पिछले लेख में हमने शाक द्वीप के विषय में पढ़ा। इस लेख में हम सप्तद्वीपों में से अंतिम पुष्कर द्वीप के विषय में जानेंगे।
- पुष्कर द्वीप का आकर शाक द्वीप से दुगुना है।
- इस द्वीप का नाम यहाँ स्थिति अतिविशाल न्यग्रोध (वट) के वृक्ष के कारण पड़ा है। ये इतना विशाल है कि उसका शिखर दिखाई नहीं देता। कहते हैं इस विशाल वृक्ष में पातमपिता ब्रह्मा का स्थान है।
- ये द्वीप चारो ओर से मीठे पानी के समुद्र से घिरा हुआ है। इस सागर का जल चन्द्रमा की कला के साथ घटता और बढ़ता है।
- इस द्वीप के स्वामी वीर सवन थे और उनके केवल दो पुत्र थे - महावीर और धातकि। इन्होने पूरे द्वीप को अपने दोनों पुत्रों में बाँट दिया था।
- इस द्वीप में मानुषोत्तर नामक केवल एक महान पर्वत है। ये इस द्वीप के दोनों वर्षों के मध्य में स्थित है और उन दोनों खण्डों को अलग करता है। ये पर्वत ५०००० योजन ऊँचा और उतनी ही गोलाई में चारो ओर फैला हुआ है।
- यहाँ केवल दो वर्ष हैं और उनके नाम सवन के उन्ही दोनों पुत्रों के नाम पर हैं:
- महावीर खंड: ये खंड मानुषोत्तर पर्वत के बाहर की ओर है।
- धातकि खंड: ये खंड मानुषोत्तर पर्वत की भीतरी ओर है।
- इस द्वीप में कोई भी नदी नहीं है। चूँकि इस द्वीप को मीठे पानी के सागर ने चारों ओर से घेरा हुआ है, यहाँ पीने योग्य जल की कभी कमी नहीं होती।
- यहाँ के मनुष्य देवताओं के समान दिव्य रूप वाले होते हैं और उन्हें कोई व्याधि नहीं होती।
- इस द्वीप में चार वर्ण हैं:
- वंग
- मागध
- मानस
- मंगद
- पुष्कर द्वीप की चारो और जो मीठे जल का सागर है उसके पार उससे दुगने परिमाण की स्वर्ण भूमि है। वहाँ लोक और अलोक नामक दो महान पर्वत हैं। उन दोनों पर्वतों की ऊंचाई समान (१०००० योजन) है। उनके आधार की गोलाई भी १०००० योजन ही है। उस भूमि के आगे अनंत अंधकार है।
- इन सातों द्वीपों का कुल परिमाण ५०००००००० (पचास करोड़) योजन माना गया है।
इस लेख के साथ ही पौराणिक द्वीपों की श्रृंखला समाप्त होती है। आशा है आपको ये शृंखला पसंद आयी होगी।
मित्र जय श्री राम। लेख पढ़कर सुखद अहसास हुआ। लेकिन आज के समय मे यह स्थान कहा है।
जवाब देंहटाएंअब धरती की संरचना पहले जैसी नहीं रही, समय के साथ स्थति भी बदलती है। वैसे आज के हिसाब से इसकी स्थिति के विषय में आपको इसके सबसे पहले लेख में पढ़ने को मिलेगा।
हटाएंhttps://www.dharmsansar.com/2020/04/pauranik-dweep.html
अत्यन्तं ज्ञानवर्धकम्।
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