अगर आपसे कोई पूछे कि श्रीकृष्ण किसके अवतार थे तो १००० में से ९९९ लोग बिना संकोच के कहेंगे कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी इस बात की स्पष्ट व्याख्या है कि भगवान श्रीकृष्ण के रूप में श्रीहरि ने अपना ९वां अवतार लिया। ध्यान रहे कि अधिकतर ग्रंथों में गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार नहीं माना जाता। कदाचित बहुत बाद में उन्हें दशावतार में स्थान देने के लिए प्रचारित किया गया था। इसके विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
जब आप उत्तर प्रदेश में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली वृन्दावन जायेंगे तो यहाँ का एक विशेष आकर्षण "कृष्ण-काली" मंदिर है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि यहाँ पर श्रीकृष्ण की पूजा माँ काली के रूप में होती है। अब आप पूछेंगे कि ये कैसे संभव है? इसका उत्तर ये है कि बहुत कम, लेकिन कुछ जगह श्रीकृष्ण को माँ काली का अवतार ही माना जाता है। विशेषकर "देवी पुराण" में इस बात का वर्णन है कि स्वयं माँ काली ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। इसके पीछे एक बड़ी रोचक कथा है।
एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण कर रहे थे। वातावरण ऐसा था कि महादेव के मन में काम की भावना उत्पन्न हुई। उनकी इच्छा जानकर माता पार्वती उनके समक्ष उपस्थित हुई। किन्तु तब महादेव ने अपनी एक बड़ी ही विचित्र इच्छा बताई। उन्होंने कहा कि उनकी ऐसी इच्छा है कि वे नारी रूप में और माता पार्वती पुरुष के रूप में रमण करें। जब माता पार्वती ने उनकी ऐसी इच्छा सुनी तो उन्होंने कहा कि भविष्य में वे अवश्य ही उनकी ये इच्छा पूर्ण करेंगी।
उस समय पृथ्वी पर दुष्टों का आतंक बहुत बढ़ गया था। जरासंध और कंस के अत्याचारों से पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर रही थी। पृथ्वी मनुष्यों के भार को सहन करने में असमर्थ हो रही थी। जब देवताओं ने ये सूचना महादेव को दी तब देवी पार्वती ने उचित समय जानकर पृथ्वी पर अवतार लेने के विषय में सोचा। उन्होंने अपने अंश से महाकाली को उत्पन्न किया और उन्हें पृथ्वी पर अवतरित होने को कहा। साथ ही उन्हें महादेव को दिया गया अपना वचन भी याद था इसी कारण उन्होंने भगवान शंकर से भी नारी रूप में अवतरित होने का अनुरोध किया। इस प्रकार धर्म की रक्षा भी हो जाती और महादेव की इच्छा भी पूर्ण हो जाती।
तब महाकाली ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के आठवें पुत्र के रूप में कंस के कारागार में जन्म लिया और भगवान शंकर ने वृषभानु की पुत्री राधा के रूप में ब्रज में जन्म लिया। हालाँकि हमारे पौराणिक ग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि राधा श्रीकृष्ण से आयु में बहुत बड़ी थी। इसके साथ ही महादेव के अंश से श्रीकृष्ण की आठ मुख्य रानियों (कहीं-कहीं १०८ रानियों का भी वर्णन है) - रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवंती, सत्या, कालिंदी, लक्ष्मणा, मित्रवृन्दा एवं भद्रा ने जन्म लिया। यही नहीं, देवी पुराण के अनुसार देवी पार्वती को श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित होते देख कर उनकी मुख्य सखियों जया और विजया ने श्रीदामा और वसुदामा नामक गोपों के रूप में जन्म लिया जो श्रीकृष्ण के घनिष्ट मित्र थे।
देवी पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने बलराम और अर्जुन के रूप में अवतार लिया। अधिकांश स्थान पर बलराम को भगवान विष्णु का आठवां अवतार बताया जाता है। अर्जुन अपने भाइयों के साथ वनवास के समय महान कामाख्या शक्तिपीठ पहुँचे जहाँ पर माँ काली ने उन्हें आशीर्वाद दिया और श्रीकृष्ण के रूप में उनकी सहायता करने का वचन दिया। महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने सर्वप्रथम माँ भगवती की ही पूजा की जिससे उन्हें विजयश्री प्राप्त हुई। देवी पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण ने कंस का वध भी माँ काली के रूप में ही किया।
देवी पुराण के अनुसार जब श्रीकृष्ण के निर्वाण का समय हुआ तो वे समुद्र तट पर पहुँचे। उन्हें वहाँ आया देख कर वहाँ एक रत्नजड़ित रथ आया जिसे स्वयं शिलादपुत्र नंदी खींच रहे थे। उस रथ पर जब श्रीकृष्ण विराजित हुए तो देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा की। फिर उस रथ को नंदी खींच कर वापस उन्हें अपने धाम कैलाश ले गया। श्रीकृष्ण और माँ काली में कई समानताएं भी हैं। साथ ही एक ऐसा वर्णन आता है कि एक बार माँ काली ने शंकर के अंश से जन्मी राधा के मान की रक्षा भी की थी।
