आप सभी को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। वैसे तो वसंत पंचमी पर हमने पहले ही लेख डाल रखा है किन्तु इस लेख में हम आपको एक ऐसी कथा के बारे में बताने वाले हैं जिसके बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है। एक ऐसी घटना जब देवताओं ने माता सरस्वती का विनिमय किया। ये कथा आरम्भ होती है सोमरस की खोज से।
परीक्षित
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और दुर्योधन की मृत्यु हो चुकी थी। कौरव सेना में केवल तीन योद्धा - अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा बचे थे। मरने से पूर्व दुर्योधन ने अश्वथामा को अपनी सेना का अंतिम प्रधान सेनापति नियुक्त किया और उससे पांडवों का वध करने को कहा। अश्वथामा ने भूलवश पांडवों के पांचों पुत्रों, जिन्हे उप-पांडव कहा जाता था, उनका वध कर दिया। जब पांडवों को ये पता चला तो वो अश्वथामा को ढूंढते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम पर पहुंचे।
जब रावण सहस्त्रार्जुन से परास्त हुआ
इस लेख में रावण और कार्त्यवीर्य अर्जुन के बीच की प्रतिद्वंदिता के बारे में आप जानेंगे। अपने दिग्विजय के समय रावण सभी देशों और प्रदेशों को जीतता हुआ नर्मदा तट पर स्थित महिष्मति नगर पहुँचा। वहाँ उस समय हैहयवंशी राजा कार्त्यवीर्य अर्जुन का राज था जिसे अपने १००० भुजाओं के कारण सहस्त्रार्जुन भी कहा जाता था। उसने अपनी शक्ति से अपना साम्राज्य हिमालय तक फैला रखा था और संसार में कोई भी ऐसा नहीं था जो उससे युद्ध करने का साहस करता हो।
पुत्रदा एकादशी
हिन्दू धर्म में एकादशी का बड़ा महत्त्व है। प्रत्येक मास दो बार एकादशी होती है और इस प्रकार वर्ष में कुल २४ एकादशी होती है। मलमास अथवा अधिकमास की अवस्था में दो एकादशी और बढ़ जाती है और कुल २६ एकादशी होती है। पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं और इसका सभी एकादशियों में विशेष स्थान है। इस वर्ष ६ जनवरी को पुत्रदा एकादशी पड़ रही है जिसका मुहूर्त प्रातः ३:०७ से लेकर अगले दिन ७ जनवरी प्रातः ४:०२ तक है।
जैन धर्म के अनुसार श्री ऋषभनाथ का बल
सामान्यतः तो हम धर्मसंसार में हिन्दू धर्म से सम्बंधित जानकारियाँ ही प्रकाशित करते हैं किन्तु ऐसे कई धर्म हैं जो हिन्दू धर्म से बड़ी निकटता के साथ जुड़े हुए हैं। उनमें से तीन धर्म प्रमुख हैं - जैन, बौद्ध और सिख। वैसे तो विश्व के लगभग सारे धर्म सनातन हिन्दू धर्म से ही निकले हैं या उससे प्रभावित माने जाते हैं किन्तु भारत में इन तीन धर्मों की हिन्दू धर्म के साथ बड़ी महत्ता है। इनमे से भी जैन धर्म भी अत्यंत प्राचीन माना जाता है। कदाचित हिन्दू धर्म के बाद दूसरा सबसे प्राचीन धर्म जिसके प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ थे।
नील
नील नल के घनिष्ठ मित्र थे और नल के सामान उन्हें भी ये श्राप मिला था कि वो जिस वस्तु को हाथ लगाएंगे वो जल में डूबेगी नहीं। दोनों की घनिष्ठता ऐसी थी कि आज भी लोग इन दो वानरों को भाई मानते हैं, हालाँकि ऐसा नहीं था। नल विश्वकर्मा के अवतार थे और रामसेतु का निर्माण उन्होंने ही किया था। दूसरी ओर नील अग्निदेव के अंश थे। कई लोगों को लगता है कि श्रीराम की सेना के सेनापति महावीर हनुमान थे किन्तु ऐसा नहीं है। हनुमान सुग्रीव के मंत्री थे जो उनके साथ ऋष्यमूक पर्वत पर भी रहते थे जब बालि ने सुग्रीव को किष्किंधा से निष्काषित कर दिया था। ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान के साथ जो कुछ चुनिंदा वानर सुग्रीव के साथ रहते थे उनमे से एक नील भी थे और वही उनकी सेना के अधिपति भी थे।
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