्षेत्र की भूमि से बाहर निकले, श्रवणकुमार को अचानक अहसास हुआ कि उसके माता-पिता पैदल चल रहे हैं। ये देख कर उन्हें अपार दुःख हुआ और वे अपने माता-पिता के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने रोते हुए कहा - 'मुझसे पापी पुत्र कदाचित ही संसार में हो जिसने अपने वृद्ध माता पिता को इतने कठिन पथ पर पैदल चलने को विवश किया।'
अपने पुत्र को इस प्रकार दुखी देख कर उनके पिता ने समझाते हुए कहा - 'पुत्र! दुखी ना हो। जो कुछ भी हुआ उसमे तुम्हारा कोई दोष नहीं है। ऐसा कुरुक्षेत्र की भूमि के कारण हुआ।' ये सुनकर श्रवणकुमार ने आश्चर्य से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? तब उन्होंने बताया कि ये कुरुक्षेत्र की भूमि कभी मय दानव की संपत्ति थी और उसने जो पाप किये उसी के कारण उस भूमि में प्रवेश करते ही श्रवणकुमार की मानसिकता में बदलाव हुआ। ये सुनकर श्रवणकुमार की जान में जान आयी।
इससे ही मिलती जुलती एक कथा ये आती है कि जब श्रवणकुमार कुरुक्षेत्र पहुँचते हैं तो वो रुक जाते हैं और अपने माता पिता से उन्हें अपने कंधे पर ढोने के बदले में पैसे माँगते हैं। तब उनके पिता उनसे पूछते हैं कि 'क्या कुरुक्षेत्र आ गया?' जब श्रवणकुमार उन्हें बताते हैं कि वे कुरुक्षेत्र पहुँच चुके हैं तब उनके पिता उनसे कहते हैं कि - 'तुम हमें कुरुक्षेत्र की भूमि को पार करवा दो। उसके बाद हम तुम्हे पैसे दे देंगे।'
श्रवणकुमार उनकी बात मान लेते हैं और कुरुक्षेत्र की भूमि पार करते हैं। कुरुक्षेत्र से निकलते ही श्रवणकुमार को अपनी हरकत पर पश्चाताप होता है और वो अपने पिता से इसके बारे में पूछते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? तब उसके पिता उसे बताते हैं कि मय दानव द्वारा इस भूमि पर किये गए पाप के कारण ही उन्होंने उनसे पैसे माँगे।
श्रवण कुमार की यात्रा जब वाराणसी पहुंची तब उनके मन में क्या विचार आये.?
जवाब देंहटाएंऐसी किसी लोक कथा का वर्णन तो नही मिलता।
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