पिछले लेख में हमने कुश द्वीप के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम क्रौंच द्वीप के विषय में विस्तार पूर्वक जानेंगे जिसका स्थान सप्तद्वीपों में पाँचवा है।
- इस द्वीप का नाम यहाँ स्थित क्रौंच नामक महान पर्वत के कारण पड़ा है।
- यहाँ के निवासी वरुण देव की पूजा करते हैं।
- ये चारो ओर से दधि (दही के मट्ठे) सागर से घिरा हुआ है।
- इस द्वीप के स्वामी द्युतिमान हैं और इन्होने इस द्वीप को अपने सात पुत्रों में बाँट दिया है।
- इस द्वीप में ७ वर्ष हैं जिसे वीर द्युतिमान ने अपने सातों पुत्रों में बाँट दिया है। इन सातों वर्षों के नाम उनके पुत्र के नामों पर ही रखे गए हैं।
- कुशल
- मन्दग
- उष्ण
- पीवर
- अन्धकारक
- मुनि
- दुन्दुभि
- इस द्वीप में ७ पवित्र नदियाँ बहती हैं।
- गौरी
- कुमुद्वती
- सन्ध्या
- रात्रि
- मनिजवा
- क्षांति
- पुण्डरीका
- इस द्वीप में ७ पर्वत हैं।
- क्रौंच: ये सभी पर्वतों में सबसे विशाल है इसीलिए इसे महापर्वत भी कहते हैं। इसी पर्वत के नाम पर इस द्वीप का नाम पड़ा है।
- विष्णु पुराण में इस पर्वत के विषय में लिखा है - क्रौंचश्चवामनश्चैवतृतीश्चांधकारक: चतुर्थो रेत्नशैलस्य स्वाहिनीहयसन्निभ:।
- इस पर्वत को हिमालय का एक भाग माना गया है। त्रेतायुग में भगवान परशुराम ने अपने बाणों के प्रहार से इस पर्वत में एक बड़ा छिद्र कर दिया था। इस छिद्र को "क्रौंच रंध्र" कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी मार्ग से मानसरोवर के हंस दक्षिण की ओर प्रवेश करते हैं। इसके विषय में परशुराम स्वयं कहते हैं - विभ्रतोस्त्रमचलेऽप्यकुंठितम्। अर्थात: मेरे (परशुराम) अस्त्र या बाण को पर्वत (क्रौंच) भी न रोक सका था।
- रामायण के किष्किंधा कांड में वानर राज सुग्रीव उत्तर दिशा की ओर जाने वाले दल को इस पर्वत के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं - क्रौंचं तु गिरिमासाद्य बिलं तस्य सुदुर्गमम्, अप्रमत्तै: प्रवेष्टव्यं दुप्प्रवेशं हि तत्स्मृंतम्। अर्थात: क्रौंच पर्वत पर जाकर उसके दुर्गम बिल पर पहुँच कर उसमें बड़ी सावधानी से प्रवेश करना, क्योंकि यह मार्ग बड़ा दुष्कर है।
- इसके बारे में सुग्रीव आगे कहते हैं - पुन: क्रौंचस्य तु गुहाश्चान्या: सानूनि शिखराणि च, दर्दराश्च नितंबाश्च विचेतव्यास्ततस्त:। अर्थात: क्रौंच पर्वत की दूसरी गुहाओं को तथा शिखरों और उपत्यकाओं को भी अच्छी तरह खोजना।
- इसी पर्वत के आगे मैनाक नामक महान पर्वत है। इसके बारे में लिखा गया है - क्रौंचं गिरिमतिक्रम्य मैनाको नाम पर्वत:।
- महाकवि कालिदास ने अपने ग्रन्थ मेघदूत में इस पर्वत की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है। प्रालेयाद्रेरुपतट मतिक्रम्यतां स्तान् विशेषान् हंसद्वारं भृगुपति यशोवस्मै यत्क्रौंचरन्ध्रम्। अर्थात: हिमालय के तट में क्रौच रंध्र नामक घाटी है, जिसमें होकर हंस आते-जाते हैं। वहीं परशुराम के यश का मार्ग है। कालिदास ने क्रौंच पर्वत को कैलाश के निकट ही बताया है।
- वामन
- अन्धकारक
- स्वाहिनी: इस पर्वत की चोटी घोड़ी के मुख जैसी है और ये पर्वत रत्नों से भरा हुआ है।
- दिवावृत
- पुण्डरीकवान
- दुन्दुभि
- यहाँ ४ प्रमुख वर्ण हैं।
- ब्राह्मण: पुष्कल
- क्षत्रिय: पुष्कर
- वैश्य: धन्य
- शूद्र: तिष्य (ख्यात)
अगले लेख में हम छठे पौराणिक द्वीप शाक द्वीप के विषय में जानेंगे।
अद्भुत और ज्ञानवर्धक जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार।
हटाएंप्रशंस्यं कार्यम् , एधन्ताम्।
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