द्वादश ज्योतिर्लिंग श्रृंखला में हमने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में एक लेख लिखा था। कहा गया है:
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते॥
अर्थात: आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
अर्थात: आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
इसी से इस ज्योतिर्लिंग की महत्ता का पता चलता है। आज से करीब १०० वर्ष पूर्व जब वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर एक काल्पनिक "कर्क रेखा" खींची तो उससे ये पता चला कि उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर इस पूरी पृथ्वी के केंद्र बिंदु पर स्थित है। जो बात वैज्ञानिकों को १०० वर्ष पहले पता चली, वे हमारे ऋषियों को हजारों वर्ष पहले पता चल गयी थी। हमारे पूर्वजों ने २००० वर्ष पूर्व सूर्य और ज्योतिष गणना के लिए उज्जैन में कई यंत्रों का निर्माण भी किया और आज भी वैज्ञानिक सूर्य एवं नक्षत्रों की सटीक गणना के लिए उज्जैन ही आते हैं।
यही नहीं, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से अन्य ज्योतिर्लिंगों की दूरी में भी अद्भुत संयोग है। यहाँ पर ध्यान रखने की बात ये है कि ये दूरी प्राचीन समय की है। आजकल नए मार्गों के निर्माण के कारण उसमें कुछ अंतर आया है। इसीलिए इस सन्दर्भ को प्राचीन समय के सन्दर्भ में देखें। आइये इसपर एक नजर डालते हैं:
- उज्जैन से ॐकारेश्वर - १११ किमी
- उज्जैन से सोमनाथ - ७७७ किमी
- उज्जैन से त्रयंबकेश्वर - ५५५ किमी
- उज्जैन से घृष्णेश्वर - ५५५ किमी
- उज्जैन से भीमाशंकर - ६६६ किमी
- उज्जैन से नागेश्वर - ७७७ किमी
- उज्जैन से केदारनाथ - ८८८ किमी
- उज्जैन से काशी विश्वनाथ - ९९९ किमी
- उज्जैन से मल्लिकार्जुन - ९९९ किमी
- उज्जैन से बैजनाथ - ९९९ किमी
- उज्जैन से रामेश्वरम - १९९९ किमी
२५ सितम्बर २०१५ को सिंहस्थ कुम्भ के समय मध्यप्रदेश सरकार ने इस विषय में एक जानकारी अपने वेबसाइट पर भी साझा की थी। जब हम अपने इतने गौरवशाली अतीत को देखते हैं तब हमें समझ में आता है कि हिन्दू धर्म का प्राचीन विज्ञान कितना उन्नत था।
जय महाकाल।
Good news
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