हमारे सप्तर्षि श्रृंखला में आपने महर्षि क्रतु के विषय में पढ़ा। बालखिल्य इन्ही महर्षि क्रतु के पुत्र हैं। प्रजापति दक्ष की पुत्री सन्नति से महर्षि क्रतु ने विवाह किया जिससे इन्हे ६०००० तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुए। इन बाल ऋषियों का आकर केवल अंगूठे जितना था। ये सारे ६०००० पुत्र ही सामूहिक रूप से बालखिल्य कहलाते हैं। महर्षि क्रतु के ये तेजस्वी पुत्र गुण और तेज में अपने पिता के समान ही माने जाते हैं। बालखिल्यों और पक्षीराज गरुड़ का सम्बन्ध बहुत पुराना है।
पक्षीराज गरुड़ महर्षि कश्यप और वनिता के पुत्र थे। कश्यप की दूसरी पत्नी कुद्रू के गर्भ से १००० नागों से जन्म लिया था और उनकी सहायता से कुद्रू ने छल से विनता को अपनी दासी बना लिया। विनता के गर्भ से सबसे पहले अरुण का जन्म हुआ तो भगवान सूर्यनारायण का सारथि बना। उसके दूसरे पुत्र के रूप में गरुड़ का जन्म हुआ जिसने नागों के कहने पर स्वर्गलोक से अमृत लाकर अपनी माता को दासत्व से मुक्त किया। उस श्रम के बाद गरुड़ को भूख लगी। तब उसके पिता कश्यप ने कहा कि सामने पर्वत शिखर पर एक महाविशालकाय हाथी और कछुआ रहते हैं। तुम उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लो।
तब गरुड़ अपने दोनों पैरों से हाथी और कछुए को लेकर उड़े। पर इतने बड़े प्राणियों को खाएं कैसे? तब उनके पिता महर्षि कश्यप ने बताया कि उत्तर दिशा की ओर एक विशाल वृक्ष है। उसी की शाखा पर बैठकर तुम इन्हे खा लेना। किन्तु ध्यान रखना कि उसी शाखा पर ६०००० बालखिल्य तपस्या करते हैं अतः उन्हें कोई कष्ट ना हो। तब गरुड़ उस हाथी और कछुए को लेकर उस वृक्ष की शाखा पर बैठ गए। किन्तु उनके सम्मलित भार से वो शाखा टूटने लगी। तब उसी शाखा पर बैठे बालखिल्य, जिनका आकर अत्यंत छोटा था, गरुड़ को श्राप देने को उद्धत हुआ। ये देख कर गरुड़ ने उनसे क्षमा मांगी और वहाँ से दूर एक पर्वत शिखर पर हाथी और कछुए का भक्षण किया।
वापस आकर गरुड़ ने महर्षि कश्यप से पूछा कि वो अत्यंत छोटे आकार के इतने सारे ऋषि कौन हैं। तब कश्यप ने कहा कि - "हे पुत्र! वे बालखिल्य मेरे भाई और तुम्हारे तात लगते हैं। वे मेरे पिता और तुम्हारे पितामह महर्षि मरीचि के भाई महर्षि क्रतु के पुत्र हैं। तुम्हारा जन्म भी उन्ही के आशीर्वाद से हुआ है क्यूंकि तुम्हारे जन्म के लिए उन बालखिल्यों ने अपने आधे तप का दान कर दिया था।" ये जानकार गरुड़ बड़े आश्चर्य से अपने पिता को उस कथा को कहने का निवेदन करने लगे।
अपने पुत्र के अनुरोध पर महर्षि कश्यप ने बताया कि एक बार इन बालखिल्यों ने अपने पिता महर्षि क्रतु सहित उनके द्वारा संचालित पुत्र-कामना यज्ञ में भाग लिया। उस यज्ञ में देवराज इंद्र देवताओं सहित उनकी सहायता कर रहे थे। तब महर्षि कश्यप ने देवताओं और बालखिल्यों को समिधा लाने का कार्य सौंपा। इंद्र तो महाबलशाली थे इसीलिए उन्होंने अपने पिता के आगे समिधा का ढेर लगा दिया। किन्तु बालखिल्य तो अंगूठे के आकार के थे इसीलिए एक टहनी लाने में भी सबको बड़ा समय लग रहा था। ये देख कर इंद्र हँसते हुए उन बालखिल्यों का परिहास उड़ाने लगे।
