मंदोदरी मय दानव और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री और रावण की पट्टमहिषी थी। इन्हे पञ्चसतियों में से एक माना जाता है। मय और हेमा के दो पुत्र भी थे - दुदुम्भी और मायावी। मंदोदरी के ये दोनों पुत्र वानरराज बाली के हाथों मारे गए। कई ग्रंथों का कहना है कि मय दानव केवल इनके दत्तक पिता थे और मय और हेमा ने केवल मंदोदरी का पालन पोषण किया। इस विषय में मंदोदरी के पूर्वजन्म की एक बड़ी अनोखी कथा है।
एक कथा के अनुसार मधुरा नामक के अप्सरा थी जो एक भार भगवान शंकर के दर्शनों के लिए कैलाश पहुँची। भोलेनाथ उस समय समाधिरत थे। मधुरा उनका अलौकिक रूप देख कर मुग्ध हो गयी। माता पार्वती को आस पास ना देख कर मधुरा नृत्य-संगीत और आलिंगन द्वारा महादेव को रिझाने का प्रयास करने लगी। बहुत प्रयत्न करने के पश्चात भी वो महादेव का तप भंग ना कर पायी। उसी समय माता पार्वती वहाँ पहुंची और मधुरा के शरीर पर महादेव की भस्म लगी देख कर वे बड़ी क्रोधित हुई। उन्होंने मधुरा को मेढ़की बनने का श्राप दे दिया।
उसी समय भगवान शंकर जागे और उन्होंने माता से कहा कि ये कन्या भूलवश मुझपर आकर्षित हो गयी अतः इसकी गलती को एक बालिका की गलती समझ कर क्षमा कर दो। तब माता ने अपने श्राप को सीमित करते हुए कहा कि वो केवल १२ वर्षों तक मेढ़की के रूप में रहेगी और अगर इसने १२ वर्षों तक घोर तप किया तब उसे उस योनि से मुक्ति मिल जाएगी।
माता के श्राप के कारण मधुरा मेढ़की बन एक कुँए में गिर पड़ी। वहीँ उसने भगवान शंकर की १२ वर्षों तक घोर तपस्या की। उसने अपने मन ही मन में महादेव से ये कामना की कि उसका विवाह संसार के सबसे शक्तिशाली और विद्वान व्यक्ति से हो। १२ वर्षों की समाप्ति के बाद भगवान शंकर उसकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे श्रेष्ठ पति को प्राप्त करने का वरदान दिया। साथ ही उन्होंने मधुरा को चिरकुमारी रहने का वरदान भी दिया जिसके कारण उसका यौवन कभी क्षीण नहीं होता था।
महादेव से वरदान पाने के पश्चात उनकी कृपा से मधुरा पुनः अपने स्वरुप में आ गयी और स्वयं को उस कुँए से बाहर निकलने हेतु सहायता के लिए चिल्लाने लगी। उसी कुँए के पास मय दानव अपनी पत्नी हेमा के साथ विचरण कर रहा था। एक स्त्री की पुकार सुनकर दोनों वहाँ आये और मधुरा को कुँए से बाहर निकला। उसे देख कर दोनों के मन में स्वतः ही वात्सल्य जाग उठा और दोनों ने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और उसकी छरहरी काया के कारण उन्होंने उसका नाम मंदोदरी (कम उदर (पेट) वाली) रखा।
इस विषय में एक और कथा प्रचलित है कि माता के श्राप के कारण मधुरा मेढ़की में बदल कर इधर-उधर भटकने लगी। एक दिन वो भटकते हुए सप्तर्षियों के पास पहुँची जहाँ वे अपने भोजन के लिए खीर बना रहे थे। पात्र को चूल्हे पर रख कर वे आपस में वार्तालाप कर रहे थे कि अचानक उनकी खीर में एक विषधर सर्प गिर गया। ये सप्तर्षियों ने नहीं देखा किन्तु मेढ़की बनी मधुरा ने देख लिया। उसने सोचा कि अब तो इस भोजन को खाकर ये सभी मर जाएंगे इसलिए वो उनके पास जाकर कूदने लगी। किन्तु एक मेढ़की पर भला कौन ध्यान देता, वे सभी ऋषि अपने वार्तालाप में व्यस्त रहे।
कुछ समय के पश्चात वे भोजन करने पहुँचे। मधुरा ने जब देखा कि अब वे वो विषैला भोजन करने ही वाले हैं तो उसने और कोई चारा ना देख कर उसी गर्म खीर में छलांग लगा दी और मृत्यु को प्राप्त हुई। जब सप्तर्षियों ने देखा कि खीर में मेढ़की गिर गयी है तो उन्होंने उस खीर को फेंक दिया। तब उस खीर से उस मेढ़की के साथ मरा हुआ विषधर भी निकला। ये देख कर सप्तर्षि बहुत द्रवित हुए कि वो तो अमर हैं किन्तु उनके कारण उस मेढ़की ने नाहक ही अपने प्राण गवा दिए। किन्तु उस मेढ़की का बलिदान देखकर उन्होंने उसे एक कन्या बालिका के रूप में पुनर्जीवित कर दिया।
कुछ समय वो उन सप्तर्षियों के साथ ही रही किन्तु वे उसे कब तक अपने साथ रखते? उसी समय मयासुर अपनी पत्नी हेमा के साथ उनके पास आया और उनसे संतान की कामना की। तब सप्तर्षियों ने उस कन्या को मयासुर के हाथों सौंप दिया जिसका पालन-पोषण मय और हेमा ने किया। वही कन्या बड़ी होकर मंदोदरी के नाम से प्रसिद्ध हुई। बाद में उसने श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर में भगवान शिव की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उसे अद्भुत सौंदर्य प्रदान किया और चिरकुमारी रहने का वरदान दिया। तब मंदोदरी ने एक ऐसी पति की कामना की जो संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली और विद्वान हो। महादेव ने उसे ये वरदान भी दिया। वो बिल्वेश्वर नाथ का मंदिर आज के मेरठ शहर में स्थित है।
मंदोदरी के युवा होने पर मय दानव पूरे विश्व में उसके लिए योग्य वर ढूंढता रहा किन्तु कोई भी योग्य वर उसे मंदोदरी के लिए नहीं दिखा। तभी धरा पर रावण का उदय हुआ जिसने अपने प्रचंड पराक्रम से मनुष्यों, नाग, गन्धर्व, यक्ष, दैत्य, दानव और देवताओं तक पर अपना अधिपत्य जमा लिया। वो ब्रह्मा का प्रपौत्र, महर्षि पुलत्स्य का पौत्र और विश्रवा मुनि का पुत्र था। उसे चारो वेद कंठस्थ थे और उस युग में उससे विद्वान कोई और नहीं था। रावण के गुण महादेव के दोनों वरदानों को संतुष्ट करते थे। और तो और वो स्वयं महादेव का भी कृपा पात्र था।
मय दानव को मंदोदरी के लिए रावण से अधिक योग्य वर दिखाई नहीं दिया और उसने उसके विवाह का प्रस्ताव रावण के समक्ष रखा। पूरे विश्व में मंदोदरी के समान सुन्दर स्त्री और कोई नहीं थी इसीलिए रावण ने उस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया। रावण से विवाह के बाद मंदोदरी लंका की महारानी बनी जो रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से युद्ध में छीना था। मंदोदरी स्वयं विदुषी थी और कहा जाता है कि वो प्रायः राज-काज चलाने में रावण की सहायता करती थी। रावण को मंदोदरी से मेघनाद, प्रहस्त और अक्षयकुमार नामक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुए।
रावण ने त्रिकूट पर्वत के ऊपर अपना भव्य विलास भवन बना रखा था जहाँ रावण के साथ बैठने की अनुमति केवल मंदोदरी को ही थी। ऐसी मान्यता है कि रावण के साथ मनोरंजनार्थ मंदोदरी ने ही सर्वप्रथम शतरंज के खेल का आरम्भ किया था। उसी खेल से चतुरंगिणी और अक्षौहिणी सेना के सन्दर्भ का आरम्भ हुआ। आज राजस्थान के जोधपुर जिले में "मंडोर" नामक एक स्थान है जिसका नाम मंदोदरी पर ही पड़ा है और मंदोदरी वहाँ की कुलदेवी मानी जाती है। उनकी मान्यता है कि इसी स्थान पर रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था।
मंदोदरी को सदा से पता था कि रावण में कितनी बुराई है किन्तु फिर भी उसने सदा उससे प्रेम किया। किन्तु उसके बाद भी वो सदा रावण को सही मार्ग पर लाने का प्रयास करती रही। ऐसा वर्णन है कि मंदोदरी ने रावण को नवग्रहों को बंदी बनाने से रोका था। जब रावण वेदवती पर मुग्ध हुआ तब भी मंदोदरी ने उसे ऐसा करने से मना किया किन्तु रावण नहीं माना और उससे उसका अनिष्ट हुआ। रावण को मंदोदरी की नसीहत कभी पसंद नहीं आयी किन्तु तब भी उसके लिए रावण के मन में कभी सम्मान कम नहीं हुआ।
जब शूर्पणखा लक्ष्मण से अपमानित होकर लंका आई तब मंदोदरी ने उसे सांत्वना दी। किन्तु जब उसने रावण को सीता हरण का सुझाव दिया तब मंदोदरी ने उसका विरोध किया। जब रावण सीता का हरण कर लाया तब मंदोदरी ने ही रावण को सुझाव दिया कि उन्हें राजमहल के बजाय अशोक वाटिका में रखें। मंदोदरी सीता से बड़ी थी और सदा उन्होंने उनके प्रति सहानुभूति रखी। जब सीता अशोक वाटिका में थी तब मंदोदरी उन्हें अपने उत्तम वस्त्र ये कहते हुए भेजती हैं कि ये एक रानी की ओर से एक अन्य रानी के लिए उपहार है। हालाँकि माँ सीता वो वस्त्र ये कहते हुए नहीं लेती कि उनके पास माता अनुसूया के दिए दिव्य वस्त्र है।
जब रावण सीता को किसी प्रकार का प्रलोभन ना दे पाया तो वो उनकी हत्या करने को उद्धत हुआ। तब मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया और समझा बुझा कर ऐसा करने से मना कर दिया। मंदोदरी ने ही मेघनाद और अपने अन्य पुत्रों को ये आज्ञा दी कि वो कभी सीता के सामने ना पड़े। भगवान शिव के वरदान के कारण वो सदा युवती बनी रहती थी। वो इतनी सुन्दर थी कि जब हनुमान सीता संधान के लिए लंका आये तब जब उन्होंने मंदोदरी को देखा तो उनका तेज देख कर उन्हें लगा कि यही माँ सीता है। वे मंदोदरी को प्रणाम करते हैं। किन्तु जब उन्होंने रावण को उनके साथ सोता देखा तब उन्हें विश्वास हुआ कि ये माता सीता नहीं है क्यूंकि वे ऐसा कभी नहीं कर सकती।
रावण के साथ मंदोदरी सीता से मिलने गयी किन्तु अकेले उन दोनों के मिलने का वर्णन नहीं है। ऐसा माना जाता है कि मंदोदरी ने ही त्रिजटा को ये आज्ञा दी कि वो सीताजी का उचित ध्यान रखे और उनके मनोबल को बढाती रहे। समय आने पर मंदोदरी रावण की अवज्ञा की और विभीषण का समर्थन किया कि सीता को श्रीराम को लौटा दिया जाये। दक्षिण भारत के अद्भुत रामायण के अनुसार रावण को सीता का पिता और मंदोदरी को सीता की माता बताया गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार जब रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ तो आकाशवाणी हुई कि उनकी पहली संतान रावण के नाश का कारण बनेगी। तब जब सीता का जन्म हुआ तो रावण ने उसे त्याग दिया और उसे भूमि के नीचे दबा दिया जहाँ से जनक ने उन्हें प्राप्त किया।
मंदोदरी द्वारा रावण से बार-बार सीता को लौटने की बात करने पर रावण क्रुद्ध होकर उसे स्त्रियों के ८ अवगुणों के बारे में बताता है। ऐसी मान्यता है कि रावण की मृत्यु केवल एक दिव्य बाण से ही हो सकती थी जो स्वयं रावण के पास था। उसने उस बाण को सुरक्षित रखने के लिए मंदोदरी को दे दिया। बाद में विभीषण के कहने पर हनुमान ने एक ब्राह्मण के रूप में वो बाण मंदोदरी के पास से चुरा लिया जिससे अंततः श्रीराम ने रावण का वध किया।
जब रावण का वध हुआ तब मंदोदरी के करूँ विलाप का वर्णन आता है। वो रावण के साथ सती होने वाली थी किन्तु श्रीराम के समझाने पर उसने वो विचार त्याग दिया। बाद में जब विभीषण का राज्याभिषेक हुआ तब श्रीराम के ही सुझाव देने पर उसने विभीषण से विवाह कर लिया। मंदोदरी का नाम पञ्चसतियों में आता है जिनके स्मरण मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है। अन्य चार हैं - अहिल्या, तारा, कुंती एवं द्रौपदी। हमारे धर्म ग्रंथों में जिन महान सतियों का वर्णन है उनमे मंदोदरी का नाम प्रमुखता लिया जाता है।
रानी मंदोदरी के बारे में इतनी सुंदर कथाओं का वर्णन करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।
जवाब देंहटाएंहिंदू धर्म और सत्य सनातन धर्म के बारे में आपका शोध स्तुत्य, प्रणम्य है ।आप ऐसे ही धर्म संसार के द्वारा इसका प्रचार-प्रसार करते रहे तथा हम लोगों को ऐसे ही सुंदर-सुंदर कथाओं के बारे में परिचित कराते रहें, यही कामना करती हूं।
एक बार पुनः शुभकामनाएं
आपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर कथा ।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम