पिछले लेख में आपने पौराणिक पृथ्वी की संरचना और ७ द्वीपों के विषय में पढ़ा था। इनमे से श्रेष्ठ है जम्बू द्वीप जिसके बारे में पुराणों में बहुत लिखा गया है। ब्रह्मपुराण में अध्याय १८ के श्लोक २१, २२ और २३ में जम्बुद्वीप की महत्ता का वर्णन है।
तपस्तप्यन्ति यताये जुह्वते चात्र याज्विन।
पुरुषैयज्ञ पुरुषो जम्बूद्वीपे सदेज्यते।
यज्ञोर्यज्ञमयोविष्णु रम्य द्वीपेसु चान्यथा।। (२२)
अत्रापि भारतश्रेष्ठ जम्बूद्वीपे महामुने।
यतो कर्म भूरेषा यधाऽन्या भोग भूमयः।। (२३)
अर्थात: भारत भूमि में लोग तपश्चर्या करते हैं, यज्ञ करने वाले हवन करते हैं तथा परलोक के लिए आदरपूर्वक दान भी देते हैं। जम्बूद्वीप में सत्पुरुषों के द्वारा यज्ञ भगवान् का यजन हुआ करता है। यज्ञों के कारण यज्ञ पुरुष भगवान् जम्बूद्वीप में ही निवास करते हैं। इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष श्रेष्ठ है। यज्ञों की प्रधानता के कारण इसे (भारत को) को कर्मभूमि तथा और अन्य द्वीपों को भोग-भूमि कहते हैं।
श्री सत्यनारायण पूजन में भी जम्बू द्वीप का वर्णन आता है:
ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि, द्वितीय परार्धे, श्री श्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे...
संरचना: इसे समझने के लिए ऊपर दिया गया जम्बू द्वीप का प्राचीन नक्शा अवश्य देखें (बड़े रूप में देखने के लिए उस पर क्लिक करें)। विष्णु पुराण में जम्बू द्वीप की संरचना का वर्णन इस प्रकार किया गया है।
जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:।
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंक पुरुषं स्मृतम्।।
हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्।।
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्।।
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव:।
जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।।
- जम्बू द्वीप सभी द्वीपों में सबसे छोटा है और धरती के केंद्र में स्थित है। इसका विस्तार १००००० (एक लाख) योजन माना गया है।
- ये चारो ओर से लवण सागर (खारे पानी के समुद्र) से घिरा हुआ है। इसके बारे में पुराणों में कहा गया है -
लवणेक्षु सुरासर्पिदधिदुग्धजलै: समम्।
जंबुद्वीप: समस्तानामे- तेपां मध्यसंस्थित:।।
- जम्बू द्वीप चार दिशों से चार महान पर्वतों से घिरा हुआ है।
- पूर्व में मंदराचल जो १०००० योजन ऊँचा है और जिसके ऊपर १०००० योजन ऊँचा कदम्ब का वृक्ष है।
- पश्चिम में विपुल जो १०००० योजन ऊँचा है और जिसके ऊपर १०००० योजन ऊँचा पीपल का वृक्ष है।
- उत्तर में सुपार्श्व जो १०००० योजन ऊँचा है और जिसके ऊपर १०००० योजन ऊँचा वटवृक्ष हैं।
- दक्षिण में गंधमादन जो १०००० योजन ऊँचा है और जिसके ऊपर ११००० योजन ऊँचा जम्बू (जामुन) का वृक्ष है। ये इन चारों वृक्षों में सबसे विशाल है। इसके फल इतने बड़े हैं कि जब वो नीचे गिर कर फटते हैं तो उसके रस से "जम्बू नद" नामक सरोवर बन जाता है जिसका पान करने से कभी बुढ़ापा नहीं आता। इसी महान जम्बू के वृक्ष के कारण इसका नाम जम्बू द्वीप पड़ा है।
- जम्बू द्वीप में ९ देश हैं जिन्हे "वर्ष" भी कहा जता है। इनमे से केवल भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, अन्य सभी देवलोक हैं। इन सभी देशों का विस्तार ९००० योजन बताया गया है।
- इलावृत: इलावृत जम्बू द्वीप के बीचोबीच स्थित है और इसके बीचों बीच महापर्वत मेरु स्थित है। महाभारत में भी इसका वर्णन है जब श्रीकृष्ण इलावर्त जाकर देवताओं को पराजित करते हैं। इस देश के बारे में पुराणों में बहुत कुछ लिखा गया है जिसके बारे में एक विस्तृत लेख बाद में प्रकाशित किया जाएगा।
- भद्राश्व: ये इलावृत के पूर्व में स्थित है। वर्तमान में रूस के कुछ हिस्से इसके अंतर्गत आते थे। यही पर भगवान विष्णु ने हयग्रीव का अवतार लिया था। यहाँ पर धर्मराज के पुत्र भद्रश्रवा का राज्य है।
- किंपुरुष: इस देश के स्वामी महावीर हनुमान माने जाते हैं और यहाँ श्रीराम की पूजा होती है।
- हरिवर्ष: ये इलावृत के पूर्व में स्थित है। वर्तमान के जावा और चीन का भूभाग पहले हरिवर्ष कहलाता था। भगवान विष्णु ने इसी देश में नृसिंह अवतार लिया था। दैत्यराज हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद इस देश के स्वामी हैं।
- केतुमाल: ये इलावृत के पश्चिम में स्थित है। यहाँ संवत्सर नाम के प्रजापति का शासन है और महालक्ष्मी की पूजा होती है। आज के ईरान, तेहरान और पूरा रूस का भूभाग ही पहले केतुमाल कहलाता था।
