कौरवों ने छल से द्युत जीतकर पांडवों को १२ वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास पर भेज दिया। पांडवों ने अपना वनवास और अज्ञातवास नियमपूर्वक पूर्ण किया। विराट के युद्ध के पश्चात स्वयं पितामह भीष्म ने कहा कि पांडवों ने सफलतापूर्वक अपना अज्ञातवास पूर्ण कर लिया था किन्तु दुर्योधन अपने हठ पर अड़ा रहा। पांडवों ने धृतराष्ट्र से विनम्रतापूर्वक अपने हिस्से का राज्य माँगा पर पुत्रमोह में पड़ कर धृतराष्ट्र अच्छे-बुरे का विवेक खो बैठे। जब हस्तिनपुर दूत बनकर गए श्रीकृष्ण स्वयं संधि करवाने में असफल रहे तब अंततः महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया।
अब पितामह भीष्म और अन्य वृद्धों ने श्रीकृष्ण से एक ऐसी भूमि खोजने का अनुरोध किया जो युद्ध के लिए उपयुक्त हो। श्रीकृष्ण जानते थे कि ये युद्ध मानवता के लिए अत्यंत ही आवश्यक था। वे ये भी जानते थे कि संधि करने के उनके सारे प्रयत्न विफल होंगे। तो अब जब युद्ध की ठन ही गयी तो उन्होंने बहुत सावधानीपूर्वक युद्धभूमि की खोज आरम्भ की। उन्हें इस बात का भय था कि चूँकि दोनों ओर सम्बन्धी ही युद्ध कर रहे हैं, इसीलिए कही ऐसा ना हो कि युद्ध आरम्भ होने के बाद एक दूसरे को आमने सामने देख कर कौरव और पांडव संधि कर लें और इस महायुद्ध का आयोजन विफल हो जाये।
यही कारण था कि वो युद्ध के लिए एक ऐसी भूमि की खोज कर रहे थे जिसका इतिहास अत्यंत भयावह और कठोर रहा हो। ऐसा इस लिए कि वे जानते थे कि इस युद्ध में भाई भाई से, पिता पुत्र से और गुरु शिष्य से युद्ध करने वाले हैं और इसी लिए उनके मन में एक दूसरे के प्रति कठोरता का भाव शिखर पर रहना चाहिए। यही सोच कर उन्होंने अपने गप्तचरों को चारों दिशाओं में भेजा ताकि वो ऐसी भूमि का पता लगा सकें जो सर्वाधिक भयावह एवं कठोर हो।
वापस आकर उनके गुप्तचरों ने अपनी-अपनी दिशा के सर्वाधिक भयावह अनुभव उन्हें बताये किन्तु जो गुप्तचर उत्तर दिशा की ओर गया था उसने वासुदेव से कहा कि उसने कुछ ऐसा देखा है जिससे उसे ये विश्वास है कि समस्त संसार में उससे अधिक भयावह भूमि और कोई नहीं है। श्रीकृष्ण ने आश्चर्य से उससे पूछा कि उसने ऐसा क्या देख लिया जिससे वो ऐसी बात कर रहा है।
तब उस गुप्तचर ने श्रीकृष्ण को बताया - "हे माधव! मैं कठोर भूमि की खोज में कुरुक्षेत्र तक जा पहुँचा। वहां मैंने देखा कि दो भाई साथ मिलकर खेती कर रहे थे। तभी वर्षा होने लगी और बड़े भाई ने अपने छोटे भाई से कहा कि वो तुरंत एक मेड़ बनाये ताकि पानी उनके खेतों में घुसने से रुक सके। इसपर छोटे भाई ने कहा कि मैं आपका दास नहीं हूँ। आप स्वयं मेंड़ बना लें। ये सुनकर बड़े भाई को इतना क्रोध आया कि उसने अपने छुरे से अपने छोटे भाई की हत्या कर दी और उसके शव को कुचलते हुए मेंड़ के स्थान पर लगा दिया जिससे जल का प्रवाह रुक गया।"
ये सुनकर श्रीकृष्ण भी हतप्रभ रह गए। ऐसी भूमि जहाँ भाई-भाई की हत्या इस नृशंशता से कर दे, वही भूमि उन्हें युद्ध के लिए उचित जान पड़ी। वे ये भी जानते थे कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर ही कभी भगवान परशुराम ने २१ बार क्षत्रियों को मार कर उनके रक्त से ५ सरोवर बना दिए थे। कदाचित उसी भीषण हिंसा के प्रभाव से आज भी वहां का वातावरण ऐसा था जहाँ मित्रता और संधि पनप नहीं सकती थी। यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने उसी कुरुक्षेत्र की भूमि को महाभारत के युद्ध के लिए चुना। उसी भूमि के प्रभाव से संधि के कई अवसर होते हुए भी वो महायुद्ध रुका नहीं और लाखों लोगों की बलि के साथ ही समाप्त हुआ।
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