अगर आपसे कोई पूछे कि श्रीकृष्ण किसके अवतार थे तो १००० में से ९९९ लोग बिना संकोच के कहेंगे कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी इस बात की स्पष्ट व्याख्या है कि भगवान श्रीकृष्ण के रूप में श्रीहरि ने अपना ९वां अवतार लिया। ध्यान रहे कि अधिकतर ग्रंथों में गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार नहीं माना जाता। कदाचित बहुत बाद में उन्हें दशावतार में स्थान देने के लिए प्रचारित किया गया था। इसके विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
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सम्पूर्ण राघवयादवीयम् (हिंदी अर्थ सहित)
क्या आप किसी ऐसे ग्रन्थ के विषय में सोच सकते हैं जिसे आप सीधे पढ़े तो कुछ और अर्थ निकले और अगर उल्टा पढ़ें तो कोई और अर्थ? ग्रन्थ को तो छोड़िये, ऐसा केवल एक श्लोक भी बनाना अत्यंत कठिन है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें एक नहीं बल्कि ३० श्लोक इस प्रकार लिखे गए हैं जिसे अगर आप सीधा पढ़ें तो रामकथा बनती है और उसी को अगर आप उल्टा पढ़ें तो कृष्णकथा।
महर्षि भृगु द्वारा त्रिदेवों की परीक्षा
बहुत काल के पहले महान ऋषियों द्वारा पृथ्वी पर एक महान यज्ञ किया गया। तब उस समय प्रश्न उठा कि इसका पुण्यफल त्रिदेवों में सर्वप्रथम किसे प्रदान किया जाये। तब महर्षि अंगिरा ने सुझाव दिया कि इन तीनों में जो कोई भी "त्रिगुणातीत", अर्थात सत, राज और तम गुणों के अधीन ना हो उसे ही सर्वश्रेष्ठ मान कर यज्ञ का पुण्य सबसे पहले प्रदान किया जाये। किन्तु अब त्रिदेवों की परीक्षा कौन ले? वे तो त्रिकालदर्शी हैं और जो कोई भी उनकी परीक्षा लेने का प्रयास करेगा उसे उनके कोप का भाजन बनना पड़ेगा। तब सप्तर्षियों ने महर्षि भृगु का नाम सुझाया और उनके अनुमोदन पर भृगु त्रिदेवों की परीक्षा लेने को तैयार हो गए।
बालखिल्य
हमारे सप्तर्षि श्रृंखला में आपने महर्षि क्रतु के विषय में पढ़ा। बालखिल्य इन्ही महर्षि क्रतु के पुत्र हैं। प्रजापति दक्ष की पुत्री सन्नति से महर्षि क्रतु ने विवाह किया जिससे इन्हे ६०००० तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुए। इन बाल ऋषियों का आकर केवल अंगूठे जितना था। ये सारे ६०००० पुत्र ही सामूहिक रूप से बालखिल्य कहलाते हैं। महर्षि क्रतु के ये तेजस्वी पुत्र गुण और तेज में अपने पिता के समान ही माने जाते हैं। बालखिल्यों और पक्षीराज गरुड़ का सम्बन्ध बहुत पुराना है।
विकर्ण
विकर्ण कुरु सम्राट धृतराष्ट्र एवं गांधारी का १९वां पुत्र था (१०० कौरवों का नाम जानने के लिए यहाँ जाएँ)। महाभारत में दुर्योधन और दुःशासन के अतिरिक्त केवल विकर्ण ही है जिसकी प्रसिद्धि अधिक है। अन्य कौरवों के बारे में लोग अधिक नहीं जानते हैं। वैसे तो युयत्सु भी धृतराष्ट्र का एक प्रसिद्ध पुत्र है किन्तु दासी पुत्र होने के कारण उसे वो सम्मान नहीं मिला जिसका वो अधिकारी था। हालाँकि कौरवों में केवल युयुत्सु ही ऐसा था जो महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बच गया था। कौरवों में विकर्ण ही ऐसा था जो अपने सच्चरित्र के कारण प्रसिद्ध हुआ।
क्यों श्रीकृष्ण ने अपने ही पुत्र को श्राप दिया?
महाभारत काल के दौरान सत्राजित की समयान्तक मणि ढूंढने के दौरान श्रीकृष्ण एक गुफा में पहुँचे जहाँ उन्होंने ऋक्षराज जांबवंत को देखा। जांबवंत के पास श्रीकृष्ण की समयान्तक मणि थी और जब उन्होंने उसे श्रीकृष्ण को वापस देने से मना किया तब दोनों के बीच भयानक युद्ध आरम्भ हुआ। ये युद्ध २८ दिनों तक चलता रहा किन्तु दोनों के बीच हार-जीत का निर्णय नहीं हो सका। तब जांबवंत ने अपने आराध्य श्रीराम का स्मरण किया तो उन्हें श्रीकृष्ण में ही अपने प्रभु श्रीराम दिखाई दिए। इससे जांबवंत को समझ आ गया कि श्रीकृष्ण ही श्रीराम के दूसरे रूप हैं। उन्होंने मणि श्रीकृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जांबवंती का विवाह भी श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
हनुमान जी की दस गौण सिद्धियां
पिछले लेखों में आपने महाबली हनुमान की अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के विषय में पढ़ा। इसके अतिरिक्त पवनपुत्र के पास १० गौण सिद्धियों के होने का भी वर्णन है। ये गोपनीय और रहस्य्मयी १० गौण सिद्धियां जिस किसी के पास भी होती हैं वो अजेय हो जाता है। भागवत पुराण में श्रीकृष्ण ने भी इन १० गौण सिद्धियों के महत्त्व का वर्णन किया है। ये सिद्धियां चमत्कारी हैं और देवों तथा दानवों के लिए भी दुर्लभ हैं। आइये इन १० गौण सिद्धियों के बारे में कुछ जानते हैं: