अगर हम पृथ्वी की संरचना और नक़्शे की बात करें तो अलग-अलग देशों में अपने-अपने मत हैं। रोम के वासियों का मानना था कि पृथ्वी का पहला नक्शा उन्होंने ही बनाया था। ऐसा ही कुछ प्राचीन ग्रीक और इजिप्ट के निवासी कहा करते थे। फ्रेंच और पुर्तगाली वासी आधुनिक विश्व के नक़्शे को अपना बताने का कोई मौका नहीं चूकते। पर क्या आपको ज्ञात है कि जिस विश्व की परिकल्पना हमने कुछ सौ वर्षों पहले की है उसके बारे में हमारे धर्मग्रंथों में पहले से ही बता दिया गया था।
पृथ्वी की रचना वृताकार है, इसके बारे में तो हम सदियों से जानते हैं। इसीलिए हम "भूगोल" शब्द का उपयोग करते आ रहे हैं जिसका अर्थ है पृथ्वी गोल है। इसके अतिरिक्त भगवान विष्णु के दशावतार में से वाराह अवतार के विषय में हम सभी जानते हैं। ये अवतार सतयुग में हुआ था तो उसका कालखंड कितना पुराना होगा उसकी तो सिर्फ कल्पना की जा सकती है। जब हम भगवान वाराह का चित्र देखते हैं तो उसमें उनके दांतों के बीच रखी पृथ्वी को गोल दिखाया गया है। श्री वराह की सहस्त्रों वर्ष पूर्व की मूर्तियां तो आज भी उपलब्ध हैं, अर्थात पृथ्वी का आकार गोल है ये हम सहस्त्रों वर्षों से जानते थे।
किन्तु महर्षि व्यास ने सहस्त्रों वर्ष पहले पृथ्वी की एक ऐसी संरचना के विषय में लिखा है जो बिलकुल आधुनिक विश्व के नक़्शे से मिलती है। अब इससे अधिक आश्चर्य की और क्या बात हो सकती है? ऐसा उन्होंने महाभारत के भीष्म पर्व में लिखा है। अगर महाभारत का कालखंड ५००० वर्षों का भी माना जाये तो भी ये सिद्ध हो जाता है कि पृथ्वी का वास्तविक नक्शा हमारे विद्वानों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही बता दिया था। उनके अनुसार चन्द्रमण्डल से पृथ्वी को देखने पर ये दो अंशों में शक (खरगोश) और दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रूप में दिखाई देती है। महाभारत के भीष्म पर्व में महर्षि व्यास ने लिखा है:
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः।।
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले।।
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
अर्थात: हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश (खरगोश) दिखायी देता है।
इसी श्लोक को पढ़ कर ११वीं सदी में श्री रामानुजाचार्य ने महर्षि व्यास द्वारा वर्णित उस नक़्शे को बनाया था।
इस चित्र को यदि उल्टा कर दिया जाये तो ये बिलकुल हमारी पृथ्वी का नक्शा बन जाता है।
और जैसा कि महर्षि व्यास ने कहा है, इसे पृथ्वी के दो अंशों में बांटा जाये तो ये पूर्णतः हमारी पृथ्वी का नक्शा बन जाता है।
सनातन धर्म की जय हो
जवाब देंहटाएंThanks for eyes opening scientific post about figure of our earth
जवाब देंहटाएंअविश्वसनीय
जवाब देंहटाएंजय सनातन धर्म की🙏
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंगर्व है हमारे भारतवर्ष पर।
हटाएंYe shloka kaha par hai ?
जवाब देंहटाएंरोचक एवं ज्ञानवर्धक....भारत की महान वैदिक संस्कृति उन्नत एवं विशाल थी। वैदिक संस्कृति का वास्तविक फैलाव उस काल में कहां तक रहा होगा इस सत्य को जान कर भी विश्व अनभिज्ञ बना हुआ है।वैदिक ग्रंथ ही वह कुंजी है जिससे विश्व इस आधुनिक युग तक पहुंचा है।
जवाब देंहटाएंविश्वास के साथ कहना चाहूंगा कि एक समय वैदिक संस्कृति का प्रभाव सम्पूर्ण पृथ्वी पर था और माया, मेसोपोटामिया,इग्जिप्ट सहित समस्त सभ्यताओं के मूल में भारतीय ऋषि ही थे... आधुनिक युग के प्रारंभिक काल में ही अन्य द्वीपों के लोगों ने इसे जान लिया था और फिर ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान में सज विज्ञान जैसे अल्प को ही सब कुछ मान लिया।
ज्ञान वर्तमान में संसार से विलुप्त हो गया है और केवल विज्ञान रूपी अज्ञान हमने धारण किया हुआ है। विशाल ब्रह्माण्ड में आज भी ज्ञान की वह जोत जलती है और एक नए विश्व की रख यूं कहें नवीन गृह पर जीवन के जन्म की तैयारियां चल रही है।