पुराणों में महर्षि भृगु के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। ये भारतवर्ष के सर्वाधिक प्रभावशाली, सिद्ध और प्रसिद्ध ऋषियों में से एक है। ये परमपिता ब्रह्मा के पुत्र और महर्षि अंगिरा के छोटे भाई थे और वर्तमान के बलिया (उत्तरप्रदेश) में जन्मे थे। ये एक प्रजापति भी हैं और स्वयंभू मनु के बाद के मन्वन्तरों में कई जगह इनकी गणना सप्तर्षियों में भी की जाती है। इनके वंशज आगे चल कर भार्गव कहलाये और उनसे भी भृगुवंशियों का प्रादुर्भाव हुआ। नारायण के छठे अवतार श्री परशुराम भी इन्ही के वंश में जन्मे और भृगुवंशी कहलाये।
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दस दिशाएं और दिग्पाल
दिशाओं के विषय में सबको पता है। हमें मुख्यतः ४ दिशाओं के बारे में पता होता है जो हैं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण। वैज्ञानिक और वास्तु की दृष्टि से ४ और दिशाएं है जो इन चारों दिशाओं के मिलान बिंदु पर होती हैं। ये हैं - उत्तरपूर्व (ईशान), दक्षिणपूर्व (आग्नेय), उत्तरपश्चिम (वायव्य) एवं दक्षिणपश्चिम (नैऋत्य)।
कार्तवीर्य अर्जुन
कार्तवीर्य अर्जुन पौराणिक काल के एक महान चंद्रवंशी सम्राट थे जिनकी राजधानी महिष्मति नगरी थी। इनके वंश का आरम्भ ययाति के पुत्र यदु से हुआ। ये वास्तव में यदुवंशी ही थी किन्तु आगे चलकर यदुवंश से हैहय वंश अलग हो गया जिस कारण ये हैहैयवंशी कहलाये। यदुवंश और हैहयवंश का विस्तृत वर्णन पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ। हैहयवंश महाराज शतजित के पुत्र हैहय से प्रारम्भ हुआ। इन्ही के वंश में आगे जाकर महाराज कर्त्यवीर्य के पुत्र के रूप में अर्जुन का जन्म हुआ जो आगे चलकर अपने पिता के नाम से कर्त्यवीर्य अर्जुन और अपने १००० भुजाओं के कारण सहस्त्रार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए।
सोलह सिद्धियाँ
पुराणों में १६ मुख्य सिद्धियों का वर्णन किया गया है। किसी एक व्यक्ति में सभी १६ सिद्धियों का होना दुर्लभ है। केवल अवतारी पुरुष, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि अथवा बहुत सिद्ध ऋषियों जैसे सप्तर्षियों में ये सारी सिद्धियाँ हो सकती है। इसे १६ कलाओं से भी जोड़ कर देखा जाता है। आइये इन सिद्धियों के विषय में कुछ जानते हैं: