धर्म संसार पर एक लेख पहले ही प्रकाशित हो चुका है जिसमें बताया गया है कि महादेव को कौन-कौन सी वस्तुएं अर्पित नहीं की जाती। इसके बारे आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं। कुमकुम भी उन्ही वस्तुओं में से एक है जो भगवान शिव पर नहीं चढ़ाई जाती। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर क्या कारण है कि भगवान शिव को कुमकुम नहीं चढ़ाई जाती।
- कुमकुम को हल्दी एवं नींबू के मिश्रण से बनाया जाता है जिससे इसका रंग सुर्ख लाल हो जाता है। जैसा कि पिछले लेख में बताया गया है कि भगवान शिव को ना चढ़ाये जाने वाले पदार्थों में से एक हल्दी भी है। वो इसीलिए क्यूंकि हल्दी का सम्बन्ध भगवान विष्णु से है और इसी लिए वे पीताम्बर कहलाते हैं। चूँकि कुमकुम को बनाने में हल्दी का उपयोग किया जाता है इसीलिए ये भगवान शिव को नहीं चढ़ाया जाता।
- एक कथा के अनुसार, कुमकुम को माता पार्वती का वरदान है कि ये सदैव सौभाग्य का प्रतीक माना जाएगा। यही कारण है कि विवाहित स्त्रियों को कुमकुम लगाया जाता है ताकि वे सदैव सौभग्यशाली रहे। चूँकि ये स्त्रियों के प्रसाधन में उपयोग होता है इसीलिए महादेव को अर्पण नहीं किया जाता।
- कुमकुम श्रृंगार का प्रतीक भी है। कोई भी नारी जब श्रृंगार करती है तो उसमें कुमकुम का विशेष उपयोग किया जाता है। इसके उलट महादेव वैरागी हैं। वे श्मशान में निवास करते हैं और चिता की भस्म का प्रयोग करते हैं। अतः ये दोनों चीजें परस्पर उलटी हैं। इसी कारण कुमकुम भगवान शिव को नहीं चढ़ाया जाता है।
- इसके पीछे एक विशेष कथा भी है। एक बार एक साधक भगवान शिव की घोर साधना कर रहा था। उसने महादेव के दर्शन के लिए बड़ी कठोर तपस्या की और अपने आस पास उपस्थित सभी वस्तुओं को भगवान शिव को अर्पित किया। उन वस्तुओं में एक हल्दी भी थी। फिर उस साधक ने भूलवश जल के स्थान पर महादेव पर नीम्बू का रस चढ़ा दिया। ऐसा करने से हल्दी और नीम्बू ने मिलकर कुमकुम का रूप ले लिया और पूरा शिवलिंग लाल रंग का हो गया। कदाचित यही कुमकुम के निर्माण की पहली घटना थी। उधर कुमकुम के कारण कैलाश पर समाधि में मग्न महादेव के शरीर का रंग भी रक्तिम हो गया। उसी समय माता पार्वती ने उन्हें देखा और उन्हें ऐसा आभास हुआ कि महादेव का पूरा शरीर रक्त-रंजित है। ऐसा दृश्य देख कर उन्होंने अपने अंश से महाकाली को प्रकट किया और उनसे कहा कि जिस किसी के कारण उनके स्वामी की ये दशा हुई है वे उसका अंत कर दें। माता की आज्ञा पाकर महाकाली महाकाल के भक्त के पास पहुँची और उनका मस्तक काटने को उद्धत हो गयी। अब तो वो तपस्वी बड़ा घबराये और अपनी रक्षा के लिए बारम्बार महादेव को पुकारने लगे। जब भगवान शंकर ने ये देखा कि माँ काली से उनके भक्त की रक्षा नहीं हो सकती तब वे तत्काल स्वयं ही अपने भक्त और महाकाली के खड्ग के बीच में आ गए। उनके आने से उनके भक्त की रक्षा तो हो गयी किन्तु माता पार्वती का क्रोध शांत ना हुआ। तब महादेव ने उन्हें सत्य से अवगत कराया कि ये उनका रक्त नहीं अपितु कुमकुम है जो रक्त सा ही आभास दे रहा है। ये सुनकर माता पार्वती ने ये विधान बना दिया कि आज से उनके स्वामी पर कुमकुम नहीं चढ़ेगा। किन्तु फिर उनके भक्त की प्रार्थना पर माता ने ये आज्ञा दी कि स्वयं उनकी पूजा के समय कुमकुम सबसे प्रमुख माना जाएगा। तब से महादेव पर कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता।
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