जब कृष्ण १६ वर्ष के हुए तब तक उनकी और बलराम की प्रसिद्धि सम्पूर्ण विश्व में फ़ैल चुकी थी। तब कंस के अंत का समय निकट जानकर उसके मंत्री अक्रूर ने कृष्ण-बलराम को ब्रज से मथुरा ले जाने की ठानी। कंस का अंत तो कृष्ण को ही करना था और यही नियति जानकर श्रीकृष्ण और बलराम ब्रज छोड़ कर मथुरा चले गए। वहाँ प्रथम उन्होंने कंस का वध किया, तत्पश्चात जरासंध के बार-बार के आक्रमण से बचने के लिए एक नयी नगरी द्वारिका बसा कर सभी यादवों सहित वे वहाँ बस गए।
राधा, जो देवी पुराण के अनुसार वास्तव में भगवान शंकर का अवतार थी, श्रीकृष्ण के जाने के बाद ब्रज में अकेली रह गयी। कृष्ण से मिलने की कोई सम्भावना ना देख कर उसके घर वालों ने उसका विवाह "अयन" नामक एक वीर गोप से करवा दिया। कहते हैं इस विवाह का सारा प्रबंध कृष्ण के दत्तक पिता नन्द ने ही करवाया था। राधा का विवाह तो अयन से हो गया किन्तु वो तो अपना तन-मन श्रीकृष्ण को सौंप चुकी थी। इसी कारण राधा सदा ही एकांत में श्रीकृष्ण का ही जाप करती रहती थी।
अयन स्वयं माँ काली का बहुत बड़ा भक्त था और राधा से अत्यंत प्रेम करता था। किन्तु राधा के इस व्यहवार से उसकी ननद को उसपर सदा संदेह रहता था। वो अयन को इस बारे में बताना तो चाहती थी किन्तु बिना साक्ष्य को अयन से क्या कहती? एक दिन उसने राधा को अपने कक्ष में कृष्ण का जाप करते हुए देख लिया। ये देखकर वो तुरंत अपने भाई अयन के पास पहुँची और उससे कहा कि तुम्हारी पत्नी किसी कृष्ण के नाम का जाप कर रही है। ये सुनकर अयन अत्यंत क्रोध में अपनी बहन के साथ घर वापस आया।
जब वो अपने कक्ष में गया तो देखा कि राधा के मुँह से माँ काली का जाप निकल रहा है। अपनी पत्नी द्वारा अपनी आराध्या के नाम का जाप सुनकर अयन बड़ा प्रसन्न हुआ और अपनी बहन को खूब सुनाया। उसकी बहन को ये रहस्य समझ नहीं आया कि पहले तो राधा कृष्ण के नाम का जाप कर रही थी किन्तु उसके भाई के आते ही वो जाप माँ काली के नाम का कैसा हो गया?
दरअसल अगर अयन राधा को कृष्ण के नाम का जाप करते देख लेता तो अनर्थ हो जाता। इसी कारण माँ काली ने उसकी लाज बचाने के लिए उसके शब्दों को बदल दिया। जब राधा को ये पता चला तो उसने माँ काली का बहुत धन्यवाद किया और वो भी माँ काली की भक्त बन गयी। तब से ही कृष्ण को "काली" के रूप में एक और नाम मिल गया और राधा के लिए कृष्ण और काली में कोई भेद नहीं रहा। तब से कृष्ण को माँ काली का ही स्वरुप समझा जाता है। आज भी अगर आप बंगाल जायेंगे तो भक्तों को "जय माँ श्यामा काली" और "जय माँ कृष्ण काली" का जयकारा लगाते देख सकते हैं।
अब जानते हैं कि श्रीकृष्ण और माँ काली में क्या समानताएं हैं:
- श्रीकृष्ण के दो बाएं हाथों में शंख और पद्म (कमल का फूल) है तो मां काली के दाहिनी ओर के दोनों हाथ भक्तों को अभय दान और वरदान दे रहे हैं।
- श्रीकृष्ण के दोनों दाएं हाथों में चक्र और गदा है तो मां काली के दोनों बाएं हाथों में नरमुंड और खड्ग है।
- अर्थात दो हाथों में दुष्ट शक्तियों के संहार के साधन और दो हाथों में भक्तों की रक्षा और वरदान, यह संकेत श्रीकृष्ण और माँ काली दोनों के चित्र से मिलता है।
- श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा गया है और माँ काली भी योगमुद्रा में रहती हैं।
- श्रीकृष्ण के पास दिव्य दृष्टि है तो माँ काली के पास दिव्य तीसरा नेत्र है।
- माँ काली अनंत रूपा हैं और श्रीकृष्ण भी अर्जुन को गीता ज्ञान देते हुए अपने अनंत रूप के दर्शन करवाते हैं। अर्थात दोनों के रूप अनंत हैं।
- श्रीकृष्ण युद्ध में धर्म अधर्म का ध्यान ना करते हुए दुष्टों को दंड देते हैं। धर्मयुद्ध महाभारत जीतने के लिए वो छल का भी सहारा लेते हैं। माँ काली का क्रोध तो सब जानते ही हैं। क्रोध में उन्होंने उचित-अनुचित का विचार छोड़ सबका नाश आरम्भ कर दिया था।
- श्रीकृष्ण और माँ काली दोनों महादेव को समर्पित हैं।
- श्रीकृष्ण पुरुष हैं तो माँ काली प्रकृति। वास्तव में दोनों एक ही परमात्मा के दो स्वरुप हैं। जो कृष्ण है वह काली है और जो काली है वही कृष्ण है।
Maaaaaaaaaaaa🙏🤱🌺🔱🪔🚩❤️
जवाब देंहटाएंJai Shri Krishnakali
Jai maa Kali. Jai shree Krishna.
जवाब देंहटाएंJai Krishna Kali🙏
जय मां काली
जवाब देंहटाएंजय श्रीकृष्ण