पवनपुत्र हनुमान को अष्ट सिद्धि और नौ निधियों का स्वामी कहा गया है। पिछले लेख में आपने बजरंगबली की आठ सिद्धियों के बारे में पढ़ा था। इस लेख में हम आपको उनकी नौ निधियों के बारे में बताएँगे। निधि का अर्थ धन अथवा ऐश्वर्य होता है। ऐसी वस्तुएं जो अत्यंत दुर्लभ होती हैं, बहुत ही कम लोगों के पास रहती हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए घोर तप करना होता हो, उन्हें ही निधि कहा जाता है। वैसे तो ब्रह्माण्ड पुराण एवं वायु पुराण में कई निधियों का उल्लेख किया गया है किन्तु उनमे से नौ निधियाँ मुख्य होती हैं। कहा जाता है कि हनुमानजी को ये नौ निधियाँ माता सीता ने वरदान स्वरुप दी थी।
- रत्न-किरीट: किरीट का अर्थ होता है मुकुट। हनुमान का मुकुट अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों से जड़ा हुआ है। इसके समान मूल्यवान और ऐश्वर्यशाली मुकुट संसार में किसी के पास भी नहीं है। औरों का क्या कहें, यहाँ तक कि स्वर्ग और देवताओं के राजा इंद्र का भी मुकुट इससे अधिक मूल्यवान नहीं है।
- केयूर: केयूर ऐसा आभूषण होता है जो पुरुष अपनी बाँहों में पहनते हैं। इसे ही भुजबंध या बाहुबंध कहते हैं। हनुमानजी दोनों हाथों में बहुमूल्य स्वर्ण के केयूर पहनते हैं। केयूर केवल आभूषण ही नहीं अपितु युद्ध में महाबली हनुमान के लिए सुरक्षा बंधन का भी कार्य करते हैं।
- नूपुर: नूपुर पैरों में पहना जाने वाला एक आभूषण है। बजरंगबली रत्नों से जड़े बहुमूल्य और अद्वितीय नूपुर अपने दोनों पैरों में पहनते हैं। हालाँकि नारियों के नूपुर और पुरुषों के नूपुर में अंतर होता है। नारियां सामान्यतः अपने पैरों में जो नूपुर पहनती हैं उसे ही आज हम घुंघरू के नाम से जानते हैं। इसके उलट पुरुषों के नूपुर ठोस स्वर्ण धातु के बने होते हैं। बजरंगबली के नूपुरों से निकलने वाली आभा से उनके शत्रु युद्धक्षेत्र में नेत्रहीनप्रायः हो जाते हैं।
- चक्र: जब भी हम चक्र की बात करते हैं तो हमें भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण याद आते हैं। किन्तु आप लोगों को ये जानकर आश्चर्य होगा कि पुराणों में हनुमानजी के चक्र का भी वर्णन आता है। कई चित्रों में आपको चक्रधारी हनुमान दिख जायेंगे। राजस्थान के अलवर में चक्रधारी हनुमान का मंदिर है। जगन्नाथपुरी में तो अष्टभुज हनुमान की मूर्ति है जिनमे से ४ भुजाओं में वे चक्र धारण करते हैं।
- रथ: रथ योद्धाओं का सर्वश्रेष्ठ शस्त्र माना जाता है और इसी के आधार पर योद्धाओं को रथी, अतिरथी, महारथी इत्यादि श्रेणियों में बांटा जाता है। हनुमान भी दिव्य रथ के स्वामी हैं जिसपर रहकर युद्ध करने पर उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता। हालाँकि रामायण के लंका युद्ध ने हनुमान के रथ के विषय में अधिक जानकारी नहीं दी गयी है क्यूंकि वे भी अन्य वानरों की भांति पदाति ही लड़े थे। इसके अतिरिक्त हनुमान इतने शक्तिशाली हैं कि किसी को परास्त करने के लिए उन्हें किसी रथ की आवश्यकता नहीं है। महाभारत में भी श्रीकृष्ण के अनुरोध पर हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठे थे।
- मणि: मणि कई प्रकार की होती है और पुराणों में नागमणि, पद्म, नीलमणि इत्यादि का वर्णन आया है। हनुमान संसार की सबसे बहुमूल्य मणियों के स्वामी हैं। महाभारत में द्युतसभा में युधिष्ठिर ने अपने पास रखे धन का वर्णन किया था किन्तु उस समस्त धन का मूल्य भी हनुमान की मणियों के समक्ष कम है।
- भार्या: वैसे तो हनुमानजी को बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है किन्तु पुराणों में हनुमान की पत्नी सुवर्चला का वर्णन आता है। सुवर्चला सूर्यनारायण की पुत्री थी और सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त करने के समय हनुमान ने उनकी पुत्री से विवाह किया था। कुछ ऐसी शिक्षा थी जो केवल गृहस्थ व्यक्ति को ही दी जा सकती थी। जब सूर्यदेव ने हनुमान को उनके ब्रह्मचर्य के कारण उन विद्याओं को प्रदान करने से मना कर दिया, तब विवश होकर हनुमान को विवाह करना पड़ा ताकि वे सूर्यदेव से पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें।
- गज: गज वैसे तो प्राणी है किन्तु उसकी गिनती दुर्लभ निधियों में भी होती है। श्रीगणेश के धड़ पर महादेव ने गज का मुख लगा कर उन्हें जीवित किया। समुद्र मंथन से प्राप्त हुई दुर्लभ निधियों में एक गजराज ऐरावत भी था। गज को गौ, सर्प और मयूर के साथ हिन्दू धर्म के ४ सबसे पवित्र जीवों में से एक माना जाता है। हनुमान की गज निधि को उनके बल के रूप में देखा जाता है। हनुमान में असंख्य (कहीं-कहीं १०००००० का वर्णन है) हाथियों का बल है और उनका बल ही उनकी निधि है और उस निधि में संसार में कोई और उनसे अधिक संपन्न नहीं है।
- पद्म: पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुणयुक्त होता है, तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों को तार देती है। इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति स्वर्ण-चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है। यह सात्विक प्रकार की निधि होती है जिसका अस्तित्व साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।
इसके अतिरिक्त देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर के पास भी नौ निधियाँ हैं जो मूलतः धन मापन के लिए भी इस्तेमाल की जाती थी। तो इस प्रकार हनुमान और कुबेर दोनों नौ निधियों के स्वामी हैं किन्तु उनमे अंतर ये है कि कुबेर वो निधियाँ किसी को प्रदान नहीं कर सकते किन्तु हनुमान इसे योग्य व्यक्ति को प्रदान कर सकते हैं। इसी लिए हनुमान को अष्ट सिद्धि और नौ निधि का दाता कहा गया है। कुबेर की नौ निधियों के विषय में हम किसी और लेख में बताएँगे।
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