कल आप सबने यम द्वितीया का पर्व मनाया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पड़ने के कारण ही इस पर्व का नाम यम द्वितीया पड़ा है। इस नाम का एक कारण ये भी है कि ये पर्व दीपावली के दो दिनों के बाद आता है। इसी को भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है। भाई दूज का महत्त्व रक्षा बंधन के समान ही है जिसमे बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके वज्र के समान शक्तिशाली होने की कामना करती हैं। बदले में भाई भी अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।
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गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो दीपावली के दो दिन के बाद मनाया जाता है। उत्तरप्रदेश के ब्रज, गोकुल और वृन्दावन में तो दीवाली के अगले दिन से ही गोवर्धन पूजा का आरम्भ हो जाता है। उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और मध्यप्रदेश में इस पूजा को धूम धाम से मनाया जाता है। इसका एक नाम अनंतकूट भी है और बिहार में इस पर्व को भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा के साथ ही मनाया जाता है। बिहार में इसे अपभ्रंश रूप से "गोधन पूजा" भी कहा जाता है।
नरक चतुर्दशी
आज नरक चतुर्दशी का त्यौहार है, जिसे नरक चौदस भी कहा जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को, दीवाली से एक दिन पहले ये त्यौहार आता है और इसी कारण इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं। इसके कई और नाम हैं - काली चौदस, रूप चौदस, नर्क निवारण चतुर्दशी, भूत चतुर्दशी, नर्का पूजा इत्यादि। कहते हैं कि इस दिन प्रातः काल तेल की मालिश कर के स्नान करने पर नर्क की यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीप दान किया जाता है जिससे यमराज प्रसन्न होते हैं।
श्रीकृष्ण के तीन सबसे घनिष्ठ मित्र
ऐसा कहा जाता है कि यदि मित्रता करो तो श्रीकृष्ण की तरह करो। श्रीकृष्ण ने जिससे भी मित्रता की, सदैव अपना मित्र धर्म निभाया। गोकुल से लेकर द्वारिका तक उनके कई मित्र बने और सभी अंत समय तक उनके मित्र ही रहे। वैसे तो महाभारत में श्रीकृष्ण के कई मित्रों का वर्णन है किन्तु उनके कुछ मित्र ऐसे थे जो उनके अत्यंत प्रिय थे। इस लेख में हम श्रीकृष्ण के ३ सबसे घनिष्ठ मित्र के विषय में जानेंगे।
श्रीफल
नारियल हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र वस्तुओं में से एक माना जाता है। इसे श्रीफल भी कहते हैं, अर्थात समृद्धि देने वाला फल। इसीलिए इसे माता लक्ष्मी से भी जोड कर देखा जाता है। दुनिया में केवल नारियल ही एक ऐसा फल है जो पूर्ण रूप से शुद्ध है और जिसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती। यही नहीं, केवल नारियल ही एक ऐसा वृक्ष है जिससे जुडी हर चीज मनुष्य के काम आती है। इसीलिए भारत, विशेषकर दक्षिण भारत में इसे "कल्पवृक्ष" भी कहा जाता है।
अतिकाय
हम सबने रावण के ज्येष्ठ पुत्र मेघनाद के विषय में जरूर पढ़ा होगा किन्तु रावण के दूसरे पुत्र अतिकाय के विषय में अधिक जानकारी नहीं दी गयी है। इस लेख में रावण के दूसरे पुत्र अतिकाय के विषय में बताया जाएगा। वो रावण के ७ पुत्रों में से एक था जो मंदोदरी से उत्पन्न हुआ था। हालाँकि कई ग्रंथों में रावण की दूसरी पत्नी धन्यमालिनी को अतिकाय की माता बताया जाता है। धन्यमालिनी मंदोदरी की छोटी बहन थी जो मय दानव और हेमा अप्सरा की पुत्री थी।
भूरिश्रवा
भूरिश्रवा महाभारत के सबसे प्रसिद्ध योद्धाओं में से एक थे। इन्होने महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष से युद्ध किया था। कौरव सेना के प्रधान सेनापति भीष्म ने अपनी ११ अक्षौहिणी सेना के लिए जिन ११ सेनापतियों का चयन किया था, भूरिश्रवा उन सेनापतियों में से एक थे। भूरिश्रवा का वध युद्ध के १४वें दिन सात्यिकी ने किया था। वास्तव में भूरिश्रवा कुरुवंशी ही थे और महाभारत युद्ध में उनके साथ उनके पिता और दादा ने भी युद्ध किया था।
शरद पूर्णिमा
कल शरद पूर्णिमा का पर्व है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। आश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद का एक अर्थ चन्द्रमा भी है और इस दिन चाँद की किरणों का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र की किरणों में स्वयं अमृत समाहित होता है। यही कारण है कि आज के दिन गावों में लोग खुले आकाश एवं चांदनी के नीचे सोते हैं। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रौशनी में रहने से कई प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं।
जब रावण असुरराज शंभर से पराजित हुआ
ये रावण के मानमर्दन श्रृंखला का दूसरा लेख है। इससे पहले के लेख में हमने ये बताया था कि किस प्रकार रावण दैत्यराज बलि के हाथों परास्त होने के बाद अपमानित होता है। इस लेख में हम असुरराज शंभर के हाथों रावण के पराजय की कथा बताएंगे। शंभर वैजंतपुर के सम्राट थे। उनकी पत्नी माया मय दानव की पुत्री एवं रावण की पत्नी मंदोदरी की बड़ी बहन थी। इस प्रकार रावण शंभर का सम्बन्धी था।
माद्री
आज पंजाब में जिस स्थान पर रावी और चिनाब नदियों का मिलन होता है उसे ही पहले मद्रदेश कहा जाता था। वहाँ के एक राजा थे भगवान, जिन्होंने लम्बे समय तक मद्र पर शासन किया। मद्रदेश उस समय आर्यावर्त के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली राज्यों में से एक माना जाता था। उनकी दो संतानें थी, एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम शल्य और पुत्री का नाम माद्री था।
कैसे बना शेर माता की सवारी?
माता सती की मृत्यु के उपरांत भगवान शिव बैरागी हो गए। तब सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। उस जन्म में भी उनका महादेव के प्रति अनुराग था और इसी कारण उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की और अंततः उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया। दोनों का विवाह बड़ी धूम धाम से हुआ और फिर वे दोनों अपने निवास कैलाश पर लौट आये और कुछ काल उन्होंने बड़े सुख से बिताये।
माँ दुर्गा के १०८ नाम
माता पार्वती ही संसार की समस्त शक्तियों का स्रोत हैं। उन्ही का एक रूप माँ दुर्गा को भी माना जाता है। उनपर आधारित ग्रन्थ "दुर्गा सप्तसती" में माँ के १०८ नामों का उल्लेख है। प्रातःकाल इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य के सभी दुःख दूर होते हैं। आइये उन नामों और उनके अर्थों को जानें:
- सती: भगवान शंकर की पहली पत्नी। अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाली इन देवी का माहात्म्य इतना है कि उसके बाद पति परायण सभी स्त्रियों को सती की ही उपमा दी जाने लगी।