महाभारत काल के दौरान सत्राजित की समयान्तक मणि ढूंढने के दौरान श्रीकृष्ण एक गुफा में पहुँचे जहाँ उन्होंने ऋक्षराज जांबवंत को देखा। जांबवंत के पास श्रीकृष्ण की समयान्तक मणि थी और जब उन्होंने उसे श्रीकृष्ण को वापस देने से मना किया तब दोनों के बीच भयानक युद्ध आरम्भ हुआ। ये युद्ध २८ दिनों तक चलता रहा किन्तु दोनों के बीच हार-जीत का निर्णय नहीं हो सका। तब जांबवंत ने अपने आराध्य श्रीराम का स्मरण किया तो उन्हें श्रीकृष्ण में ही अपने प्रभु श्रीराम दिखाई दिए। इससे जांबवंत को समझ आ गया कि श्रीकृष्ण ही श्रीराम के दूसरे रूप हैं। उन्होंने मणि श्रीकृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जांबवंती का विवाह भी श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
इन्ही जांबवंती के गर्भ से साम्ब का जन्म हुआ। जांबवंती सहित श्रीकृष्ण की ८ मुख्य रानियाँ थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने नरकासुर के कारागार से छुड़ाई गयी १६१०० कन्याओं से भी विवाह किया था। साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया और दुर्भाग्य वही सम्पूर्ण यदुवंश के नाश का कारण बनें। इस विषय में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ। कहते हैं साम्ब दिखने में इतना आकर्षक था कि कोई भी कन्या उसे देख कर आकर्षित हो जाती थी। भविष्य, स्कन्द एवं वाराह पुराणों ने इस बात का वर्णन है कि भूलवश श्रीकृष्ण ने साम्ब को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया था।
साम्ब बड़े आकर्षक थे और रूप-रंग और कद-काठी में श्रीकृष्ण के सामान ही थे। उनके रूप के कारण श्रीकृष्ण की कुछ रानियाँ उनपर आकृष्ट हो गयीं। उन्ही में एक रानी "नंदिनी" ने एक दिन साम्ब की पत्नी लक्ष्मणा का रूप धरा और साम्ब के कक्ष में पहुँच कर उन्हें आलिंगन में ले लिया। उसी समय श्रीकृष्ण ने उन दोनों को उस अवस्था में देख लिया और पूरी बात की जानकारी ना होने के कारण उन्होंने साम्ब को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। इस पर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो उन्होंने उसकी मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नियों को दस्युओं द्वारा अपहृत हो जाने का श्राप भी दे दिया।
यहाँ पर कुछ मूढ़ व्यक्ति साम्ब और नंदिनी के चरित्र पर संदेह करते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। इस घटना की दो बड़ी सुन्दर व्याख्या दी गयी है:
- पहली तो ये कि नंदिनी ने साम्ब को पुत्रवत अपने आलिंगन में लिया था, कामवश नहीं।
- दूसरी ये कि चूँकि साम्ब अपने पिता श्रीकृष्ण की तरह ही दिखते थे, नंदिनी ने गलती से उन्हें श्रीकृष्ण समझ कर ही आलिंगन कर लिया।
जब श्रीकृष्ण को अपनी भूल का पता चला तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उसी समय ऋषि कटक द्वारिका में पधारे। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें इस समस्या के विषय में बताया। तब ऋषि कटक ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए साम्ब को सूर्यनारायण की साधना करने को कहा। तब चंद्रभागा नदी के किनारे साम्ब ने सूर्यदेव का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया और १२ वर्षों तक उनकी घोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव प्रकट हुए और साम्ब को चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा। ऐसा करते ही सूर्यदेव की कृपा से साम्ब को श्राप से मुक्ति मिली। तब से चंद्रभागा नदी को कुष्ठरोग से मुक्ति प्रदान करने वाली नदी के रूप में जाना जाता है।
ये प्रसिद्ध मंदिर वर्तमान के पाकिस्तान में मुल्तान शहर में स्थित है। प्राचीन काल में इस मंदिर की प्रसिद्धि बहुत अधिक थी। ६४१ ईस्वी में जब चीन के दार्शनिक शुयांग ज़ैंग इस स्थान पर आए तो उन्होंने लिखा कि मंदिर में स्थित सूर्यदेव की मूर्ति सोने की बनी हुई थी। उनके नेत्रों के स्थान पर बहुमूल्य लाल माणिक लगे थे। स्वर्ण और रजत से बने मंदिर के स्तम्भों पर बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे। रोजाना काफी संख्या में हिन्दू धर्म के अनुयायी इस मंदिर में पूजा करने आते थे। बौद्ध भिक्षु के अनुसार उन्होंने यहां देवदासियों को भी नृत्य करते देखा था। सूर्यदेव के अतिरिक्त यहाँ भगवान शिव और बुद्ध की प्रतिमाएं भी इस मंदिर में स्थापित थीं।
फिर मुग़ल लुटेरे मुहम्मद कासिम ने सारे बहुमूल्य रत्न आभूषण लूट लिए। उसने इस मंदिर के साथ एक मस्जिद का निर्माण करवाया जो आज मुलतान का सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका है। कोई हिन्दू राजा मुलतान पर आक्रमण ना कर पाए इसके सूर्य मंदिर को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। जब कभी भी कोई हिन्दू शासक मुलतान की ओर आक्रमण करने बढ़ता था, कासिम उसे यह धमकी देता था कि अगर वह मुलतान पर आक्रमण करते हैं तो वो सूर्य मंदिर को तबाह कर देगा।
उसके बाद सन १०२६ में एक और मुस्लिम लुटेरे मुहम्मद गजनवी ने हिन्दुओं की आस्था की परवाह ना करते हुए इस महान मंदिर को पूरी तरह तोड़ डाला। अठाहरवीं शताब्दी में हिन्दुओं ने इसे पुनः बनाने का प्रयास किया किन्तु फिर पाकिस्तान के अलग होते ही पुनः मुस्लिमों ने इसे तबाह कर डाला। आज आपको मुल्तान में इस महान मंदिर के केवल अवशेष ही दिखाई देंगे।
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