अपना ये अपमान देखकर बालखिल्य अत्यंत रुष्ट होकर उसी यञशाला में एक दूसरे इंद्र की उत्पत्ति हेतु यज्ञ करने लगे। वे इंद्र से भी १०० गुणा अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी इंद्र की उत्पत्ति की कामना करते हुए विधिपूर्वक यज्ञाहुति देने लगे। अब इंद्र घबराये और अपने पिता महर्षि कश्यप के पास पहुँचे। तब महर्षि कश्यप ने इंद्र से कहा कि तुमंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है। अब उन्हें केवल उनके पिता महर्षि क्रतु ही समझा सकते हैं। ये कहकर वे महर्षि क्रतु और इंद्र को लेकर साधना में रत बालखिल्यों के पास पहुँचे।
वहाँ पहुँच कर महर्षि कश्यप ने उन बालखिल्यों से कहा - "हे भ्राता! मेरे पुत्र इंद्र ने अज्ञानतावश आपका अपमान किया है उसके लिए उसे क्षमा करें। आप उसका तेज हरने के लिए जो ये यज्ञ कर रहे हैं उससे मेरा पुत्र संतप्त होगा। ये भी ना भूलिए कि इंद्र आपके भी पुत्र के ही समान है। अतः उसे अज्ञानी समझ कर उसके अपराधों को क्षमा कर दीजिये।" उसी प्रकार बालखिल्यों के पिता महर्षि क्रतु ने भी अपने पुत्रों को समझाया और उन्हें इंद्र को क्षमा कर देने के लिए कहा।
अपने पिता और भाई द्वारा समझाए जाने पर और इंद्र के बारम्बार क्षमा माँगने पर बालखिल्यों ने कहा - "हे भ्राता कश्यप! हम मुनियों की तपस्या व्यर्थ नहीं जा सकती। इसीलिए जिस पुत्र की हमने कामना की है उसका जन्म तो अवश्य होगा। आप भी पुत्र की कामना हेतु ही ये यज्ञ कर रहे थे अतः वो महापराक्रमी आपके ही पुत्र के रूप जन्म लेगा। जिस प्रकार आपका पुत्र इंद्र की पदवी पर विराजमान है, वो पक्षियों का इंद्र होगा और सारे संसार में पूजनीय होगा।" "हे पुत्र!उसी वरदान के कारण तुम्हारा जन्म मेरे पुत्र के रूप में हुआ है।" ये सुनकर गरुड़ बड़े प्रसन्न हुए और पुनः उस वृक्ष के पास जाकर उन बालखिल्यों की पूजा की।
बालखिल्यों को सूर्यनारायण का सबसे बड़ा आराधक बताया गया है। कहा जाता है कि सभी बालखिल्य सूर्यदेव की ओर अपना मुख करके उनके रथ के आगे-आगे उनकी स्तुति करते हुए चलते हैं। इस प्रकार इन ६०००० ऋषियों के तप की शक्ति भगवान सूर्यनारायण को प्राप्त होती रहती है और इसी शक्ति के बल पर सूर्यदेव संसार का पोषण करते हैं।
Very nice information, please keep posting important messages from our very revered scriptures. 🙏
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंAti Sunder
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंHar Har mahadev 🙏🏻
जवाब देंहटाएंॐ नमः शिवाय
हटाएंबहुत ही रोचक है इनके बारे और कथा हो तो अवश्य डालें ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अवश्य प्रयास करूँगा।
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