- रम्यक: इलावृत के उत्तर में स्थित देश। यहाँ स्वम्भू मनु शासन करते थे और भगवान विष्णु ने यहीं पर मत्स्य अवतार लिया था। वर्तमान के रूस का कुछ हिस्सा इसमें आता था।
- उत्तर कुरुवर्ष: भगवान विष्णु ने यही वाराह अवतार लिया था। इलावृत के उत्तर में स्थित देश। इसके अंतर्गत भी वर्तमान रूस का कुछ भूभाग आता था।
- हिरण्यमय: यहाँ के अधिपति अयर्मा हैं और भगवान विष्णु ने यहीं कच्छप अवतार लिया था। ये भी इलावृत के उत्तर में ही पडता है और वर्तमान के रूस का कुछ भूभाग इसके अंतर्गत आता था।
- भारतवर्ष: ये इलावृत के दक्षिण में स्थित है। यही एक मात्र मृत्युलोक है। इसकी महानता के बारे में क्या कहा जाये? देवता भी यहाँ जन्म लेने के लिए तरसते हैं। भगवान विष्णु के दशावतार में सभी मानव अवतार (वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण) और अन्य प्रमुख देवताओं के अवतार भी इसी देश में हुए हैं। कलियुग के अंतिम चरण में कल्कि अवतार भी यहीं होगा। इसी देश की सीमा में कैलाश पर्वत है जहाँ भगवान शंकर निवास करते हैं। जितने भी चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं वो भारतवर्ष में ही हुए हैं। इसके विषय में भी विस्तृत लेख बाद में प्रकाशित किया जाएगा।
- जम्बू द्वीप के बिलकुल मध्य में महान मेरु पर्वत स्थित है। इसी पर्वत को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। इस पर्वत की महानता के विषय में पुराणों में बहुत कुछ लिखा गया है।
- जम्बू द्वीप में ६ मुख्य पर्वत हैं जो मेरु महापर्वत को घेरे हुए हैं।
- हिमवान: ये मेरु पर्वत के दक्षिण में स्थित है। ये ८०००० योजन तक फैला हुआ है।
- हेमकूट: मेरु पर्वत के दक्षिण में। इसका क्षेत्रफल ९०००० योजन है।
- निषध: मेरु पर्वत के दक्षिण में। ये १००००० योजन तक फैला हुए हैं।
- नील: ये मेरु पर्वत के उत्तर में स्थित है। इसका क्षेत्रफल १००००० योजन है।
- श्वेत: मेरु पर्वत के उत्तर में। ये ९०००० योजन तक फैला हुआ है।
- श्रृंगवान: मेरु पर्वत के उत्तर में। इसका क्षेत्रफल ८०००० योजन है।
- इन छह मुख्य पर्वतों के अतिरिक्त यहाँ अन्य पर्वत हैं:
- मेरु के पूर्व में: शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान और वैवंक।
- मेरु के दक्षिण में: त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक और निषाद।
- मेरु के उत्तर में: शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज।
- जम्बू द्वीप में चार प्रमुख वन हैं।
- चैत्ररथ
- गंधमादन
- वैभ्राज
- नंदन: ये देवराज इंद्र का राजकीय वन माना जाता है और पारिजात वृक्ष भी यहीं की शोभा बढ़ाता है।
- जम्बू द्वीप में चार प्रमुख सरोवर हैं।
- अरुणोद
- महाभद्र
- अतिसोद
- मानस
आशा है ये जानकारी आपको पसंद आयी होगी। अगले लेख में हम प्लक्ष द्वीप के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इस विषय में आपकी मेहनत सराहनीय है परंतु मेरा एक प्रशन है जो में आपके विचाराधीन लाना चाहता हूं। यदि द्वापरयुग एवं त्रैतायुग लगभग २०००००० वर्ष पहले घटित हुए हैं और चुंकि सभी टैकटौनिक प्लैट एक दूसरे से टकरा रही हैं, तो आपको यह नहीं लगता कि जंम्बुद्वीप की संरचना उस समय कुछ और रही होगी
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल। उस समय विश्व का नक्शा बिलकुल अलग था। विश्व के अतिप्राचीन नक्शों को भी धर्मसंसार प्रकाशित किया गया है जिसे आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
हटाएंhttps://www.dharmsansar.com/2012/07/india-on-ancient-world-map.html
सुंदर बहुत सुंदर
हटाएंबहुत आभार
हटाएंHi thanks for this info I find lot of similarities in Jain texts with regards to adinath dev Rishab and jain cosmology.. I have curiosity to know more detailed and sequential info regarding above topic is there any book I can purchase if anyone link kindly provide my email shikhaserene@gmail.com
जवाब देंहटाएंThanks for the effort....
कृपया आप सभी द्वीपों का मानचित्र पोस्ट करें
जवाब देंहटाएंसभी द्वीपों का मानचित्र उपलब्ध नहीं है। अगर होगा तो अवश्य साझा करूँगा कैलाश जी।
हटाएंमहोदय! महाद्वीपों से संबंधित समस्त लेख पढ़नी है कृपया लिंक प्रदान करें ।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस लिंक में सभी द्वीपों के लेखों का लिंक है।
हटाएंhttps://www.dharmsansar.com/2020/04/pauranik-dweep.html
ज्ञानवर्धक लेख । बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमाहितीसभर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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