वैसे तो ये सम्पूर्ण सृष्टि ही परमपिता ब्रह्मा से उत्पन्न हुई है किन्तु उनमे से भी ब्राह्मणों को उनका ही दूसरा रूप माना गया है। "ब्राह्मण", ये शब्द भी स्वयं "ब्रह्मा" से उत्पन्न हुआ है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई स्थान पर ऋषि, मुनि इत्यादि का वर्णन है। आम तौर पर हम इसे एक ही समझ लेते हैं किन्तु इनमे भी भेद है। हमारे ग्रंथों में ब्राह्मणों के भी ८ प्रकार बताये गए हैं। तो आइए आज इस विषय में कुछ जानते हैं।
- मात्र: ब्राह्मणों के विषय में कहा गया है कि वे केवल जन्म से ही नहीं अपितु कर्म से भी ब्राह्मण होते हैं। यही कारण है कि वाल्मीकि जैसे दस्यु ने भी अपने कर्मों से ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। "मात्र" ऐसे ब्राह्मणों को कहते हैं जो केवल जन्म से ही ब्राह्मण हैं। वे सभी देवी देवताओं की पूजा भी केवल दिखावे के लिए करते हैं। अनुष्ठान, विवाह इत्यादि में भी इनका मूल प्रयोजन केवल धन की प्राप्ति होता है। ऐसे ब्राह्मण जनेऊ भी धारण करते हैं, मांसाहार भी करते हैं और असत्य भाषण भी करते हैं। कहने का अर्थ ये है कि ये केवल नाम "मात्र" के ब्राह्मण हैं इसीलिए इन्हे मात्र कहते हैं। आज के युग में मात्र ब्राह्मणों की संख्या ही सबसे अधिक है।
- ब्राह्मण: वे वेदपाठी होते हैं, ईश्वर की पूजा पूर्ण मन से करते हैं, सत्यवादी होते हैं, सरल विचार वाले होते हैं, एकांत उन्हें प्रिय होता है और उनकी बुद्धि स्थिर होती है। जो दिखावटी कर्मकांडों को छोड़ कर वेद और शास्त्र सम्मत आचरण करते हैं उन्हें ही ब्राह्मण कहा गया है।
- श्रोत्रिय: ये ब्राह्मणों का एक और प्रकार है जिसका वर्णन मनुस्मृति में दिया गया है। मनुस्मृति के अनुसार जो भी ब्राह्मण वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छः अंगो सहित पढ़कर ब्राह्मण द्वारा करने वाले ६ महत्वपूर्ण कर्मों में संलग्न रहता हो उसे श्रोत्रिय कहते हैं।
- अनुचान: ऐसा ब्राह्मण जो विद्वान हो और वेदों और वेदांगों को शुद्ध मन से श्रोत्रिय ब्राह्मणों को पढ़ाता है उसे अनुचान कहते हैं। अर्थात अनुचान ब्राह्मणों के विद्यार्थी श्रोत्रिय ब्राह्मण होते हैं।
- भ्रूण: जिस ब्राह्मण में अनुचान के समस्त गुण हो और उसके अतिरिक्त वो केवल यज्ञ और स्वाध्याय में रत रहता हो तथा जिसे अपनी इन्द्रियों पर संयम हो, वैसा ब्राह्मण भ्रूण कहलाता है।
- ऋषिकल्प: ऐसे ब्राह्मण जो सभी वेदों के ज्ञाता हो और उसके भी ऊपर समस्त स्मृतियों और लौकिक विषयों का जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, उसे ऋषिकल्प ब्राह्मण कहते हैं। ऋषिकल्प अपने सभी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर सदैव ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और ऐसे श्रेष्ठ ब्राह्मण से सभी प्रेरणा रहते हैं।
- ऋषि: ऐसे ब्राह्मण जिसने अपने चित्त एवं इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो, जिसके मुख से निकले गए वाक्य फलीभूत हो जाते हों, जो ब्राह्मण वरदान एवं श्राप देने में सक्षम हो तथा जो सदैव ब्रह्मचारी रहते हुए सब प्रकार के संदेहों और संशयों से परे हो, उन्हें ही वास्तव में ऋषि कहते हैं।
- मुनि: जो ब्राह्मण मोह माया से मुक्त हैं, निवृति मार्ग में स्थित हैं, जो सम्पूर्ण तत्वों के ज्ञाता हैं, जो सिद्ध हैं और जिन्होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो, वे मुनि कहलाते हैं।
आजकल भी आप कुछ ऐसे उपनाम देख सकते हैं जो उनके पुराने कर्म के द्वारा प्रदान किये गए। वे उपनाम आज भी आपको देखने को मिल जाएंगे। ऐसे कुछ उपनामों पर दृष्टि डालते हैं।
- एक वेद के ज्ञाता ब्राह्मण को "पाठक" कहा गया है। आज भी आपको ये उपनाम देखने को मिल जाएगा। इन्हे "वेदी" भी कहा गया जो आज कल "बेदी" के नाम से जाना जाता है।
- दो वेद पढ़ने वाले ब्राह्मण को "द्विवेदी" कहा गया है। आज कल यही उपनाम "दूबे" हो गया है।
- तीन वेद पढ़ने वाले ब्राह्मण को "त्रिवेदी" कहते हैं। बाद में वो "त्रिपाठी" हो गया और आजकल उसे ही "तिवारी" कहा जाता है।
- चार वेद के ज्ञाता ब्राह्मण को "चतुर्वेदी" कहा गया जो आधुनिक काल में "चौबे" कहलाते हैं।
- शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले "शुक्ल" कहलाये जो आजकल "शुक्ला" कहलाते हैं।
- शास्त्र धारण करने वाले और शास्त्रार्थ करने वाले ब्राह्मणों को "शास्त्री" की उपाधि से विभूषित किया गया।
- अध्ययन द्वारा अपना जीवन यापन करने वाले ब्राह्मण "पाध्याय" कहलाये जो आजकल "उपाध्याय" कहलाते हैं।
- जो ब्राह्मण चारो वेद, पुराण, शास्त्र और उपनिषदों के ज्ञाता है उन्हें ही "पंडित" कहा गया। उन्हें ही आज के समय में "पाण्डे" कहा जाता है।
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